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आख़िरी ख़्वाहिश - Dipak Kumar (Sahitya Arpan)

कवितागीत

आख़िरी ख़्वाहिश

  • 32
  • 3 Min Read

चले आओ मेरे हमदम
अभी तो आस बाक़ी है
करो न देर थोड़ा भी की
बस कुछ साँस बाक़ी है
चले आओ मेरे —-

गुज़रते वक्त के संग में
गुज़र हम भी तो जायेंगे
लगाना हाँथ मैय्यत में
तुम्हे छूकर तो जायेंगे
तमन्ना है बस इतनी सी
यही फरियाद बाक़ी है
चले आओ मेरे —-

तुम्हारे संग गुज़ारे वक्त
हमको याद आते है
दिल में चुभती है तेरी यादें
अश्क़ आँखों से आते है
लुटा सब कुछ हमारा है
यही बस अश्क़ बाक़ी है
चले आओ मेरे —-

वफ़ा करना नहीं था तो
मुझसे क्यों दिल लगाया था
लगाकर दिल को दिल से
फिर आशिया क्यों बसाया था
जल गया दिल भी हमारा
यही बस राख बाक़ी है
चले आओ मेरे —

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