Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
कविता - Alok Mishra (Sahitya Arpan)

कविताअन्य

कविता

  • 30
  • 3 Min Read

जीवन यात्रा में जो भी मिले,
सबहि राखिये संग l
यहि भाँति सबहि को साधिये,
जिमि काया से सधे रहत सब अंग l
सबकी अपनी अहमियत,
सबका अपना मोल l
रुई पाथर को कबहुँ नहिं,
एक बटखरे तोल l
पानी को ही देखिये,
निज आकार न कोय l
जैसे बर्तन में पड़े,
आकार वही धरि लेव l
मनुज कि संगति पड़ता,
उसपर बहुत प्रभाव l
जैसी संगति में पड़े,
वैसो होत सुभाव l
एक ही खेत में उपजै,
मिर्ची अउरो ईख,
गन्ना देत मिठास हौ,
मिर्ची लागत तीख l


( आलोक मिश्र )

17271867842583145075564001963611_1727186886.jpg
user-image
प्रपोजल
image-20150525-32548-gh8cjz_1599421114.jpg
दादी की परी
IMG_20191211_201333_1597932915.JPG
वो चांद आज आना
IMG-20190417-WA0013jpg.0_1604581102.jpg
माँ
IMG_20201102_190343_1604679424.jpg
चालाकचतुर बावलागेला आदमी
1663984935016_1738474951.jpg