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Sahitya Arpan - Sonam Puneet

कविताअतुकांत कविता

विडंबना

  • Added 5 months ago
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  • 31
  • 15 Mins Read

कैसी विडंबना है देश की
यहां हर धर्म और जाति के लोग रहते हैं
कोई विरोधी विरोध करने नहीं आता है
हर धर्म का सम्मान यहां किया जाता है
हिंदू धर्म का विरोध यहां
जोरों शोरों पर किया जाता है
लेकिन एक हिंदू
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विडंबना ,<span>अतुकांत कविता</span>
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कविताअतुकांत कविता

फाल्गुन

  • Added 5 months ago
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  • 646
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आया फाल्गुन का महिना
लाया होली का त्योहार
झूंमों नाचों गाओ
फगुआ वाले गीत गुनगुनाओं

होली के दिन
अरे दुश्मन गिन
न बचा कोई दुश्मन गिन
होली के रंगों में डूबे सब

मिल मिल रंग लगावे सब
हां खुशी से
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फाल्गुन ,<span>अतुकांत कविता</span>
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कविताअतुकांत कविता

विचारों की लड़ाई

  • Added 6 months ago
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#शीर्षक –; विचारों की लड़ाई

विचारों की लड़ाई में
मानवता खो रही है

रोकेगा कौन लड़ाई
विचारों की भाई

जब आदमी आदमी का
न हुआ सगा भाई

विचारों की लड़ाई में
गूंगे अंधे बहरे न बन जाएं

हो सके तो इंसान
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विचारों की लड़ाई ,<span>अतुकांत कविता</span>
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कविताअतुकांत कविता

ए बहती हवाएं जरा मंज़िल का पता देती जाएं

  • Added 6 months ago
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  • 233
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ए बहती हवाएं जरा मंज़िल का पता देती जाएं

ए बहती हवाएं
जरा मंजिल का
पता देती जाएं

यूं कठोर होकर
बहने वाली हवाएं
जरा उसके चेहरे पर
गौर तो करतीं

काश! तुम्हे
मालूम होता,
दर्द उसके
चेहरे से झलकता

माना
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ए बहती हवाएं जरा मंज़िल का पता देती जाएं ,<span>अतुकांत कविता</span>
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कविताअतुकांत कविता

कर लो कर्म अभी

  • Added 6 months ago
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  • 90
  • 3 Mins Read

कर लो कर्म अभी
____________


हमारा कार्य है
कर्म करना

कर्म वही जो
आत्मा को तृप्त करे

कर्म ही सबसे बड़ा धर्म है
धर्म ही कर्म को
सही मार्गदर्शित करेगा

हम अपना कर्म करेंगे
धर्म की राह पर चलेंगे

भविष्य
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कर लो कर्म अभी ,<span>अतुकांत कविता</span>
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कविताअतुकांत कविता

वक्त के विरुद्ध

  • Added 6 months ago
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  • 6 Mins Read

वक्त के विरुद्ध
_____________

जन्म से लेकर अब तक
खेलते रहे हर वक्त
अब वक्त ने खेला ऐसा
जीने मरने लायक भी
नहीं रहने दिया

मैं जा रहा हुं
वक्त के विरुद्ध
वक्त रुका जो है
मजे ज़िंदगी के ले रहा है

मैं हारा
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वक्त के विरुद्ध ,<span>अतुकांत कविता</span>
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कविताअन्य

महाशिरात्रि

  • Added 6 months ago
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  • 35
  • 8 Mins Read

साहित्य अर्पण-एक पहल - अंतर्राष्ट्रीय मंच
विधा – मुक्त
विषय – महाशिवरात्रि
रचना – स्वरचित
कवि – सोनम पुनीत दुबे
दिनांक –9/3/2024

आज़ देवता नर नारायण
सृष्टि के जन जन
जीव जगत में
मची धूम

नाच रहे
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महाशिरात्रि ,<span>अन्य</span>
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