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"के"
कविता
सपने अधूरे बचपन के
विधुर पुरुष
जिंदगी के पन्ने
ले आना
बंधन
ज़िंदगी
"तेरी-मेरी दोस्ती
मोहब्बत का मकां
खुद में खुद के लिए अभि ज़िदा हूँ मैं (स्वाभिमान)
कवि हो जाना
पहिया
"फुर्सत के दो पल"
अकेली बेंच
बुरा क्यूँ मानूँ
मैं और बनारस के पथरीले घाट
मगर मै न था
उम्र के दायँरे
पहले के जैसे
सबके दिल में
आना मेरी गली
बिना स्वार्थ के सारथी बनो
मैं मजदूर हूँ
जीवन के रंग अनेक
मौत के शिकंजे में जिंदगी
दरबदर खुदा खुद के दर से
"ज़िन्दगी के पल"
धुंधलापन ------------------------ इस रात के घने अंधेरे में मैं देखना चाहता हूँ चारों ओर इस दुनियाँ का रंग रूप पर कुछ दिखता नहीं पर मन में एक रोशनी सी दिखती है | बस हर तरफ से नजरें हारकर बस उसकी तरफ मुड़ जाती है दिखती है वह दूर से आती हुई पर उस
यादों के साथ सफर
गुरु के नाम
प्रेम विश्वास के बिना
हम उस देश के वासी हैं
एक खत इच्छा के नाम
कव्वाली-बच्चों के नैतिक मूल्यों पर
माँ की आँखों के तारों
सम्भल जा ज़रा
हिन्द के वासी हम , हिंदी है अभिमान ...
दिल के सांचे में अश्क ढलता है
क्या है आज के अखबार में
काँटों के बीहड़ में खिले गुलाब
नये दौर के बच्चों में नादानियाँ कहाँ रही
जब हम किसी के प्यार में होते हैं तो
मौला.....! तू करम करना
सवाल करेंगे
बिगड़े हुए लड़के।
मायूसी
तब मैं लिखता हूँ
रिश्तों के नाम
वह जो मेरे हो न सके
उसने कहा
मेरे गले में
भारत के लाल
दुख के दिन
इंसानियत के नायक
मंजिल
बेटी के नाम
राजा-रंक सभी फल ढ़ोते
मां के नव - रूप
बदल लिया है
तुम क्यों शोक मनाते हो?
तू नहीं प्यार के काबिल
बिना सीढ़ियों के
वो सब किया
अच्छा लगता है
बच्चे मन के सच्चे
बाहुबलि कौन
सत्ता के नशे मे चूर हो
बच्चे मन के सच्चे
शरारत
राज के दोहे "पाखंड "
अल्हड़ ग्राम बाला
गुड़िया की चाह
जिंदगी
नायिका के मन की बात
राख के ढेर
उम्मीद के दीप
हे! देशभक्त जाँबाज वतन के रखवालों
हम लड़के हैं।
मुझे उनके आने का पैगाम देना
वो खेत में खड़ी
मन क्यों बहके रे बहके
गुड़िया की चाह
कुछ एहसास हैं भिन्न
कुछ पल बैठिए उनके पास
शायद दूर तक सफर कर रहा हूं
मेरे सवाल पास में उनके पड़े हुए
कुछ लड़के
कुछ तीर तुक्के
2020 तुमने सिखलाया भी है बहुत कुछ
जग के उर्वर आँगन में
अपनो के सपने
#इकरार
जात आदमी के
कुछ बहके हुए ख्याल
शीत के दोहे
ऐसा हिंदुस्तान कर दे.....
शहीदो के नाम दिया जलाते है
आओ हम माँ के तिरंगे आँचल को सँवार दें
एक दीया शहिदों के नाम
सैनिक संभालते हैं ख़ुद को
"हमारा हिन्दुस्तान"
शहीद सैनिक का शव
खूंटी पर टंगी वर्दियां
शत शत नमन
शत शत नमन
खूंटी पर टंगी वर्दियां
सौगात तिरंगे की
ससुराल लौटती बेटियां
एक दीया शहीदों के नाम जलाएँ
भारत का बेटा हूँ मैं
देश मेरा महान है
अमर शहीद
एक दीया सेना के नाम
एक दीया शहीदों के नाम
देख ये कौन चलें हैं
जनवरी 26 सन् 21
भारत माता की संतान
# शहीदों की याद में एक दिया जलाये
एक दीया शहीदों के नाम करते हैं।
एक दूसरे के पूरक है हम
#चित्र प्रतियोगिता (बचपन के वो दिन)
कहाँ गए वो बचपन के दिन
#बचपन के पल...
प्रेम पेड़ के मानिंद है
वो बचपन के दिन
दिल खोल के लुटा देती है..
