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आयो बसंत - Gita Parihar (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

आयो बसंत

  • 152
  • 3 Min Read

आयो बसंत

छिटके चहुँ ओर पीत रंग
आए ऋतु राज अनंग संग।

उमड़े प्रेम-अनुराग हृदय में
तन-मन मद मस्त मलंग।

अद्भुत, अलबेली कैसी छटा
घिर गई देखो काली घटा।

पुलकित है सब दिग-दिगंत
डाल -डाल बिखरा बसंत।

महके सरसों भीनी- भीनी
बहे पवन बसंती झीनी- झीनी।

नीम, आम, महुए के टेसू फूले हैं
पिया बसंती राह कहां की भूले हैं।

प्रकृति लगे वसंत में सजी-सँवरी
सजनी बिन साजन बिखरी- बिखरी।

कोयल सिमटी सकुचाती है
छेड़े तराना मधुमास ब़संती है।

मौसम है बौराया भौंरे सा
तन भी कुछ-कुछ आलसाया सा।

वीणा से गूंजा राग मधुवन
खेलूं फाग कब प्रिय संग!


गीता परिहार
अयोध्या

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Rajesh Kr. verma Mridul

Rajesh Kr. verma Mridul 3 years ago

बहुत ही सुंदर....

Champa Yadav

Champa Yadav 3 years ago

बहुत.. संदर...

शिवम राव मणि

शिवम राव मणि 3 years ago

बहुत सुंदर

प्रपोजल
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माँ
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