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Section | Genre | Rank |
---|---|---|
सुविचार | भक्तिमय विचार | |
सुविचार | अनमोल विचार | |
कहानी | एकांकी | 4th |
कविता | अतुकांत कविता | 5th |
London is the capital city of England.
कविताअतुकांत कविता
कारी बदरी बन पिया घनश्याम
काहे अब मोहे तुम भिझोने आये
मोरो मन अंगना भीजो नयन समंदर सू
एह कबहू रीत ना पाय
कहो श्याम कैसे आये?
जाओ बरसो ना अब बरसाने में
तुम सू प्रीत कर हम बड़ो पछताय
राह तकत थके मोरे
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कविताअतुकांत कविता
मैं दीन तू दानी
मैं अधीर तू धीर
मैं सुर तू संगीत
मैं उत्पत्ति तू सृष्टि
मैं निर्बल तू सबल
मैं विषम तू सहज
मैं जटिल तू सरल
मैं लहर तू सजल
मैं भाव तू विचार
मैं ऊर्जा तू संचार
मैं ज्ञान तू प्रसार
मैं
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कविताअतुकांत कविता
भगवन कोई राह दिखला दो
शिथिल शिला पड़ी , पिघला दो।
ज्वालामुखी सा चाहे पथ लाल हो
आशाओ का सजा सुनहरा भाल हो
लेखआलेख
दिल की गिरह
मैं आज की प्रगतिशील
नारी...तकनीकी राह में
उनत्ति तो बहुत मिली
कंप्यूटर से चिपकी नजरे
कीबोर्ड, फ़ोन और कैमरे
पे खटाख़ट चलती उंगलियां
पर ये उंगलियां छू नहीं पाती
वो जो सुन्दर अहसास हैँ
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लेखआलेख
आत्म अवलोकन
मन से संवाद
बारिश की बूंद बन मैं अभी अभी टप टप तन पे तेरे पड़ी .
घर से निकली जो घनश्याम, घन घोर घटा बन बरस रही अब जो निकली हूँ घर से लौट के फिर ना जाऊँगी बस बहती और तेज बहती चली जाऊंगी...
तू बस
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कविताअतुकांत कविता
.कितनी अजीब बात है ना
ईश्वर को देखने के लिए
हमेशा ऊपर आसमान को
या.......
आसमान के पार देखने
की कोशिश करते हैं
उत्सुकता होती है
एक खुली खिड़की देख पाने की
या कभी चांद को आसमान के
कैनवस से ज़रा सा
खिसकाकर
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कविताअतुकांत कविता
रख एक सीढ़ी विश्वास की
और आकाश का विस्तार देख
कि इस ज़मीं से भी परे है
एक नया संसार देख
जर्रे जर्रे में है तेरा खुदा
तू रख खुद पे इतना विश्वास
फिर देख !!!
कविताअतुकांत कविता
रंग रही मैं नवरंग रे
मिला जो तेरा संग रे
तेरे रंग रंगी राधिका
मन नाचे ,नाचे अंग अंग रे
लगे सब मोहे सतरंग रे
तू ही तू बस रहा
मन मोरे मलंग रे
कविताअतुकांत कविता
काकर पाथर रेत संग
छलनी सी छ्न रही जिंदगी
पाथर पाथर रह गये
उड़ रही रेत बन
ख्वाइश-ए-जिंदगी
कविताअतुकांत कविता
इन आँखों में
उम्मीद नहीं अब
खुद के ख्वाब जगाये हैं...
आँखे को दे सुकून
हम दिल में वो
अगन जलाये हैं...
कविताअतुकांत कविता
तुम ही बतलाओ कान्हा...
लहरो को पलटा दे जो, वो संवेग कहाँ से लाऊ?
चमका दे माथे पे बिंदिया, वो तेज कहाँ से लाऊ?
कविताअतुकांत कविता
तमन्नाए वही ना जो मन को अक्सर उडा ले जाती है
तमन्नाए वही ना जो धड़कनो में अक्सर मचलती सी रहती है
तमन्नाए वही ना जो बेपरवाह सी बस अपनी करती है
तमन्नाए वही ना जो लाख समझाने पर भी ज़िद्दी सी होती है
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कविताअतुकांत कविता
सुस्त है हर सहर
आफ़्ताब-ए-ज़ीस्त है गुम कहाँ?
