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कवितानज़्म
क्यापता कब कहाँपे ज़िन्दगी की सांस आख़री हो हम को हो इंतज़ारे सहर शाम ए हयात आख़री हो दरमियाँ हमारे अभी रहगई अधूरी बात आख़री हो सुब्ह हो न हो हयाते-मुस्त'आर की रात आख़री हो © बशर. bashar • بَشَر.