एक चॉकलेट उनके लिए
सवालों के बेहतरीन जवाब
भारत के वीर सपूतों को नमन
आया बसंत झूम के
ऋतुराज आया
ऋतुराज बसंत
अंखियों के झरोखों से
आया बसन्त झूम के
ऋतुराज बसंत है आया
आया बंसत झूम के
'मधुमास'-ऋतुराज बसंत
प्रकृति की सुंदरता
तेरी आंखों के पैमाने
मेरी जिंदगी में चली आना
दूर है
अस्तित्व की आवाज
अस्तित्व की आवाज
मन के आईने में
सरसों के फ़ूल
मुस्कुरा कर वह कह के चले गए।।
मन के भाव
बच्चा एक अकेला
तेरे जाने के बाद।
मन के भाव
चाय के बहाने
चाय के बहाने
बया के घोंसले सी
मन के जज्बात
प्यार के रंग
कचरे के डिब्बे में भरा कचरा
मन तन के पार
मन तन के पार
आपके ढेरों उपकार हैं माँ
सियासत
सफेद गुलाब के फूलों का दीदार
भूले-बिसरे चंद लम्हों के हवाले
"पुरानी डायरी के बंद पन्ने"
नदिया के पार
धूप के आर पार
रात के आकाश में जागता एक चांद
गौरैया के बच्चे
मिट्टी के आँगन
बूढ़ा भगत
कांच के गिलास में
आज़ादी के दीवाने
केवाड़ी डोम काटत !
"एक रंग प्रीत का रंग दे मुझे"
मतवाले होली के *
असली फूलों के दीदार को
ज़िन्दगी के रंग
कोरोना वायरस और प्रकृति
ब्याह के लड्डू*
एक नारंगी रंग के फूल सा
बुढ़ौती में हमरा के लव होइ गवा..!
"गीत मिलन के"
फूल के चेहरे पर
मैं मरूँगा
ये बच्चे अच्छे होते हैं...
हाशिए पर सैनिक
माँ भारती के गहने
"मैं एक चिड़िया प्यारी "
धरती कहे पुकार के
जरा दिल को थाम के
हालात
कोरोना से हार चुके क्या ईश्वर से ये कहे बेचारे?
काँटों के बीहड़ में खिले गुलाब
हाथ चल उठे
प्रार्थना
मैं एक फूल सी कोमल सुकन्या
जीवन के सपनों को
चंद लम्हों के हवाले
प्रार्थना
प्रार्थना
मील के पत्थर
एक कड़वे सच के आईने में
प्यार के भंडार से
मेरे मन का मधुबन
वह गुलाब के फूलों का बाग
धूप के कारण
ऐ सूरजमुखी के फूल
यादों के धागे में
यादों के धागे में
एक मृतक के समान
अकेले हम
हाइकु
मैं अकेली
उसकी बाजी उसके मोहरे
सपने मनु शतरूपा के
पाप के कलश
मेरे पापा
इंतजार
💐💐"लड़कियों के बचपन से पचपन तक का सफर💐💐 "
खो गये दिन मुहब्बत के
दीवार
पंछी निराले रंगीले।
क्या कहती अल्फाबेट
चांद
धागे प्रेम के
दोहा
मैं तो तो अकेला ही चला था
नारी के जीवन में इतवार नहीं आता
नीलाम्बरी काया
मनके
बन के परिंदा
झरने प्रीत के
गीत प्रेम के गाऊँ
आशाओ के दीप जलाऊँ
मैंने आज बस इतना किया
सत्य अहिंसा के पूजारी....
पिया अलबेली हूँ
तेरी यादो के अंजुमन में
आसमान के पार
खुशी के आँसू बहा के देखो
दिये तले अँधेरे
वाओ क्लासेस
चाय
जिंदगी की डायरी
गणेश के स्वरूप
✍️You were the only one, my father
मायका मेरा मायका हां हां मेरा मायका
मैं तो तो अकेला ही चला था
समय के हस्ताक्षर
नहीं दे सके साथ
वक्त के इस काफिले में
वक्त के इस काफिले में
विवाह के बाद
आसान नहीं हैं, किसी के साथ जीना
अपने सपनो के लिए
होली के ये रंग
वक्त के इस काफिले में
किस राह के हो अनुरागी
अखबार ए खास
शिवाजी
वर्तमान से वक्त बचा लो तुम निज के निर्माण में द्वितीय भाग
टूटी पलक
आओ और सराहा जाये
हवा
लोगों के चेहरे
धारणा
भारत रत्न
ठाकुर का दुर्भाग्य
मेरे ही घर में पूछ के लाया गया मुझे
वक्त
हर किसी के हाथ में अब आंच है।
धर्म के प्रति उदासीनता
मरते किसान नहीं, मर रही हमारी आत्मा है।
ग़रीब के घर सपने नहीं होते
किसी काम के न रहे
भरोसा हौसले पे रखो
सावन के महीने में कोई बड़ी शिद्दत से याद आता है
वक़्त मिलता ही कहाँ है बशर जिंदगी को संवरने के लिए
दश्त -ओ -शजर के साए क्या काम आए
सपनो के वास्ते
न्याय के लिए,,,
तू ख़ुद यहाँ पर बशर जबतक किसीके काम का नहीं
सुलझाए अव्वल हालात घर के
मानाके मौसम तेरे शहर का दिलकश और सुहाना है
बशर ज़ेरे-ए-असर आकर दामने-कोह के सहन में बस गया
दर्द किसानों के वो क्या जाने
सुब्ह का इतजार करके देख
मकाँ के भीतर हरसू घुप्प काला अंधेरा था
शिद्दत और बढ जाती है उनके याद आने की
इन्सानियत के लिए फ़रियाद करें
जिंदगी मिली है जीने के लिए
हिज्र-ओ-फ़ुर्क़त में हबीब के कभी बसर करने का इरादा भी नहीं है
ख़त में उसके आज भी वही ख़ुश्बू आती है
ज़रूरी नहीं के हर मुफ़लिस बिकने वाला हो
यायावर फकीरों के मुकद्दर में कभी कहीं घर नहीं आता
जीने के लिए सारा जग भागे
अज़ीज़ मुझे समझ न सके अजनबी मग़र समझ गए
अमन का रास्ता बातचीत के द्वार से होकर गुजरता है
है गुफ़्तगू भी लाज़िम राब्तों के वास्ते!
