कवितालयबद्ध कविता
करना चाहता हूं मैं तुम को आलिंगन
इसका तात्पर्य कदापि नहीं वासना मिलन
अनेक बार होता है इसका अर्थ
करना चाहता हूं तुम्हारी आत्मा तक स्पर्श
रोम रोम तक खोजना चाहता हूं तुम्हारे मन में
छुपा लेती हो जो अनंत प्रेम को अपने मन में
मैं हृदय से लगा कर नैनों से तुम्हारी
प्रेम से अवशोषित करना चाहता हूं बहुमूल्य व्यथावारी
तुम्हारे शुष्क, बेजान से जीवन को
प्रेम बौछार कर सींचना है
अव्यक्त सात सुर जो है तेरे धड़कन के संगीत
समझ कर शब्द पिरो कर बनाना चाहता हूं प्रेम गीत
प्रेमिल स्पर्श कर तुम्हारे रोम रोम को
रोम रोम में ढूंढना चाहता हूं स्वयं को
यह वासना नही है मेरा निश्छल,संपूर्ण समर्पण है
तुम्हारे लिए हृदय के अथाह प्रेम का तुच्छ दर्शन है