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"देखो"
कविता
इंसान आज जमी पर आया है।
शुभ दिपावली
देखो देखो नया वर्ष है आया
जनवरी की रात
खुश है वो देखो कितना..
ऋतुराज बसंत
"प्रेम में तेरे"
बदलते मौसम
"प्रहरी"
हालात
मैं वायोर्विद मैं ही चार्वाक
कुंडलिया छंद
देखो घड़ी क्या बोल रही...
घनी है रात
खुशी के आँसू बहा के देखो
सपूत
टूटी पलक
तुमअपने सपने बशर जिस ज़बान में देखो
जी भरकर ख़्वाब देखो आपही की रात है
मुकम्मल कभी सपने नहीं होते
रूह तक उतर जाने दो
सीतमगार 🥺
फाल्गुन
गहराई
किसीके होकर भी देखो
किसी और केलिए रोकर भी देखो
ज़मीन पर चल कर देखो
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