साथ जिस शख़्स के हमेशा तुमने शराफ़त की होती है बशर
प्रभु के प्रति रहें कृतज्ञ
राब्तों का रास्ता नहीं मिलता
ज़ख़्मों का ईलाज तेरे तबीब के पास नहीं
दिलों के रस्ते नहीं मिलते
हवाले किसी के ना अपनी औक़ात कर
सुधार आगे के लिए परिवेश
कोई येह तो बताए के हिंदुस्तान और भी है
लोगों के जज़्बात बदलते हैं
कमाल तो है मग़र बुलंदियों पर टिके रहने
झरोखे यादों के
बीर की निशानी
राखी के धागों में है पिन्हा बहन-भाई का प्यार सलामत
जनता हर पल बेचैन
अना के मरीज़ की बशर दवा क्या है
आता नहीं है बशर कभी फ़न कोई उस्ताद के बग़ैर
फ़न कोई उस्ताद के बग़ैर आता नहीं
पीछे रहबर के क्यूं चलें बशर जब हम अपनी ही डगर चलें
जीने के अहसासात गुजारे हमने गाँवमें अपने
धूप में जले हम छांव के होते हुए
हंसने के लिए बशर रोनेको तैयार हो जाता है
जीने केलिए बंदा मरने को तैयार हो जाता है
बोली भाषा मज़हब की दुहाई देनेके आदी लोग
जमाने गुज़र जाते हैं बशर खुशियों के आने में
कर्मों के बल पर बदल गए
*अपने तो बस नाम के होते हैं*
*जीने के हुनर भूल गए *
*खिलता है चमन बरसात के बाद*
*है तसव्वुर के भी पार बशर*
घिर आए यादों के बदरा
करते रहिए भूमिकाओं का निर्वाह
जिंदगी ही सिखाती है सबक जिंदगी के
बेटी की बिदाई के वक़्त पिता द्वारा बेटी को दिया गया वक्तव्य
जनता के हिस्से सिर्फ हलाहल
*मेयार ए बुलंद के मिज़ाज क्या हैं*
*एक नदी दो तीर*
*कलम दवात के सहारे हैं*
*ये सिक्के इन बाजारों में नहीं चलते*
*जीने के लिए मरता हूँ मैं*
उजालों के भी अदब हुआ करते हैं
रौशनाई के भी अपने उसूल ओ अदब हुआ करते हैं
बड़ा फक्र था
मुश्क़िल हालात में
बची हुई यादाश्त है
कैसे कहें के वो हमारा हमसफ़र हमदम नहीं
सीतमगार 🥺
सफ़र से गुजरता हर कोई है
*हालात वक़्त वक़्त के अपनी जगह*
सरपर ले लिया पत्थर उछालके
बरबाद और आबाद ❤️
इक दूजेके सहारा न हुए
क्या लिखा जा सकता है???
