कविताअतुकांत कविता
काजल
आंखे यूं ही
तेरी नशीली थीं
लगा काजल
किया घायल था।
तेरी आँखों का काजल
है या रात अँधेरी क़यामत की
घना बादल भी न घना होगा
जितना तेरी आँखो का काजल ।
तमन्ना बस तेरी आँखों में समा जाऊँ
काजल की तरह बहा न देना आँसू की तरह
शायरी लिखूं तेरी कटीली-कजरारी आँखों पर
आंखें ही क्या कम थीं,उस पर,काजल लगा लिया।
आईना नज़र लगाना चाहे भी तो क्या करे
काजल लगाती हो उसी आईने को देखकर
बिखर गये सुरमयी आंखों को देखकर
लकीर में खींचा आँखों की हद बना काजल।
गीता परिहार
अयोध्या