कवितालयबद्ध कविता
आयो बसंत
छिटके चहुँ ओर पीत रंग
आए ऋतु राज अनंग संग।
उमड़े प्रेम-अनुराग हृदय में
तन-मन मद मस्त मलंग।
अद्भुत, अलबेली कैसी छटा
घिर गई देखो काली घटा।
पुलकित है सब दिग-दिगंत
डाल -डाल बिखरा बसंत।
महके सरसों भीनी- भीनी
बहे पवन बसंती झीनी- झीनी।
नीम, आम, महुए के टेसू फूले हैं
पिया बसंती राह कहां की भूले हैं।
प्रकृति लगे वसंत में सजी-सँवरी
सजनी बिन साजन बिखरी- बिखरी।
कोयल सिमटी सकुचाती है
छेड़े तराना मधुमास ब़संती है।
मौसम है बौराया भौंरे सा
तन भी कुछ-कुछ आलसाया सा।
वीणा से गूंजा राग मधुवन
खेलूं फाग कब प्रिय संग!
गीता परिहार
अयोध्या