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जाग-जाग री । - Anil Mishra Prahari (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

जाग-जाग री ।

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जाग-जाग री ।

कौन तुझे अबला कहता है
शक्त, सबल हे नारी,
तू खुद को पहचान, जाग
कर सिंह की पुनः सवारी।

घूम रहे नर-व्याल गली में
मगर नहीं अब डरना,
कर डटकर संहार खलों का
अश्रु नयन मत भरना।

जाग-जाग हे जाग देवियों
सीख युद्ध के कौशल,
अंचल में तो स्नेह मगर
हो तीव्र खड्ग भी करतल।

आत्म सुरक्षा हेतु देवियों
कर कृपाण अब धारण,
दुर्दिन, पीड़ा व अभाव के
तू खुद भी है कारण।

आत्मसमर्पण पाप , पुण्य
है मूल्यों पर लड़ जाना,
आत्म सुरक्षा हेतु राह में
पर्वत - सा अड़ जाना।

मिला किसे सम्मान धरा पर
कायरता से, डर से,
इस धानी चूनर के बदले
कफन बाँध अब सर से।

अनिल मिश्र प्रहरी ।

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