कविताअतुकांत कविता
आज का रावण
हर वर्ष हम रावण को जलाते हैं।
वह रक्तबीज सा फिर जी उठता है।।
दुष्ट का विनाश अवश्यम्भावी है।
युग बीते दैत्यत्व के समूल नाश को !
असत्य पर सत्य की जीत हो चुकी।
किस दैत्य का विनाश अभी बाकी है?
दम्भ और समग्रतः कुबुद्धि के रावण।
छल-कपट और अभिमान का रावण।।
निज दम्भ पल्लवित,उत्पीड़न के कारक अंदर वाले।
घर,पड़ोस ,गांव ,समाज ,राज्य, देश,श्वेत खद्दर वाले ?
घूसखोर, भ्रष्टाचारी, व्याभिचारी।
मुखोटा ओढ़े मानव रूपी रावण।।
ख़त्म करें इस रावण का।
संस्कार,ज्ञान,दृढ इच्छाशक्ति से।।
पहचाने अंतर्मन के राम को ।
न्यायप्रिय, सत्यनिष्ठ, कर्त्तव्यनिष्ठ को।।
आया आश्विन मासका शुक्ल पक्ष।
पहचानें अपने रावण सम ऐब ।।
भेद क्या हममें और रावण में जब।
मार न सकें अज्ञान को।।
आओ मारें इस रावण को।
आधुनिक युग के रावण को।।
गीता परिहार
अयोध्या