कविताअतुकांत कविता
मैं गीत प्रेम के गाऊँ
आशाओ के दीप जलाऊँ
गीत श्रृंगार के गाऊँ
निर्जन वन को
सुंदर उपवन बनाऊँ
मैं गीत प्रेम के गाऊँ
स्वप्न से सेज सजा
पार मैं पीर से पाऊँ
शब्दों के फूल बिखरा
मैं जीवन सबका महकाऊँ
मैं गीत प्रेम के गाऊँ...
सूने मन आँगन को
कोयल सा चहकाऊँ
जिस पथ पे अवरोध हो
उस पथ चल बाँध बनाऊँ
मैं गीत प्रेम के गाऊँ...