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आँखों का तारा - Kumar Sandeep (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कवितालयबद्ध कविता

आँखों का तारा

  • 289
  • 4 Min Read

मेरी आँखों का तारा
मेरा राजदुलारा
आज, मुझे ही
छोटी-छोटी बातों पर
चुप्पी साधने के लिए कहता है
हाँ, शायद आज वह बहुत बड़ा
और उसका पिता
उसकी नज़रों में
छोटा हो गया है।।

मेरी आँखों का तारा
मुझे पापा! पापा!
कहते थकता नहीं था
आज, मुझे दिन में
एक बार भी
पापा! कहकर नहीं पुकारता है
हाँ, आज ख़ुद के जीवन में
वह बहुत व्यस्त हो गया है।।

मेरी आँखों का तारा
मेरा राजदुलारा
मेरी उंगली थामकर चलता था
तब जब वह
चल भी नहीं पाता था
आज, मेरा लाडला
बड़ी गाड़ी से चलता है
पर एक पल के लिए भी
अपने पापा के निकट
नहीं बैठता है।।

मेरी आँखों का तारा
मेरे दिल के बेहद करीब
था, है, और रहेगा भी
भले ही वह भूल जाए
पिता के साथ गुजारे
अतीत की यादों को
मैं तो ताउम्र उसे
जी भर स्नेह अर्पित करूंगा।।

©कुमार संदीप
मौलिक, स्वरचित

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Mr Perfect

Mr Perfect 3 years ago

उम्दा रचना

Rahul Sharma

Rahul Sharma 3 years ago

(Y)

Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

भावपूर्ण और मर्मस्पर्शी रचना

Ankita Bhargava

Ankita Bhargava 3 years ago

बहुत बढ़िया

Poonam Bagadia

Poonam Bagadia 3 years ago

कटु सत्य

प्रपोजल
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