*सरपर कुछ नहीं आस्माँ के सिवा*
ऊन के गोले और मां ककी सलाइयां
ऊन के गोले और मां की सलाइयां
रोया मग़र बशर गोया आकर दिसम्बर के महीने में
हालात से निराश नौजवान
वजूद हमारा कायम अख़लाक के भरोसे
इबादत केलिए न इल्मो-हुनर चाहिए
तवज्जोह किया करो दिलके मकान की
आदमी ही आदमी के काम आता है
*खजूर पर लटके*
*शाद रहने केलिए नाशाद रहता है*
वोह फ़ना हो जाते हैं सचके हकपर खड़े रहने में
किसी और के कब दीवाने हो गए
किसी के लिए किसी में कोई खास बात होती है ©️ "बशर"
हैं औरभी मुख़्तलिफ जानवर-जात दुनिया के जंगल में हर किस्म के मग़र आदमजात के बदरंग किरदार का सूरत-ए-हाल ही और है
आदमजात के किरदार का सूरत-ए-हाल और है
साल ये बेमिसाल बदले
उसके हबीब की भी बातें सुनी
टिके हैं कैसे पांव आसमान के जमीन पर
वस्ल-मुलाक़ात के तहज़ीब को न भूल जाना
रास्ते सफ़र के बहुत हमने बदल बदल कर देखे
तेरी इक झलक पाने केलिए आतुर
"सफलता के शिखर"
मुस्तक़बिल के अपने खुद ही खुदा होंगे हम
मुस्तक़बिल के अपने खुद ही खुदा होंगे हम
हरसूरत हरसू हरशय के हालात पर लिख
काटे नहीं कटती रात
अखबारों में छप जाने से नाम नहीं होता
पूछते आना बशर चैनो-अमन के दाम
अच्छाई ने हमको बुराई से सिला दिया
होगी इन्तेहा-ए-जहां आदमी के बग़ैर
रिश्तों के मरने से पहले
खुदही बशर खुदके रहबर
उम्र-भर के लिए सो जाएंगे
विश्वास के दीप जलाए हैं
जिगर का टुकड़ा बिछड़ जाता है
खुद केलिए बचाकर अंधेरा रखा
काफ़िले किसीके वास्ते रूकते नहीं है
मतपूछ मकाँ किधरगया मकीं किधर गए
जिंदा भी हैं के मरगए इतनी तो ख़बर रखो
खुदा बचाए रुस्वाई के अज़ाब से
मुंतज़िर दोनों तरफ़ अहबाब मुलाक़ात के
मुंतज़िर हबीब के
बुर्के पर नक़ाब लगाकर आया
मुक़म्मल कभी सपने हो न सके
दिल से दूरी थोड़ी हैं
सूना है फ़लक महताब के बग़ैर
नहीं बसर करने के लिए किसीने पूछा
ज़हर के हो गए
चांद के ख़्वाब न देखा करो
मेहनतकश नसीबों के मोहताज नहीं होते
भीड़ है जिसमें सभी अकेले हैं
जफाओं के लिए मैं वफ़ा सोचूं
मतलब के रिश्ते टिकना मुश्क़िल
जख़्मे-जिगर सहलाने केलिए
इधर से गुज़र जाने के बाद
वक़्त नहीं हमको
भुलाने के काबिल हैं
जंग मनों के भीतर चलती है
घरोंदे राब्तों के रेत पर
सभी अकेले बेइंतिहा बेशुमार होते हैं
फ़सादी के पास होता दीमाग आधा है
खोटे सिक्कों के जोर से
अपनों के ही सुख में अपना सुख देखा
दिल टूट जाने के बाद
जमीं के अंधेरे उजारे
बड़ी जंग अकेले में लड़ी जाती है
बुरे वक़्त में लोगों के काम आता है
मर्द के औक़ात की
महरूम कर दिया दादू को पोते के दीदार से
जिस के पैरों में फटे बिवाई
क्या आखीर-ओ-तासीर से भी बचकर निकल सकते हो
वक्त के विरुद्ध
जीने केलिए जगह नहीं
बेटी के घर लाया गया है
सीसे के उस पार देख
अब्र बनके मानसपटल पे छा गई
मेहनतकश 'ऐश-ओ-'इशरत केलिए रोता नहीं
सपनों के महल
काफिया पैमाईश के बग़ैर
केशों से तुम कह दो-कविता
मसर्रतों के गीत
मां - बाप के पास बैठ जाया करो
चमन के हालात बदले
अकेला अब्र बेचारा कहाँ कहाँ बरसे
ये दौर अलग
इंतज़ार में हबीब के
वीर चरणों के स्पर्श से...
