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मुसाफ़िरत का वलवला - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

मुसाफ़िरत का वलवला

  • 5
  • 1 Min Read

फ़रेब ओ धोखा ये मक्कारी क्या बला है
हर- सू आदमी से आदमी का फ़ासला है

माना कि ये ज़िंदगी पानी का बुलबुला है
फिर भी मग़र मुसाफ़िरत का वलवला है

© डॉ. एन. आर. कस्वाँ "बशर" بشر

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