कविताअतुकांत कविता
देखो ना मेरे चेहरे पर लग़ा वो टूटी पलक का बाल
तुम्हारे इंतज़ार में है कि
तुम आओगे और उस पलक को
रख दोगे मेरे हाथ पर
और कहोगे नेहा मांग लो जो विश मांगनी है
और मैं कहूंगी ये सबसे कुछ नही होता अंधविश्वास है
तुम मेरे होंठों पर अपनि उँगली रख
एक चुप्पी को पसरा दोगे मेरे चारो और फिर और फिर
रखकर मेरी आँखों पर हाथ कहोगे मांगो ना और फूंक मारकर
उड़ा दो अपने सारे गम
इस टूटे पलक के टूटे बाल की तरह
आज भी मैंेैंने वही किया
पर गम वह तो उड़ा ही नही।
और न विश पूरी हुई तुम्हे पाने की।
हां यही तो मांगती थी मैं हर बार
बस साथ उम्र भर का तुम्हारा मेरा।
देखो न आज आंसुओ से भर गया है मेरा दामन
और दिख रहे हैं मुझे हर तरफ पलक के वो टूटे बिखरे अधूरी ख्वाहिशों भरे बाल। - नेहा शर्मा