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बोया पेड़ बबूल का - Gita Parihar (Sahitya Arpan)

कहानीसामाजिकलघुकथा

बोया पेड़ बबूल का

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बोया पेड़ बबूल का...
आज यहां इन अनजान, अपनों से उपेक्षित महिलाओं,जिनमें बहुत सी  याददाश्त भी गंवा चुकी हैं,उन्हीं में गुमसुम बैठी सरना जी यादों के गलियारों में खो गई हैं। 
उस दिन घर पर बहुत मनहूसियत तारी हो गई थी,
उनकी विवाहित लड़की सपना अपना ससुराल  छोड़कर आ गई। उसनेे कहा वह हमेशा के लिये वह घर छोड़कर उनके पास आ गई थी।अपनी बेटी को वे भली -भांति जानती थीं।तालमेल बैठाना उसने कभी सीखा ही नहीं था।उस पर ज़ुनून ही सवार हो जाता था।ब्यूटी पॉर्लर के चक्कर लगाना ,पेडिक्योर से लेकर बॉडी पॉलिशिंग तक सब करवाना,साड़ी ,गहने सभी कुछ उसे महंगे से महंगे चाहिए थे। उस दिन उसकी डिमांड तो डायमंड नैकलेस दिलाने की थी। भुवन की स्थिति उस समय ऐसी नहीं थी कि वह उसकी मांग पूरी कर सकता।बस वह अपनी अटैची पैककर मायके आ गई थी।
इसमें दोष उनका भी था।वह उन्हें बचपन से देखती आ रही थी।
 वे खुद ग़लत होने पर भी कभी गलती स्वीकार नहीं करती थीं।ससुराल के एक- एक सदस्य को चुन -चुन कर कटघरे में लाने में एक अद्भुत आनंद की अनुभूति करती थीं।आज उनके कर्म उनके सामने खड़े थे।
सपना ने यहां आने के बाद अपने ससुराल वालों को  दहेज उत्पीडन के झूठे मामले में जेल की सलाखों के पीछे धकेल दिया। जबकि सच्चाई इसके बिलकुल विपरीत थी। पैसे उड़ाने के  लिए पार्लर, शापिंग और पार्टी से उसका दिल कभी नहीं भरता था। इससे तंग आकर जब उसके पति  ने समझाने-बुझाने की कोशिश की तो वह मायके आ गई थी।
 सरना जी ने सब कुछ जानते हुए भी उसके सुर में सुर मिला कर उसके ससुराल  वालों को ही क़सूरवार ठहराया था।उन्होंने  बेटी को बहुत ढील दे रखी थी ।उसी का नतीज़ था कि सपना सही ग़लत में फर्क करना नहीं चाहती थी।
दिन बीते ।सपना ने अपने रवैए में कोई परिवर्तन नहीं किया। यहां पर उसके बेहिसाब खर्चे जारी रहे, नतीज़,धीरे-धीरे सरना जी की सहनशक्ति और जमा पूंजी, दोनों ज़वाब देने लगी। अब उन्होंने उसे टोकना शुरू कर दिया।
पिछले महीने छोटी सी बात पर सपना ने उनका बोरिया- बिस्तर उठाकर बाहर फेंक दिया।ठीक वैसे ही जैसा उसने ससुराल वालों के सही दिशा दिखाने पर उनके ख़िलाफ़ किया था।

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दादी की परी
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