कविताअतुकांत कविता
आया फाल्गुन का महिना
लाया होली का त्योहार
झूंमों नाचों गाओ
फगुआ वाले गीत गुनगुनाओं
होली के दिन
अरे दुश्मन गिन
न बचा कोई दुश्मन गिन
होली के रंगों में डूबे सब
मिल मिल रंग लगावे सब
हां खुशी से झूमें नाचें सब
अंग से अंग सबको लगावें
खुशियों से सब खिल खिल
जावे
गाएं फगुआ ढोल बजाएं
रंग मुठ्ठी में भरे चलते जाएं
रंगों की वर्षा करते जाएं
दुपहरिया तक हुड़दंग मचाएं
बच्चें भरे पिचकारी बैठे
आते दिखे कोई जैसे
रंगों की वर्षा करते जाएं
भाग खड़े ए हो जाएं
कहते फिरते जन जन से
बच्चों बूढ़ों तक से
बुरा न मानो होली है
खुशियों की हमजोली है
अरे देखो देखो
सब को देखो
एक से एक भूत बने हैं
रंगों में सब रंगें हुए हैं
बतासे की माला पहने
भीगे बदन में
रंगों की सुगंध में
नाच रहें हैं अपनी धुन में
कहा था मैंने
रंग थोड़ा सा लगाना
सुनते नहीं हो तो सुन लो
अब देखो बारी हमारी
ऐसा रंग लगाएंगे
है पक्का रंग हमारा
एक दिन में नहीं जाएगा
हमसे पंगा ले तुम
कहां तलक भागोगे सुन
इनको देखो सब बैठे हैं
जुएं सब के सब खेल रहे हैं
अजी ये तो बच बच के सब खेल रहे हैं
आया दरोगा भाग खड़े हैं
संध्या तक चलता है फगुआ
इनका गीत इनका धुन
गावें सब मिल कर के संग
शुर ताल मिल ढोलक बजाते
मनमोहक राग हैं गातें
होली आई नई सौगातें लाई
टूटे नाते जोड़ने की
अजी मिलन की ये ऋतु आई
फाल्गुन आया लाया होली
आया फाल्गुन का महिना......
- सोनम पुनीत दुबे