परिंदे के दिल से कफ़स निकालना है
गैरों से ज्यादा अपनों के ग़म मिले
बेटा उसके लिए फ़रिश्ता है
वक़्त के घाव वक़्त के साथ खुद ही भर जाएंगे
खुद को बहलाते रहे
न रही किसीसे उम्मीद
अकेले कैसे जिया जाता है
अल्फ़ाज ना कर सके बयाँ
हिजरत
है बशर तैयार
रंग जाओ दिल के रंग में
रंग जाओ दिल के रंग में
दो जून केलिए
जीने केलिए तैयार रहो
मुझमें ही रह के मुझ से फासला भी कमाल का है
खुदको समझाने केलिए तैयार रहो
मुकाम का पता नहीं
जीने केलिए मरना पड़त है
सुकून का सबब बनो
किसीकी शाम -ए -तरब बनो
ख़राब वक़्त में हमने अकेले ही दिन बिताए
लिख दे दो जून के निवाले
दिल के काशाने में है
बिछड़ते हैं फितरते-अना और सवाले नाक से
प्यार हो तो हद-ओ-हदूद के पार हो
लोग सुबह के अख़बार क्यूँ हैं
कांटे न बिछाइये इस क़दर
बंदपड़े अपने घटके पट खोल
फिरसे बिछती बिसात हर मात के बाद
मुश्क़िल है जगह पाना लोगों के दिल में
किसीके होकर भी देखो
किसी और केलिए रोकर भी देखो
मुझको मिला वो सिला किसीके पास नहीं मिला
मझधार में लाकर रख दिया
बताएं क्या नुक़्स आपको मय के बशर
शब -ए-ग़म बदनाम हो गई है
कुछ लोग मेरी पसंद के भी होंगे
मेरा नाम नही 🥵
खुद के साये से भी हैं महरूम
आदमी बेचैन है सांसभर चैनो-अमन केलिए
हमतो अपनी गलतियों केलिए मश्हूर हैं
खुशी के पास कामयाबी की कमान है
शुक्रिया मेरी जिंदगी में आने केलिए
जीने के लिए मरना पड़ता है
सच खड़ा अकेले में
लाशें उठाके जनाज़ा चली
इन्सान बस खुश रहा करे
अगर मां नहीं
दिलके काशाने में हमारे सनम हैं
दिल के काशाने में खुदा रखते हैं
अंदेशा न था साजिशों के राज पर
माँ के हाथ का साया है
उसके नहले पे दहले हैं
कोई किसी केलिए ज़रूरी नहीं हो सकता
मौसमों के मिज़ाज बदलने का मजा लिया कीजिए
मनके पिंजरे से हिरासत न गई
हसरतों के पगडंडियों पर बढ़ने लगा हूं.....
आप क्यूँ हैं उनके बिना नाखुश
"बशर" फिरभी अकेला था
विदेशी शहर
मन मेरा ऐसे ही बरबस बिहंस गया........
बचाने के प्रयत्न हज़ार करते हैं
मनों के मिलने से घर बनता है
आख़िर ज़हर तो पीना पड़ता है
ख़्वाहिशों के रस्तों से उफ़क तक जाना है
डूबने केलिए इक जिंदगी चाहिए
तुम कितने दूध के धुले हो मैं जानता हूँ
तुम्हेभी कोई ग़म नही हमें भी कोई ग़म नहीं
नेकी क़बूल हो गई है खुदा के घर
आज और कल बिगाड दिए
सामने आकर खड़े हो गए ग़म ए हयात
आदमी अकेला है
मंज़िले-मक़्सूद कुछ नहीं है खाक के सिवा
व्यर्थ न जाने पाएं तौला हो के मण
सबके क़िस्मत में होता नही हंसाने वाला
दोस्तों से हारा हो
आप पर हमें ऐतबार है
सारा शहर उसके जनाजे में निकला इक वो न निकला जनाज़ा जिसके तक़ाज़े में निकला @"बशर"सारा का सारा शहर उसके जनाजे में निकला
तमाशाई सभी बवाल के हैं
मनहूस जगह है जमाने केलिए
आग बरस रही है आसमान से
जून की उसके नसीब में नहीं है
इन्सां संभल जाता है तूफ़ान-ए-हवादिश से निकल जाने के बाद
गांव के सपनों से भी गए
नाम केलिए बदनाम हो जाता है
मुसबत ख़याल के लोग
जीत के क़रीब होता है
मन के पट खोल दिया करो
उम्र ए तमाम हुई इंतज़ार करके
आने जाने के दरमियाँ ज़ालिम ज़माना पड़ता है
जिंदगी तिरे लिए हमने मरके देख लिया
हर रहगुज़र-ए-सफ़र से गुज़र के देख लिया
खून पसीना बहाना पड़ता है
अकेलपन की राहों अकेला मुसाफिर मै
अंजाम दोस्ती के फ़ना का न होता
राब्ते रह गए मतलब के वास्ते
अभिव्यक्ति” के शाश्वत गरिमा से....