पारे सा बिखर रहा जीवन
जुनूने जिस्त है गुम कहाँ?
कविताअतुकांत कविता
ये शून्य ही सम्पूर्ण है
ये वेदनाओं से परे
या संवेदनाओं से परिपूर्ण है |
ये शून्य ही सम्पूर्ण है
ये संभावनाओ से दूर
या अपूर्णता में भी पूर्ण है |
ये शून्य ही सम्पूर्ण है
ये रस्मो रीति से दूर है
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कविताअतुकांत कविता
तेरी यादो के अंजुमन में
शमा बन हम जलते रहे...
मेरे ख्वाबो के पतंगे
रात भर जलते रहे
...
सूने जीवन में
फिर भी रंग नये भरते रहे
तेरी यादो के अंजुमन में
शमा बन हम पिघलते रहे..
तेरी उम्मीदों से मेरी
हर शाम
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कविताअतुकांत कविता
देखो
घनी है रात पर
तारे टिमटिमा रहे हैं
देखो
दिल है उदास
पर तुम संग
हम मुस्करा रहे हैं
सुनो
कल कल करती आवाज़
कोलाहल मन के सारे
जा रहे हैं
महसूस करो
हाथों में मेरे हाथ
हम तुम एक हुए जा रहे हैं
जानो
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कविताअतुकांत कविता
कजरा लगाय के
बिंदया सजाय के
ले कान्हा मैं
आय गयी रे
लाली लगाय के
कैश बनाय के
ले कान्हा मैं
आय गयी रे
लहंगा पाय के
चुनरी डाल के
उड़ने गगन को
ले कान्हा मैं
आय गयी रे
तोहे नचाऊँगी
खुद पे रिझाऊंगी
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कविताअतुकांत कविता
मन जो पंख पसार मयूर बना
वो ही अंग संग आ साथ चला
मन था रीता,आ मन को सींचा,
जीत के मन को, जा गाई गीता
लेखआलेख
मैं अब तुम्हे नहीं मिलूंगी...जिंदगी थी जो पन्नों पे उतार दी है... लकीरें हैं कुछ इसमें जो साँसों से खीची हैँ... ख्वाब थे कुछ जो खुश्बू बने पड़े हैँ इसमें... जो उठो पड़के तो लगाव का बुकमार्क लगा देना....थोड़ा
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कविताअतुकांत कविता
प्रीत कर तो सम्पूर्ण कर,
प्रीत में कुछ ना शेष
तू कदम्ब मैं कालिंदी
में नदी प्रेम की
भरू सूखे तरु में प्राण
पाषाण से हृदय में भी
डालू अपनी जान
रीते रस्तो मे भी
रिस्ती रिस्ती
हौले हौले आऊ
ठन्डे
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लेखआलेख
गागर सागर में डुप डुप कर भर रही l भीतर मन, बाहर काया शीतलता सब तन मन होय रही l कुछ प्रहार अपनी स्मृतियों पर जो मुझे मेरा होने नहीं देती..अब नाद से संवाद होगा...कान्हा से कुछ यूँ मेरा मिलाप होगा l कुछ
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कविताअतुकांत कविता
प्रेम घृणा अपना पराया सब पत्ते खुल गये बंधन सारे टूट चुके हैं अब बस चन्द धागे शेष हैं...कहीं उनमे ही उलझ ना जाऊ? क्या सब धागे हटा दू पर वो तो मेरे वस्त्रो से निकले हैं..मेरे तन से मेरे अंतर्मन से चिपके
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कविताअतुकांत कविता
बंधन सारे सोच के
जो खोलू सब जग पाऊ
जिऊ उर खोल में
जो तेरे संग बंध जाऊ l
तेरे आलिंगन में
गुम हो सब विकृति
युगल बंध में बांधे प्रकृति
ऐसे कि सबकी होए स्वीकृति
कविताअतुकांत कविता
कुछ चुपसी, कुछ अकेली हूँ
खुद की खुद ही सहेली हूँ
कानो मैं आकर कह दे कान्हा
कि मैं तेरी पिया अलबेली हूँ
कविताअतुकांत कविता
जब सूरज की रोशनी पीले पुष्पों पे पडती है
जब देख बदरा तपती धरती सौंधी सी हसती है
जब फूलों पे तितलियाँ भोरो संग गुंजन करती हैँ
जब स्वाति की बूँदे पपीहे का मुख रसीला करती है
जब नई उमंगओ की कूची पुष्पों
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लेखआलेख
आत्म अवलोकन
मन के संवाद
बारिश की बूंद बन मैं अभी अभी टप टप तन पे तेरे पड़ी .
