कवितालयबद्ध कविता
गहराई
कभी उड़ते हैं नभ में, कभी आशियाना धरती है
जरा गहराई में आओ, गहराई की बात ही दूसरी है
ऊपर से देखो तो मन कितना अशांत है
गहराई में देखो तो असीम शांत है
मन को यूं ही देखो तो तो केवल मन है
गहराई से देखो तो, होता आत्मा से मिलन है
एक समान है जीवन और समंदर
गहराई में है शांत और ऊपर में है लहर
बहुत आसान है कहना यहां शांति नहीं है
सब कुछ शांत है, शांति जरा गहराई में मिलती है
गहराई में कोई बाहर वाला... कभी हवा आता है बाहर से...?
किसी की है हिम्मत कि जाकर गहराई में भूचाल ला दे
जितना उथले बनोगे उतने ही आसानी से डिगोगे
जितना गहरे बनोगे उतना मुश्किल से विचलित होगे
पर महासागर में भी भूकंप आता है
पल भर जरा सा उसमें भी कंपन आता है
लेकिन गहराई में आधार शांत चित्त स्थिर है
क्योंकि गहराई की तो बात ही दूसरी है