आशियाना
कुछ पल 🥹
जीत नहीं सकता है किसी केलिए
एक फूल के खिलखिलाने से
इश्क़ 💔🥀
चमके सितारे नसीब के
बिनआग के ही आग जला देते हैं
कहने केलिए तैयार रहो
बाद मरने के क्यूं ज़माना मेरा दीवाना हुआ
भगवान भी प्रतीक्षा में घर के बाहर खड़े हैं
ख़बर नहीं के वो मौत की क़तार में है
आंखें ही बेच देंगे तुमको ऐनक देने का वादा करके
भैंस के आगे बीन बजाने का क्या फ़ायदा
मुक़म्मल किसीके इश्क़ का ख्वाब नहीं
कभीतो ग़रीब के घर बरस जाया करो
वापस घर लौट कर भी जाना है
खुद क्यूँ खुद केलिए बुरा सोचो
मां के जख़्म भरें दवा पुरानी डालकर
राजी हमसे कोई था ही नहीं
मसाइल सारे लोगों को लड़ाने केलिए
शीरीं किसीकी हुई नहीं फ़रहाद के बग़ैर
घर के दीवारो- दर के दायरे में कैद है
अपने-आप से जमा-खर्चे के हिसाब मांगे
उसके आने के बाद बरस
रैनबसेरे के मेहमानों की बात क्या करें
किसीके काम आएंगे तुने बनाए मकां ये सदन
एक पेड़ माँ के नाम
दूसरों की जान बचाने के लिए 🥹🥀
सिवाय अच्छाइयों के बाक़ी कुछ बचा ही नहीं
बिखर जाने दो सपने बीती रात के
हमभी मर जाएंगे वो भी मर जाएंगे
बिनमांगे हरशय हुई मयस्सर
मरजाएं ज़हर खाकर
कर्म के सज्दे में सर करने वाले
सबके सब बे-असर हुए
गलेतक पीने के बाद
जिंदगी के सफ़र में बशर वापस जाना है
सुकूनै-क़ल्ब केलिए नींद ज़रूरी
बग़ैर गलतियों के तो कोई तजुर्बा ही नहीं
यादों का सफ़र
बग़ैर तहज़ीब-ओ-तमद्दुन के दी गई तालीम
मसर्रतों के चुरा लो अवसर थोड़े बहुत
देश के रास्तों पर शूल
बंदा तक़दीर के भरोसे ही रहता है
न जाने किस तरह के ख़यालों में खोते जा रहे हैं
शर्मसे सरझुके हमारा बेसबब सरझुके अगर किसीका
तन्हा हैं 'बशर' हम अकेले
ये ज़िन्दगी के रेले
मां-बाप केलिए बेटोंसे बढ़ कर रही हैं बेटियाँ
तेरे अहसास के मयकदे जाते हैं
शाम क्या रुके प्रभात क्या रुके
शामोसहर गरीब के घर आम होती है
लोगों के दिलों में जगह बनाकर
प्रकृति के नियम
साये में उसके कभी बैठा नहीं कोई बशर
तौर-तरीके तर्ज़ेअमल उस्लूब-ए-वफ़ा-ए-वतन हम नहीं समझे
उस्ताद-ओ-मोअल्लिम हमारे मां-बाप के बाद है
रंजीदा हर शख़्स के सूरते-हाल पर संजीदा हो जाना हरदम उनका
मंहगा पड़ता है उल्टी नाव खेना
कमाने के लिए घर से निकलना पड़ता है
मौत न जाने कहाँ मर गई
साथ उसके शराफ़त रहे
किये जा रहे थे बसर कर के ख़सारा
मसर्रतें जीत के दीदार की
दरिया के संग बहते हुए किनारें हैं हम
बबूलके पेड़ बोकर बशर आम कहाँसे खाएगा
ऐसा करके दिखाएं कि निंदक शर्मिन्दा हो जाएं @"बशर"
हज़ार किन्तु लगाये हैं इक हां के साथ
जाहिल ही रहे जज़्बातों के फ़लसफ़े पढ़ने में
मुहब्बत के चराग़ जलाते चलें! @ डॉ.एन.आर. कस्वाँ"बशर"
घर आंगन के हर इक कोने कोने महका दिए
काम केलिए निकल जाया करो
आशिक़ी अक़्ल के बोझतले दम तोड़ जाती है
ज़ौक़-ए-परवाज़ केलिए खुला आसमान है
भोली सूरत के चेहरों पे मासूमियत ऐसी है
मिरा ही साया निकला मैं जिसके पीछे चला
असामान्य काम को अंजाम देने के लिए तैयार करती है
शाद मिज़ाज मा-बाप में निशानी विषाद की
वक़्त कहाँ है
हमेशा शिकायतों के समाधान ढूंढते रहें
बेवज़ह लोगों केलिए दुनियामें कोईजगह नहीं है
आपके नाप के नहीं रहे हैं
क़ामयाबी केलिए तुम्हारा यक़ीन ज़रूरी है
ज़माना क्या कम है रक़ाबत केलिए
कुछ वक़्त केवल अपने साथ बिताना चाहिऐ
सुकूने-क़ल्ब हवा हुए के इतने ग़रीब हुए
भीड़ में खोने की बजाय अकेले चलने का हुनर रखो