घर से निकली जो घनश्याम, घन घोर घटा बन बरस रही अब जो निकली हूँ घर से लौट के फिर ना जाऊँगी बस बहती और तेज बहती चली जाऊंगी...
तू बस
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कविताअतुकांत कविता
श्याम थाम कलाई पुरजोर
नयनो में लिपट रही मोह की डोर
मन हो विभोर, ले चल मुझे स्वर्ग की ओर
आनंद का जहाँ कोई ना छोर
अतुकांत कविता
बहक गयीं थी, वेग में
दिखा नहीं अपना अक्स,
चलो अब थम जाती हूँ l
नदी सी बहना नहीं अब,
झील सी झिलमिला जाती हूँ l
अतुकांत कविता
मधुबन
मधुर मधुर मधुरम
हो ये गगन ये धरा
चलो आज घर घर
हम तुम सब मिलकर
मधुबन बनाये
घर तो बस जाते है यहाँ
बस्ता नहीं है चैन
चलो आओ ख़्वाबों की
हम तुम सब डोली सजाये
चलो आज घर घर
हम तुम सब मिलकर
मधुबन बनाये
सुर
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कविताअतुकांत कविता
मैं मेरी हाँ मेरी...
मेरी सदाये अब करने लगी गुप चुप
रात-दिन मुझसे ही सरगोशियाँ...
मेरा इश्क़ मुसलसल होने लगा मुझसे
मुझें मुझसे ही आने लगी मदहोशियाँ...
मेरी बेबाकियाँ थक के ले रही अंगड़ाईयाँ
मुझे आगोश
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अतुकांत कविता
अनुभव ही ज्ञान है
कन कन तोरा आखर
सोचूं पढ़ पंडित होलूँ...
लिखना आज देर तलक
भर भर आखनं तोहे भोर तलक
ढाई आखर प्रेम का पढ़ पंडित होलूँ
बैठी हाथ में लेकर
कागज़ कलम दिल की दवात
थोड़ा छिड़कू सूखी जमीं पर सुर्ख
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कविताअतुकांत कविता
डरता मन
फिरता वन वन
तुम कहाँ गए
घनश्याम...
जीवन सागर
भव तर जाऊँ
जो तुम रूठ गए
घनश्याम
कित मैं अपने
चरण धराऊ
डरता मन
फिरता वन वन
तुम कहाँ गए
घनश्याम...
सूखी धरती
निरझर नयन
कांपत अधर
कठिन डगर
क्यूँ तुम
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कविताअतुकांत कविता
कुछ ऐसा हो जाए
तू ख्वाब बन मन को महका जाए
मेरी मुदरी का खोया
मोती मिल जाए
आँखों के काजल से
इक रात और गहरा जाए
प्रेम से लबालब भरे तोरे नयना
मेरे मन की प्यास बुझाये
कुछ ऐसा हो जाए...
कवितागीत
वे दो चकमक पत्थर,
कुछ देर को जले
फिर हुए बेअसर,
वे दो चकमक पत्थर l
कितने बेबस,
कितने विचित्र !
थे तनिक बारिश से
वो सोगाये l
जलती-बुझती चिंगारी से
अब क्या अंगार जलाये ?
कैसे हो संवर्धन
शेष बस जहाँ
रह
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कवितागीत
अरे ओ रे कान्हा
मुझको नहीं अब चैन
आन बसो मोरे नैन
मुझको नहीं अब चैन
अरे ओ रे कान्हा
कान्हा रे कान्हा
मुझको नहीं अब चैन..
