कहानीसामाजिकप्रेरणादायकअन्यलघुकथा
सुख
एक चींटी हर समय काम करती रहती थी। कभी बिल की व्यवस्था करती तो कभी राशन पानी की। उसे काम करते अकर्मण्य कछुआ देखता रहता। एक दिन चींटी अपने परिवार के लिए खाना लेने बाहर गई हुई थी। लौट कर आई तो देखा कि कछुआ उसके बिल के ऊपर पत्थर बना बैठा हुआ है। चीटी ने उसके खोल पर दस्तक दी, तो उसने मुंह निकाला चिढ़कर बोला," क्या है?" चीटी बोली,"यहां मेरा घर है,यहां से हट जाओ।" कछुआ बोला,देखती नहीं,मैं आराम कर रहा हूं।मुझे यहां से कोई नहीं हटा सकता। जाओ,मेरी तरह जाकर आराम करो।" चींटी ने कहा," क्या तुम्हें अपने आलस में सुख मिलता है?" कछुए ने कहा," मैं क्या, जो भी मेरी तरह अपने हाथ पांव सभी कामों से खींच कर अपने में लीन हो जाता है, वही सुखी है।" यह कहकर कछुआ फिर अपने खोल के भीतर समा गया। चींटी तो मेहनती थी। उसने कछुए के पास से बिल बनाया जमीन के भीतर- भीतर अपने बिल में चली गई। फिर चीटियां संगठित होकर कछुए के नीचे पहुंच गई और उसे काटने लगीं। आखिरकार चीटियों के प्रहार से बचने के लिए कछुए को आलस त्यागकर वहां से हटना ही पड़ा। चींटी आकर बोली," अब बताओ, तुम्हें सुख किसमे मिला? चीटियों से कटते रहने में या अपने हाथ पांव हिलाकर यहां से हटने में?"
कहने का अर्थ यह है कि संकट आने पर हम काम करें,इससे अच्छा है कि काम करने की आदत डाल लें, इसी में असली सुख है।