कविताअतुकांत कविता
लौट आइए पापा
मेरा मन कहता है मुझसे हर पल
"आपके पापा सर्वदा ख़ातिर नहीं गए रब के पास"
मुझे भी है यक़ीन
आप लौट आएंगे इक दिन निश्चित ही।।
पर.. ये दुनिया तोड़ देती है
मेरे विश्वास को
कहती है
"रब के पास जाने वाले लौटते नहीं हैं"
मुझे नहीं होता यक़ीन दुनिया की बातों पर।।
पापा,
चले आइए एक बार पुनः द्वार पर।।
आपसे ढ़ेर सारी बातें करना चाहता हूँ,
आपके पाँवों को पुनः दबाना चाहता हूँ,
आपकी गोद में सिर रख सोना चाहता हूँ,
चरणों को स्पर्श कर आशीष लेना चाहता हूँ,
आपके संग घूमने जाना चाहता हूँ।।
किसी भी चीज़ की माँग नहीं करुंगा मैं
किसी भी कीमती वस्तु की चाहत नहीं मुझे
मेरे लिए सबसे कीमती वस्तु आप थे पापा
जो आज मेरे पास नहीं
हाँ, पापा लौट आइए ना।।
सच कहता हूँ
आपको किसी भी कष्ट की अनुभूति नहीं होने दूँगा।।
हाँ, पापा लौट आइए, ईश्वर को कह दीजिएगा
"मेरे बेटे को मेरी बहुत ज़रूरत है
जाने दीजिए मुझे
मेरे लाडले के पास"
हाँ, ईश्वर ज़रूर सुनेंगे आपकी बात
हाँ, पापा लौट आइए एक बार मेरे पास
लौट आइए पापा मेरे पास।।
©कुमार संदीप
मौलिक,स्वरचित