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आशियाना - Dipak Kumar (Sahitya Arpan)

कवितागजल

आशियाना

  • 23
  • 3 Min Read

मेरे वीरान जीवन में
उजाला बनके आये थे
कभी वो दिन भी थे
दिल में बस तुम ही समाये थे

मगर सब ख्वाब टूटे
और चकनाचूर हो बैठे
जो मिलके ख्वाब जीवन के
कभी हमने सजाए थे

मेरे दिल में किसी के
इश्क़ की जागीर रहती थी
बनेगी दिल की रानी वो
लकीरे मेरी कहती थी
मेरा उनपे भरोसा था
वो हमको आजमाए थे

मगर कुछ साल पहले
ना जाने क्या हुआ ऐसा
किसी के बाजुओं में आशियाना
वो बसाए थे

मै कुछ भी ना समझ पाया
कि मुझको क्यों मिला धोखा
अचानक बेवफाई का कहा से
आया ये झोका
ढह गया घर इश्क का
जो मिलके बनाये थे

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