आपके अलावा आपके साथ कोई नहीं
आप मुक़म्मल दुनिया हो अपने घर केलिए
अक़्ल के अंधों को कुछ नहीं दिखाई देता है
दोस्त हमेशा दोस्ती निभाने के फ़र्ज़ के लिए होने चाहिए
अपना ही तमाशा क्यूँ बनाएं हम
माटी के पुतले को बनाने वाला कूज़ा-गर स्वयं भगवान है
तीरगी को उजालों के हवाले कर दो
इस जहाँसे आगे जहाँ औरभी है
क्या मर्द अपने प्यार केलिए मर सकता है
ये शेरो-सुख़न उसे बुलाने केलिए है
जगना पड़ताहै सुब्ह फिरसे उड़ने केलिए
मन के जीते जीत
कमाल के जां- ओ- जिगर रखते हैं
ज़िंदगी को हांकना पड़ेगा उसके हालपर
डूबने के डरसे कश्ति में सवार नहीं होता
गुज़र गए मीलके पत्थर मरहले मकाम राहे-सफ़र
किरायेदार उस के मकान में है
तूफ़ान जिसने देखा वो नाख़ुदा लहरों से हारा
आईने के समने सबको खुदका दीदार होगा
खुद केलिए सच्चा रहने वाला दूसरों केलिए झूठा नहीं हो सकता
याद आते हैं सिर्फ़ भुलाने केलिए
पता ही नहीं लगने देते इस्तेमाल करते हैं के चाहते हैं
दिल की अनसुनी करकेअक़्ल का निकला दिवाला
बेहतर मुस्तक़बिल केलिए
ज़िंदगी गुज़रतीभी नहीं किसीके बिना
हम तपती रेतपर ही बैठेहुए देखते रह गए
ख़ून-ए-जिगर चाहिए फ़न केलिए
हुनर महज़ लफ़्ज़ों का नाकाफ़ी है
झूठ के पांव नहीं होते मग़र चलता खूब है
रक़ीब दूसरों के घर की रौशनाई से जलता खूब है
मनोरथ जिनके कमज़ोर होते हैं
उसके चाहे बग़ैर कहींपर पत्ता नहीं हिल सकता
वाना निकल पड़ा आगके दरिया की जानिब
फूल गुलाब का 🥀
आदमी के भेस में मिलते शैतान यहाँ हैं
तेरी अदाएं 💕
अपने खुदके ज़मीर से ठुकराए हुए लोग
जिसके हाथमें जो था उसने दिया उछाल
एक वज़ह ने मज़बूर कर दिया रुक जाने केलिए
सारी क़ायनात की तस्वीर बदल जाएगी खुद बदलो तुम्हारी तक़दीर बदल जाएगी सुकून -ए-क़ल्ब अपना कायम रखो बशर बाहरके रंजो-ग़म की तासीर बदल जाएगी
जमानेभर के अमीरों का पीर हो गया
गांव खो दिया शहर के हो न सके
किराए के मकान
दुश्मन के वार से पहले होशियार हो जाओ
गांवके होकर अगर रहे होते
चालाकचतुर बावलागेला आदमी
मौसम के मिज़ाज बदल रहे हैं
किसी केलिए धड़कना भी ज़रूरी है
प्यार आया हैं 💓
ज़ायका मीर-ओ-ग़ालिब के फ़न का
उसी जगह के होकर रह जाते हैं
अपना हो के न हो पल आने वाला
फैसले लोग ही लेते हैं कायर की हयात के
अकेला पुरू ही काफ़ी है सिकंदर को हराने केलिए
कहानी
बेडनी
फैंटेसी कॉलोनी
भाई-बहन का प्यार
बंधन
सुरक्षा घेरा
ताप
दिल की बात शब्दो के साथ #बारिश वाला प्यार
"एक बूंद प्यार की बरसात" (भाग-1)
"एक बूंद प्यार की बरसात" (भाग-2)
"एक बूंद प्यार की बरसात" (भाग-3अंतिम)
"बातों के परिन्दे"
रस्सी जल गई पर बल नहीं गया
पाप और पुण्य
ऊँट कंकड़ के नीचे
अकेली लड़की मौका.. या जिम्मेदारी..
सपनों के उस पार
हिंदी दिवस के लिए
हां मुझे बहुत डर लगता है..
धरती कहे पुकार के
आपके बाद
दम लगाके होइशा
स्वयंसिद्धा
बचपन के रूप...
कालमित्र
अतीत के घाव
बोए पेड़ बबुल के आम कहाँ से पाए
मीरा समर्पण... एक निष्ठुर से प्रेम
बेटे बेटियां उधार के
लोकल ट्रेन के डिब्बे के अनुभव
अफ़सरी रुदबा
पुरस्कार
चाय के बहाने
जिन्दगी की डायरी के पन्ने
बोया पेड़ बबूल का
महंगी भूल
पुरस्कार
बड़े भाई साहब
वह ज़माना (यह 2080 की बात है)
खो गया मेरा प्यार
खुशियों के कुछ पल
अब मायके नहीं जाऊँगी
वो तीन सिक्के
क्योंकि लड़के रोते नहीं
किसी के सांता बनिए
ऐसा क्यों ???
