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रात आख़री हो - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

रात आख़री हो

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क्यापता कब कहाँपे ज़िन्दगी की सांस आख़री हो
हम को हो इंतज़ारे सहर शाम ए हयात आख़री हो
दरमियाँ हमारे अभी रहगई अधूरी बात आख़री हो
सुब्ह हो न हो हयाते-मुस्त'आर की रात आख़री हो
© बशर. bashar • بَشَر.

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