निर्मल दिल दो निश्छल नैना
मुझको तो बस तुझ संग रहना
तेरे मिलान की आस लगाये
ये
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कविताअतुकांत कविता
मन में वादियो सी गहराईया भर
तू हिमालय सा संग आ खड़ा
महकाता चन्दन सा हिया
लफ्जो को नया अर्थ मिला
और जो गाऊ गीत मैं प्यार के
लौटाये तू सुर संगीत बना
साँसों सा जो आ तू बसा
मुझे मेरा मनमीत बना
प्यार की
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कविताअतुकांत कविता
ममता की छाँव
माँ का आँचल जीर्ण -शीर्ण
सा हुआ पड़ा था
जल रही थी धूप में सिर से
उसके आँचल जो हटा था |
सिर खुला देख अपनों ने बस
उसको उलहाने ही दिए
ये ना देखा आँचल तले उसके
मैं छाँव में खड़ा था |
छोटा था मैं
मैने
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कविताअतुकांत कविता
मैंने आज बस इतना किया
पूजा करते हुए तुम्हारी
खुद को तुम समझ लिआ
जिसमे बसती थीं तस्वीर तेरी
उन नयनों को एक तस्वीर किया
माथे को रख दर पे तेरे
नयनों को मेरे कमल और
पैरों का तेरे चन्दन किआ
उठती ना थीं
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कविताअतुकांत कविता
खाली घट से कब
किसकी प्यास बुझी है
जलके माटी तन की
राख़ बन जल में बही हैँ
सो मैं गीत प्रेम के गाऊँ
आशाओ के दीप जलाऊँ
विरह में गीत श्रृंगार के गाऊँ
निर्जन को घर बनाऊँ
सेज स्वप्न से सजा
पीर से पार मैं
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कविताअतुकांत कविता
मैं गीत प्रेम के गाऊँ
आशाओ के दीप जलाऊँ
गीत श्रृंगार के गाऊँ
निर्जन वन को
सुंदर उपवन बनाऊँ
मैं गीत प्रेम के गाऊँ
स्वप्न से सेज सजा
पार मैं पीर से पाऊँ
शब्दों के फूल बिखरा
मैं जीवन सबका महकाऊँ
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लेखआलेख
सोच रही हूँ आज दिल की बात बता दूँ
हर इक तस्वीर आपकी बड़ी खास है, जता दूँ...
महक अजब सी, खनक गजब सी इनमें
सरगम सी खुमारी, बड़ी बेशुमारी इनमें
बता ही दूँ आज कि बातें बहुत सी दिल की करने को तस्वीर में नये नये
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कविताअतुकांत कविता
धुरी मेरी
परिधि तुम्हारी
टिक टिक करती
घड़ी ये हमारी
टंग टंग करता हलचल
तूर्यनाद घंटे का |
मिनट तुम्हारे
घंटे के आगाज़ तुम्हारे
पल पल तुम संग चलती
बस तुमसे मिलने को आतुर मेरी जिंदगी |
मैंने अब समझी
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कविताअतुकांत कविता
हे माँ शारदे
मन की धरा ये हिल रही
इसमे उर्जा के प्राण दे |
सोई शक्ति को नवचेतना का अभिज्ञान दे |
सज्ञानता की धुरी पे व्यग्र मन को डाल दे |
मंथन से निकले जो कल्पतरू परिजात दे |
हे माँ शारदे
वरदान दे |
कविताअतुकांत कविता
सहज़ हैं जीवन तू भॅवर मैं क्यूँ
निर्मल मन तो उलझन क्यूँ
झरना बन बस बहता जा,
मन गागर में मंथन क्यूँ
इस दिल में तुझ बिन कौन समाये,
मेरे मन बस तू ही तू
कविताअतुकांत कविता
जिसको दी दिल की किताब
वो कागज की कश्ती दे, मुझे हाथो में,
मेरे अश्क़ बहा गया...
