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दो जून केलिए - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

दो जून केलिए

  • 50
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बदनाम रहा मुक़म्मल ख़्वाहिशों के जुनून के लिए
उम्रे-तमाम भटकता रहा 'बशर' पुर सुकून के लिए

आलम ए मुफ़लिसी में भी ख़ुशी से बसर कर गया
वही हासिले -मसर्रत कर गया रोटी दो जून केलिए

© "बशर'بشرؔ."

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तन्हा हैं 'बशर' हम अकेले
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ये ज़िन्दगी के रेले
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यादाश्त भी तो जाती नहीं हमारी
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वो चांद आज आना
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