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कवितानज़्म
हर-बार लौट आए हम गहरे समंदर में डूबने के लिए जाकर हासिल सुकूने-क़ल्ब मग़र हुआ नहीं साहिल पर भी आकर जब समंदर ने ही लौटा दिया बार - बार खाली हाथ हम को अबतो जी करता है लेके नाम उसका मरजाएं ज़हर खाकर © बशर. bashar • بَشَر.