ओ जाते हुए मुसाफिर
तेरा शुक्रिया
ये जो मिट्टी पड़ी थी बरसो से कागज पे यूँ
देखो अश्को से मेरे, वो इक फूल खिला गया
लो हमने
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कविताअतुकांत कविता
नैना मुदु पाऊँ आज मेरी माँ के तन लिपट रहा हैं चन्दन
लाली, बाली, काजल, कुसुमा महक रहा घर आँगन
बड़ी सी बिंदिआ तिलक लगाई , बाज उठा मन का मृदंग
डाली माँ ने झीनी झीनी स्वप्न लहरिया, भीग रहा मेरा तन मन
कविताअतुकांत कविता
तरुवर संग जैसे पत्र और पंखुड़ी
बयार संग सुगंध बहे बन दंभनि
नाचे मन राधा कृष्णा सा हो भाव भंगी
पूनम ये अलबेली हुई मिली सखा संग संगिनी
कविताअतुकांत कविता
गीली मिट्टी तप के थोड़ा जरूर दरकती है
पर अच्छे से आकार मे भी तो पकती है
मीठी नदिया समंदर में थक के मिलती है
पर मैदानो को हरियाली से भी तो भरती है
बूढी माँ के माथे पे आज लकीरें गहरी दिखती हैं
जवा चेहरो
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कविताअतुकांत कविता
माटी हूँ मै,
दरिया बहता है मुझमे
और अंकुरित नित नयी सोच से
बनता गया देखो सुन्दर
मेरा मन, एक उपवन
कविताअतुकांत कविता
वो अनदेखा कर पत्तो को, फूलो के लिए हर पल मरता रहा
पत्तों को न सहला, पेड़ो की जड़े मजबूत करता रहा
पत्तो की छाँव में बैठ, करता रहा फूलो के खिलने का इंतज़ार
पत्तों को न मिला उसका प्यार, न मिली उसके प्यार की
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कविताअतुकांत कविता
एक तितली की तरह बागों में उड़ा करती थी
अपने मधुर स्पर्श से फूलो को बढ़ाया करती थी
तन्हाइयो में भी सदा मुस्कराया करती थी
तभी एक भवरा बाग़ में मँडराने लगा
अपने क्रन्दन से विष की लहर भरने लगा
वो भवरा उन
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कविताअतुकांत कविता
तू खोल मन की बेड़िया
तू सत से प्रज्वलित कर तिमिर
तू ना शंकित हो कदाचित्
तू स्वयं कर अपने लक्ष्य निर्धारित
बंद कर अंतर्द्वंद, विषमताऐ कर खँड-खँड
सम्भावनाऐ हैं अपार, चीर कर बाधाओं के द्वार
तू स्वयं
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कविताअतुकांत कविता
बूँद, सांस
और तू
जिंदगी थमी
तो बहुत
पर तब भी
जिंदगी में
कुछ कमी
भी नहीं l
कुछ चीजें
साथ में नहीं
अहसास में
पास होती हैँ l
जिंदगी में
जिंदगी सी
खास होती है
कविताअतुकांत कविता
झर झर झर रहेे झरने प्रीत के
फिर भी ना रहेे ये नयन रीते रे
तुम जो समाये हों, मेरे घर आये हों
पथराई अंखिया को बड़ी नमी मिल रही है
मेरे पाओं को तेरे हथेलियों की ज़मीं मिल रही है
कविताअतुकांत कविता
संगीत साधना है
इसमें भावनाये ही नहीं
बस भाव हैँ
संगीत आराधना है
इसमें प्रस्तुति नहीं
बस स्तुति है
संगीत आगाज है
इसमें शुष्क शब्द नहीं
बस आत्मा की आवाज़ है
संगीत योग है
इसमें मन: शांति ध्यान ही नहीं
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कविताअतुकांत कविता, भजन
हे माँ शारदे वरदान दो
हे माँ राधिके वरदान दो
मुझमें से ये "मैं" हटा दो
मेरे अंदर पड़ा ये "शव" जाला दो
कि जब तक हों स्पंदन
ऊर्जा का ऐसा ओज दो
हे माँ शारदे! जल रहीं धरा
संगीत-धारा से मुझमें
नये उज्वल प्राण
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कविताअतुकांत कविता
आते होंगे रवि अभी...
थकी
उनींदी...
पथराई आँखे ले ...
