कवितादोहा
मुख से जपता राम जो, रखे बगल में छुरी
ऐसे कपटी मित्र से, रखो बनाकर दूरी।।
उससे रखो ना वास्ता, जो करे पीठ पर वार
ऐसे लोगों से रहो, हरदम कोस हजार।।
मुंह काला उसका करो, जो करता है घात
बने दोगले फिर रहे है, उनकी नहीं जात।।
चाहे कितनी भी बजाओ, भैंस के आगे बीन
वो नर सुधरते है नहीं, जिनके भाव हो हीन।।
साहस से हो जाते है, आसमान में छेद
कर्महीन सिर पकड़ के बैठे, करते रहते खेद।।
स्वरचित
योगी रमेश कुमार
जयपुर राजस्थान