कविताअन्य
***** . राधा नागर *****
राधे कांधे तव प्रीति की मैं क्या करूँ छोटे मुख से बखान l
जा में तिरि तव लोक गयो सूर, रहिमन और रसखान l
मीरा तव चरणन की प्रीति में सदा रही मतवाली l
अमृत जानि पानि कियो, जो पति ने दीन्हो विष की प्याली l
अतिशय ज्ञानी उद्धव रह्यो, निर्गुन का आधार l
गयो सिखावन मधुवन में गोपिन्ह दीन्ह सुधार l
राधेकृष्ण मोहि राखियो तव करुणा की छाँव l
माया बंधन से मुक्त रहूँ, गहू तव कमलवत पाँव l
राधा नागर तव कथा अलौकिक और अनन्त l
सेवा में नित लगे रहत भक्तिभाव सब संत l
मोरी मति छोटी भई महिमा बरनि न जाई l
जब भी मन पथभ्रस्ट हो तबहि होहि सहाइ l
आप बिना अवलम्ब न कोई ना दूजा आधार l
दीन जानि मति बुद्धि मेरी रखिओ सदा निर्विकार l
(आलोक मिश्र )