नींद की गोद में
रोज उतरती-उबरती
इंतज़ार में रवि के
बैठी रात की रानी
आँखों को सुन्दर सपनो
से दिन-भर भर ना सकी
नैन रीते रहें कब से सांझ तलक
आलिंगन भोर
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कविताअतुकांत कविता
तेरी बातो में
अब और ना आऊ
मैं रूठी बैठी
यहाँ,
अब ना तोय
और रिझाऊ
मोसे प्यारी,
गैया और ग्वालिन
सारी
उस पे ये बंसी
होठन पे जो धारी
दोधारी !!!
कविताअतुकांत कविता
गोरी राधा, श्यामल कान्हा
बाँटे सुख- दुख, आधा-आधा
निर्मल ह्रदय, सुकोमल काया
जीवन छनिक धूप, छनिक छाया
काहे सोचें क्या खोया क्या पाया?
कविताअतुकांत कविता
प्रीत की चूनर
जब से ओढ़ी
लगे तुझसा न कोई भोला
न मुझ सी कोई भोली
भीगी मोरी अंगिया
भीगी मोरी चोली
तुझ संग कान्हा
प्रेम रंग क़ी होली खेली
इन कानन में मुरली मनोहर, सीरत लई बसाय
नयन कमल में नटवर नlगर , दूजो
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कविताअतुकांत कविता
तुझसे बस इतना ही कहना है
हर पल तेरे प्यार में रहना है
साँसों में अपनी महकने दे
मुझे बन के परिंदा
तू साथ अपने चहकने दे
तू थाम ले अपनी बाहो में,
एक बार मुझे बहकने दे
तेरा प्यार खुली जटाओ सा..
मुझे गंगा
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कविताअतुकांत कविता
महके बगिया
राधा बन
मन मोरा जले
बाट देखे
मोरे नयना,
कान्हा तू काहे
मोसे ना मिले...
बेबस बेचारी,
राधा तिहारी
तोह बिन
हर
पल छिन
भारी
दरस को प्यासी
राधारानी
अब तो
आ जाओ
कृष्ण मुरारी
जब जब कान्हा
तू टेर
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सुविचारअनमोल विचार, भक्तिमय विचार
राधा का जो नाम पुकारा
वो पाया जो सब कुछ हारा
मुझ संग ऐसे जैसे मेरा साया
माँ देती हैं अपनी शीतल छाया
फुलेरा दूज के बारे में छाया जी ने जब बताया तो मन को शान्ति और भक्ति को एक नया मार्ग मिळा
फुलेरा दौज
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कविताअतुकांत कविता
पानी पानी को कैसे मारे
मै से मे बतला दे कैसे हारे
राधे तूही अब मोहे राह दे
मोरा मन अब तोहि सु साधे
एकै साधे सब सधै -रहीम
एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय।
‘रहिमन’ मूलहि सींचिबो, फूलहि फलहि अघाय॥
सुविचारअनमोल विचार, भक्तिमय विचार, प्रेरक विचार
ललक राधा की
खाए हिलोरे
चाहना माधव की
देख दिल डोले
वृन्दावन जाने की तीव्र इच्छा कई दिनों से हो रही है।।।पर जाना नहीं हो पा राहा।।आज सुबह कान्हा जी के ध्यान के बाद जब झपकी लागी।।।तोः सपने में वृन्दावन
Read More
कविताअतुकांत कविता
ओ रे कन्हिया!
