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मन की आवाज़ - Kumar Sandeep (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

मन की आवाज़

  • 214
  • 4 Min Read

औरत के मन की आवाज़
नहीं सुनाई पड़ सकती है
उस शख़्स को
जिसके लिए औरत है महज
उपयोग की वस्तु।।

औरत की शख्सियत के संदर्भ में
नहीं जान सकता है वो शख़्स
जो छोटी-छोटी बातों पर
लात घूंसों से जी भर पीटता है
औरत को।।

औरत परिवार खातिर
अपनी ख़्वाहिशों की आहुति देती है
इस बात को नहीं समझ सकता है
वो शख़्स, जो
जिसकी नज़र में बैठी है ये बात कि
औरत का जन्म ही हुआ है
प्रताड़ित होने के लिए
अपनी ख़्वाहिशों की परवाह
नहीं करने के लिए।।

औरत के अंदर संवेदना के प्रतिशत
की मात्रा सर्वाधिक है
इस बात को नहीं समझ सकता है
वो शख़्स, जिसकी नज़र में
औरतों के ख़ातिर
आदर व सम्मान की भावना है
अत्यंत न्यून।।

©कुमार संदीप
मौलिक, स्वरचित

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Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

भावपूर्ण और मर्मस्पर्शी..!

Kumar Sandeep3 years ago

धन्यवाद सर

नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 3 years ago

बहुत ही संवेदनशील रचना है सन्दीप बहुत कठिन विषय पर लिखा है।

Kumar Sandeep3 years ago

जी मनःपूर्वक आभार माता श्री

Kumar Sandeep3 years ago

जी मनःपूर्वक आभार माता श्री

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