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पिआ जिन ए भइआ - Alok Mishra (Sahitya Arpan)

कविताअन्य

पिआ जिन ए भइआ

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  • 7 Min Read

प्रबुद्ध रचईता, लेखक तथा पाठक गण कुछ घटनाएं ऐसी होती है जो हमारे अंतर्मन को सहज प्रभावित कर जाती हैं l ये एक सच्चा विषय है एक दिन ग्राम प्रधान जी के साथ ग्राम पंचायत सचिवालय में बैठा था l एक महिला प्रवेश करती है बताती है कि उसका पति शराब पी कर मार पीट किया है उसका हाथ लहूलुहान हो गया था जो शायद चूड़ियों के टूटने तथा चुभने से था l महिला के पति को समझाया बुझाया जाता है l उसी को कविता के रूप में आप के समक्ष सादर प्रस्तुत कर रहा हूँ l

शीर्षक है ----पिया जिन ए भइआ


पीआ जिन ए भईया जिनगी ओराई जाई l
धन जन अउर सेहत सब कुछ बिलाई जाई l
पीआ जिन ए भईया जिनगी ओराई जाई l
तोहरे पियले से राजा बड़ी परेशानी बा l
बिक जईहे जउन बाप दादा के निशानी बा l
पी के मेहरारू अउर लईकन के मारइ ले l
आपन तो नाश कईले सब कई बिगाड़इ ले l
नाहीं मानिबे तो समई से पहिले तोहार टिकठी बंधाई जाई l
नान्ह नान्ह लईकन पे आफत भहराई जाई l
पीआ जिन ए भईया जिनगी ओराई जाई l
बूढ़ महतारी बाप जियत मरी जाई l
तोहार जे जिनगी के साथी उ अकेल पड़ि जाई l
पिआ जिन ए भइआ जिनगी ओराई जाई l
छोड़ि के ई लत आपन जिनगी के खेवा l
नाहीं तो लइके, नान्हे होइ जईहे बनेवा l
तू तो हउआ राजा बाबू यहि ते तोहे समझाई l
नाहीं हवे जड़ी बूटी कि ओका घोरि के पिआइ l
सुधरि जो गइला बाबू जिनगी समहराई जाई ल
पिआ जिन ए भइआ जिनगी ओराई जाई ल
धन जन अउर सेहत सब कुछ बिलाई जाई ll


(आलोक मिश्र )

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