कहानीसामाजिक
डाकिया डेढ़ घण्टे की मशक्कत के बाद वहाँ पहुंचा था। उसकी हालत पसीने से खराब हो चली थी इस पते को खोजने के लिए और यहां सिर्फ एक खंभा दिख रहा है। कई लोगों से पूछा तो नई बस्ती का रास्ता यही बताया था। पर यहां कोई बस्ती दिख ही नहीं रही थी। पास से गुजर रहे एक आदमी को रोक कर पूछा
" भाई साहब! ये नई बस्ती का पता.."
" हाँ हाँ यही है..सरकारी चिट्ठी लाए है क्या? आप चिट्ठी यहां टांग दीजिए.. जिसका होगा शाम को ले जाएगा "
" हाँ.. हाँ सरकारी महकमे से आया है, इस बस्ती के पुनर्वास परियोजना की सफ़लता पर मंत्री जी को सम्मान मिलने वाला है तो यहां के सभी लोगों को निमंत्रण भेजा है। पर भाई.. लोग कहाँ है और बस्ती कहां है?" डाकिया यहां वहाँ सर घुमा कर एक घर भी खोजने की असफल कोशिश के बाद बोला।
" हा.. हा.. हा.. देखिए यहां के लोग इस समय काम-धाम पर होते हैं। कमाल है कि इस बस्ती की सफल पुनर्वास की ख़बर तो फोटो के साथ अखबार में भी छपी और आपको बस्ती दिखी ही नही?"
डाकिये ने सर घुमाया। बात तो पते की कही उसने पर पता सही होकर भी कहीं नहीं था।