दम लगाके होइशा
वीर बाबूराव पुलेश्वर शेडमाके
रोटी और चंद सिक्के
यूके ०८ डी २०४२ :- एक अनसुलझा रहस्य
समाज के दिखावटी मुखौटे
संस्कारी लड़के
बसंती सपने
मन के भाव
"नारी के सोलह श्रींगार "
अपशगुन
होली के रंग
कईएक पहलू जीवन के.....!!
पापियों के पाप
सोने में सुहागा
हवेली की ठकुराइन
स्वयंसिद्धा
लोकडाउन के वीर भाग -1
लोकडाउन के वीर भाग -2
ईश्वर का घर
अनाथ भाग-2
धूप के आर-पार
विचित्र प्रेम
"समय के काले बिंदु "
" बादलों से घिरा आसमान "
दादी के सपने
"पलाश के फूल"
"कोरोना के दर्द"
गजानन के यादों का शहर 💐💐
"संवाद हीनता "
"दंगा"
कच्चे रास्ते (भाग ७) साप्ताहिक धारावाहिक
"यादों के संग""
"इन्द्रधनुष के रँग "💐💐
कच्चे रास्ते (भाग ८) साप्ताहिक धारावाहिक
कच्चे रास्ते (भाग १०) साप्ताहिक धारावाहिक
" बरसता सावन-मचलता मन "💐💐
" वक्त के अनुसार " 💐💐
"अतीत के गलियारे से "💐💐
"खौली पास "डायरी के कुछ अंश
काश बुद्ध से कुछ करके जाट
" प्रेम के रंग " 💐💐
काल की मित्रता
डर के आगे जीत है
माँ के लिए
मील के पत्थर
जिन्दगी का दर्दीला पन्ना
भगवान श्रीकृष्ण के ऐतिहासिक प्रमाण
माँ के चरणों में बहुत रोएँ…
नानावती मर्डर केस 1959
परदे के पीछे
सावधानी के साथ रोमांच
लेख
लक्ष्मण स्वरूप शर्मा जीवन परिचय (1)
भूला नहीं जाता
शिक्षक का खत विद्यार्थी के नाम
हिंदी दिवस विशेष
यादों के निर्झर
यादों के झरोखे से
झूठ बोले, कौआ काटे ?
एक पाती माँ के नाम
किसान के बिना हम कुछ भी नहीं
ताजमहल के कलश का रहस्य
आस्था और विश्वास : मानव चेतना के बँधक
ट्रेन के लोकल डिब्बे का एक्सपीरियंस
लोकल ट्रेन के एक्सपीरिएंस
ट्रैन के लोकल डिब्बे का एक्सपीरियंस
भाई के ससुराल का पहला नेवता
राजनीति के जलते प्रश्न
त्यौहार
काँटो के बीहड़ में कुछ महकते गुलाब
होई सोई जो राम रची राखा
फ्रेक्चर्स श्रृंखला
रेलयात्रा
बस्तर के आदिवासी खेल
सैनिकों के नाम एक खत
किसानों के नाम एक खत
सांता क्लॉज के नाम खत
भारत देश के त्यौहार
आयुर्वेद की ओर दुनिया के बढ़ते कदम
सारंडा के आदिवासी
अपने पापा के नाम एक ख़त
साबरमती के सन्त
संवेदना के बदलते रूप
बसंत ऋतु के नाम पत्र
विश्व महिला दिवस के बहाने
जीवंतता के पर्याय हमारे लोक पर्व
कुछ तीर कुछ तुक्के
गाँठें हैं बन्धन प्यार के
पाठक के दिलोदिमाग पर अमिट छाप छोड़ने में सफल है "डियर ज़िंदगी"
भारत के वीर : एक परिचय
जीवन के अद्भुत रहस्य
महामारी के बीच भारत
एक इडियट के डायरी नोट्स
आइए, मन के सूरज को जगाएं।
एक खत यादों के नाम
एक दूजे के लिए
Wo Chaar Log
शिक्षक इस प्रकार बच्चों के मन से करें गणित विषय का डर दूर
महिलाओ की सुरक्षा के लिए समाज को सजग होना पड़ेगा।
बेस्ट इंग्लिश लर्निंग एप्लिकेशन के विषय में जानिये
शिक्षक बच्चों के भविष्य के लिए अपना आज और कल कुर्बान करते हैं
मन के संवाद
जिंदगी थी जो पन्नों पे उतार दी
नरक चतुर्दशी
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परफेक्ट के फ्रेम में फिट नहीं बैठती मैं
पीयूष गोयल ने दर्पण छवि में हाथ से लिखी १७ पुस्तकें.
पीयूष गोयल द्वारा लिखित पुस्तक “सोचना तो पड़ेगा ही” के लिए साक्षात्कार..
ईमानदारी से सिर्फ़ १०० के आगे तीन जीरो ही लगा पाया .
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