फैली है
चहु ओर
सुन्दर छटा
बासुरी बजा
गोकुल बुला I
बन सखा
मुझको लुभा
गैया बना
चरणो का
अपने अमृत
चटा l
कविताअतुकांत कविता
मस्तक मेरे
सुशोभित तेरी
ये कोमल
पंकज पद
पाखुरिया |
जिया उर
तू आ बसा
हुई मैं तेरी
"श्रीप्रिया" |
अतुकांत कविता
जब जब
जीवन में
काली अंधियारी
रात होगी
कानो में तेरी
मीठी बानी,
दिल में
इक प्यास
होगी
तेरी प्यारी छबि
कठिन छनो में
हरपल मेरे
साथ होगी
कट जाएगी
काली लम्बी रात
और स्वर्णीम
नयी सुबह
तुझ संग
जाग होगी
Read More
कविताअतुकांत कविता
तोरे बिरह
को ना अब
और गाऊ
ओ कान्हा
मैं तेरी
राधा बन जाऊ
बंद करू
जो अंखिया
तुझको देखू
तुझको पाऊ
ओ कान्हा
मैं तेरी
राधा बन जाऊ
अधरो के तेरे मीठे
बोल बन जाऊ
जो तू रूठे
तुझे और मनाऊ
ओ कान्हा
मैं तेरी
राधा
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कविताअतुकांत कविता
मैं बैठी थकी हारी
तुम बंसी बजाते थे
दिन भर की थकन
कान्हा तुम ही तो मिटाते थे
लड़खड़ाते थे जब कदम मेरे,
तुम कदंब का पेड़ बन जाते थे
कॅं|टो भरी राहो पे
कान्हा तुम ही तो पुष्प बिछाते थे
रूठती थी जो मैं
Read More
कविताअतुकांत कविता
जूगनू बनू
या कि
जोगन प्यारी I
दीया बनू
या कि
बाती न्यारी I
माँ की धीया
या कि
पिया की दुलारी I
अब ये जिम्मेवारी
मैने हरि चरणन
में डारी I
ओ रे बनवारी!
अंग संग
तुझपे मै ये
मन वारी I
सुन लीजो
इतनी सी
अरज हमारी
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कविताअतुकांत कविता
देख तेरी नीलाम्बरी काया
मन पंछी बन उड़ आई
आखन में चुभते शूलन सू
मन ठण्डक जो छायी
ललचायी भरमाई आँखे
थोड़ा सकुचाई शर्माई
फिर श्रद्धा भर आखन में
मैं अपने नीड में सुस्ताने आई
तुझ में अपना घर पाके कान्हा
ये
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कविताअतुकांत कविता
गीली मिट्टी सी होने लगी हूँ नम
तेरे प्यार की सोंधी सी सुगंध।
इस माटी की मूरत बना दूँ
पथराई आखो पे हलके से फिरा दूँ
बेचैन रूह का बिस्तर बना दूँ
या कुम्हार संग मिल ढेरो बर्तन बना दूँ l
भजन, लयबद्ध कविता, गीत
अरे ओ रे कान्हा
मुझको नहीं अब चैना
आके बसो मोरे नैना
अरे ओ रे कान्हा
मुझको नहीं अब चैना
निर्मल हृदय,
निश्छल तेरे दो नैना
मुझको अब तुझ मैं रहना
ये ही जपू दिन रैना
अरे ओ रे कान्हा
मुझको नहीं अब चैना
तू
Read More
अतुकांत कविता
प्यासी अंखिया
भरी मोरी
देख
सुँदर छब
तोरी l
तड़पत मछली
जल मे दयी
ज्यों डाल l
अंखियां
भयी निहाल ll
अतुकांत कविता
समय की बड़ी पैनी हुई है धार
तू इस पार मैं उस पार
पलक बने पाषाण़
अश्रु की अनवरत बहती है धार
तू इस पार मैं उस पार
नदी का ऐसा हुआ विस्तार
किनारो का नही दूर तक कोई आसार
तू इस पार मैं उस पार
कविताअतुकांत कविता
तुम मिले ऐसे
मोती मिले जैसे
सीपी में l
घनेरे वन में जैसे
सूरज की किरण l
रेगिस्तान में जैसे
ठंडी सी पवन l
समंदर में जैसे
मणि कोस्तुभ की l
आसमान में जैसे
ध्रुव तारा अटल l
तोते की जैसी
तेरी "मेरी" ही रटन
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कविताअतुकांत कविता
आज दिल बदला बदला सा हैँ
जैसे आसमां पर बदल रहे मेघ है...
ये दिल तन्हा संग ढूंढ़ता सा
पल मे हॅसता सा, पल में रोता सा
कुछ ढूंढ़ता सा, कुछ छोड़ता सा
कुछ खुश, तो कुछ गम लिए l
कुछ हरा सा, कुछ भरा भरा सा
कुछ गुनगानाता
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