कविताबाल कवितालयबद्ध कविता
चुन्नी मुन्नू खेल रहे थे।
एक पहिये को लकड़ी से धकेल रहे थे।
जैसे जैसे पहिया चलता
वैसे वैसे मुन्नू गाता
तभी पहिये से आवाज एक आयी।
चुन्नी तो बिल्कुल डर गयी
मुन्नू ने हकलाते पूछा
तुमने ऐसे कैसे बोला।
पहिया बोला मैं भी इंसान
फिर भी तुमने मुझे धकेला
काम कई मुझसे हो लेते
पर रहम तुम जरा न खाते।
सुनकर मुन्नू चुन्नी हुए हक्के बक्के
जैसे उनके छुटे छक्के
चुन्नी बोली ऐसा क्यों है भाई।
करेंगे तुम्हारी भी सुनवाई
इस पर पहिया दोनो से बोला
छोड़ो पशुओं को मार डालना।
उनकी चमड़ी से पहिया बनाते
लाज शर्म सब हो बेच खाते।
मुन्नू चुन्नी ने अब ठाना
नही कोई पशु को मारना।
लेकर फोन बाबा का मुन्नू
उनके फोन से स्टेटस डाला
बात मीडिया में तो फैली
पर समस्या ऐसी की ऐसी।
हाथ जोड़ मुन्नू चुन्नी कहते।
जानवर हमारी खातिर सहते।
छोड़ो इन पशुओं को मारना।
मानो अब नेहा का कहना। - नेहा शर्मा