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हरिओम शरण - Kamlesh Vajpeyi (Sahitya Arpan)

लेखआलेख

हरिओम शरण

  • 25
  • 13 Min Read

. '' हरिओम शरण ''



बहुत पहले की बात है. मैं रोज़ सुबह घर के पास की एक बेकरी से दूध लेने जाता था. कानपुर में, नया पराग - डेरी प्लांट बना था. वहां से उस समय, कांच की बोतल में पैक हो कर दूध सप्लाई होता था,कुछ समय बाद , प्लास्टिक के पैकेट में दूध सप्लाई होने लगा था.जैसे अभी भी होता है. यह शहर के लिए नया था.

दुकान से दूध के अतिरिक्त, ब्रेड, मक्खन, बिस्कुट, कनफेक्शनरी आदि भी उनके यहां मिलता था . मैं, ब्रेड, मक्खन भी वहीं से लाता था. कभी-कभी मैं, सुबह बहुत जल्दी भी पहुंच जाता था,

' पराग डेरी' की दूध की बोतलें गाड़ी से आती थीं , यह उन दिनों की बात है जब पैकेट शुरू नहीं हुए थे.

पहली बोतल उनके घर से, जो सामने ही था. उनकी पत्नी या बेटी ले जाती थीं.बाद में ही वे बिक्री शुरू करते थे..

जब दूध के पैकेट शुरू हो गये तब, एक ही साइज़ के पैकेट आने लगे.. तब घरों में फ्रिज आदि बहुत कम लोगों के पास होते थे. ठंडे ठंडे दूध की वे बोतलें, बहुत आकर्षक लगती थीं. ऊपर एक पन्नी से वे पैक होती थीं.
जब बोतल या पैकेट उनके घर पहुंच जाता, उसके बाद ही, मुझे मिलता था.. कभी-कभी जरा सा इन्तज़ार करना होता था.


यह मेरा नित्य का क्रम था. डेरी मालिक व्रद्ध थे. उनकी दूकान काफ़ी अच्छी चलती थी. तब टेप रिकार्डर आदि कम लोगों के पास होते थे. मैं उस समय विद्यार्थी था.
उनके प्लेअर पर, सुबह भजन बजते थे. सुनने में बहुत अच्छा लगता था. मैं और वे अकेले ही होते थे.. ख़ूब बातें करते थे.

वे एक बहुत अच्छी आवाज़ में एक भजन प्ले करते थे.

'' दाता एक राम, भिखारी सारी दुनिया.. ''.... '' राम जी करेंगे बेड़ा पार, उदासी मन काहे धरे.. '' और भी कुछ भजन.. बहुत ही मधुर , आकर्षक आवाज़, मन्त्रमुग्ध कर देती थी.

उन्होंने बताया, यह गायक, हरिओम शरण हैं. बहुत सम्पन्न घर के थे.. बाद में उन्होंने, घरबार सब छोड़ दिया..!

मुझे भी उनका स्वर बहुत अच्छा लगता था. बहुत सुबह के बिल्कुल शान्त वातावरण में, वह मधुर स्वललहरी हवा में तैर जाती..!

बहुत बाद में, जब मैंने ' टूइनवन 'लिया तब हरिओम शरण जी के कई कैसेट लाया था.. उनकी 'हनुमान चालीसा' और भी भजन. यह बहुत बाद की बात है.. अब तो 'यूट्यूब' 'गाना' आदि पर सभी कुछ, उपलब्ध है..
कुछ और समय बीता..

मैं पढ़ाई आदि पूरी करके नौकरी में आ गया था.. कानपुर से जा कर, कई बार दूसरे शहरों में भी रहा.

उस डेयरी से हमेशा एक आत्मीयता सी रही.. कानपुर आने पर मैं वहां अवश्य जाता था.

वे सज्जन, बहल साहब, साईं बाबा के भी बहुत भक्त थे.
उनके बेटे और पौत्र भी दुकान पर बैठते थे.. इस बीच
बहल साहब का देहावसान भी हो गया.. मैं तब कानपुर के बाहर था.

उनके पौत्र '' शुभ्रम बहल '' जी तो अब बहुत प्रसिद्ध हैं..


'हरिओम शरण' जी के स्वर का आकर्षण मेरे लिए अभी भी पूर्ववत है.. अब तो यूट्यूब के चैनल पर उपलब्ध हैं ही..

अब तो बहुत से प्रसिद्ध भजन गायक भी हैं..
लेकिन '' हरिओम शरण '' का आकर्षण मेरे लिए अभी भी, बहुत विशिष्ट है..

प्रायः वे पुरानी स्मृतियाँ साकार हो जाती हैं. उन दिनों की, बहल साहब की..अपने बचपन की..


कमलेश वाजपेयी

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