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परदे के पीछे - संजय निगम (Sahitya Arpan)

कहानीसस्पेंस और थ्रिलर

परदे के पीछे

  • 20
  • 51 Min Read

परदे के पीछे - संदिग्ध अनुबंध

राघव अपनी रूटीन सुबह में डूबा हुआ था। उसे मुंबई से लौटे हुए कुछ ही दिन हुए थे, और अब उसे एक नए प्रोजेक्ट के लिए शिमला जाना था। शिमला, एक छोटा लेकिन आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण शहर, जहाँ "शिवानी एंटरप्राइजेज" के साथ एक बड़ी डील की जानी थी। यह डील राघव की कंपनी के लिए महत्वपूर्ण थी, और राघव ने इसे अपने करियर के लिए एक चुनौती के रूप में लिया था।

जब वह शिमला के लिए रवाना हुआ, तो उसकी आँखों में पहाड़ों की सुंदरता और व्यवसाय की सफलता का एक ही सपना था। हवाई जहाज से उतरकर शिमला की ठंडी हवा ने उसका स्वागत किया। उसने गहरी सांस ली, मानो इस शहर की हवा उसे अपने में समा लेना चाहती हो। हवाई अड्डे से होटल तक के सफर में राघव ने शिमला की सड़कों, वहां के लोगों, और बाजारों का जायजा लिया। उसे इस शहर की सरलता और खूबसूरती ने मोहित कर लिया था।

शाम होते-होते राघव होटल पहुंचा और अपने कमरे में आराम करने लगा। लेकिन उसकी शांति ज्यादा देर तक बरकरार नहीं रही। उसे अचानक खबर मिली कि "शिवानी एंटरप्राइजेज" के मालिक गोपाल वर्मा की मौत हो गई है। इस खबर ने उसे स्तब्ध कर दिया। गोपाल वर्मा, जिनके साथ राघव की बड़ी डील होने वाली थी, अब इस दुनिया में नहीं थे।

राघव ने तुरंत अपने पुराने संपर्कों से इस बारे में जानकारी जुटानी शुरू की। जल्द ही उसे पता चला कि गोपाल वर्मा की मौत एक सड़क दुर्घटना में हुई थी, लेकिन इस दुर्घटना के पीछे कोई गहरी साजिश हो सकती थी। यह बात राघव को और भी चिंतित कर गई। उसने तय किया कि वह इस मामले की तह तक जाएगा, क्योंकि इस डील में न केवल कंपनी का बल्कि उसका व्यक्तिगत सम्मान भी दांव पर था।

अगले दिन, राघव ने "शिवानी एंटरप्राइजेज" के दफ्तर का दौरा किया। दफ्तर में एक अजीब सी खामोशी थी। वहां के कर्मचारी गोपाल वर्मा की मौत से स्तब्ध थे और नए प्रोजेक्ट को लेकर अनिश्चितता में थे। राघव ने संजय वर्मा, गोपाल के बेटे और कंपनी के नए प्रमुख, से मुलाकात की। संजय अपने पिता की मृत्यु से बेहद दुखी था, लेकिन उसने राघव को भरोसा दिलाया कि डील उसी प्रकार से होगी जैसा तय हुआ था।

लेकिन संजय की आंखों में एक अनकही चिंता थी। बातचीत के दौरान, राघव ने महसूस किया कि संजय कुछ छिपा रहा था। उसने सोचा कि गोपाल वर्मा की मौत के बारे में और गहराई से जानना जरूरी है।


राघव ने गोपाल वर्मा के जीवन और उनके संघर्ष की गहराई से जांच की। उसने सुना कि गोपाल वर्मा ने कैसे एक छोटी सी दुकान से अपने करियर की शुरुआत की थी। वह एक साधारण आदमी थे, लेकिन उनकी मेहनत और दृढ़ संकल्प ने उन्हें शिमला के प्रमुख व्यापारियों में से एक बना दिया था। उनकी कंपनी "शिवानी एंटरप्राइजेज" धीरे-धीरे एक बड़ी कंपनी के रूप में विकसित हुई थी, जो अब विभिन्न क्षेत्रों में काम कर रही थी।

गोपाल वर्मा की सफलता की कहानी ने राघव को प्रभावित किया। लेकिन इसी दौरान उसे कुछ अजीब घटनाओं की जानकारी मिली, जो उसे असहज कर गई। गोपाल वर्मा की मौत से पहले के दिनों में उनके आसपास कई संदिग्ध गतिविधियां हो रही थीं। राघव को यह समझ में आया कि यह मामला साधारण दुर्घटना से कहीं अधिक जटिल था।

शाम के समय, राघव ने शिमला की गलियों में घूमने का फैसला किया। वहां की सड़कों पर चलते हुए उसने स्थानीय बाजार का अवलोकन किया। छोटे दुकानदारों से बात करते हुए उसे शिमला की ज़िंदगी की झलक मिली। स्थानीय लोग गोपाल वर्मा को एक बहुत सम्मानित व्यक्ति के रूप में जानते थे और उनकी मौत से बहुत दुखी थे।

राघव ने कुछ दुकानदारों से भी बात की, जो गोपाल वर्मा के नियमित ग्राहक थे। उनसे पता चला कि गोपाल वर्मा अपनी आखिरी मुलाकात से ठीक पहले, एक बहुत ही तनावपूर्ण हालत में थे। किसी ने उन्हें यह कहते सुना था कि "इस डील को किसी भी कीमत पर पूरा करना है।" यह सुनकर राघव के मन में संदेह और बढ़ गया।

राघव ने गोपाल वर्मा की मौत के दिन की घटनाओं को विस्तार से समझने का प्रयास किया। उसने गोपाल के ड्राइवर से बात की, जिसने बताया कि उस दिन गोपाल वर्मा असामान्य रूप से चिंतित और बेचैन थे। उन्होंने अपनी कई महत्वपूर्ण मीटिंग्स रद्द कर दी थीं और केवल कुछ गिने-चुने लोगों से ही मिले थे।

उस दिन की सबसे महत्वपूर्ण घटना वह सड़क दुर्घटना थी, जिसमें गोपाल वर्मा की मौत हुई थी। लेकिन ड्राइवर के अनुसार, वह दुर्घटना सामान्य नहीं थी। ड्राइवर ने यह भी बताया कि उसने देखा था कि गोपाल वर्मा की गाड़ी के ठीक पीछे एक और गाड़ी चल रही थी, जिसने अचानक से उनकी गाड़ी को टक्कर मारी थी। यह सुनकर राघव को यकीन हो गया कि यह कोई साधारण दुर्घटना नहीं थी, बल्कि यह एक सुनियोजित हत्या थी।

जांच के दौरान, राघव को पता चला कि डील से जुड़े कुछ दस्तावेज़ संदिग्ध थे। यह दस्तावेज़ पहले राजेश कुमार, जो कंपनी के एक प्रमुख कर्मचारी था, के पास थे। राजेश कुमार के बारे में राघव ने सुना था कि वह एक चालाक और महत्वाकांक्षी व्यक्ति था, जो गोपाल वर्मा के साथ किसी न किसी प्रकार की दुश्मनी रखता था।

राघव ने राजेश कुमार की गतिविधियों पर नजर रखनी शुरू की। उसने पाया कि राजेश कुमार ने पिछले कुछ समय में कई संदिग्ध लेन-देन किए थे और वह गोपाल वर्मा की मौत के बाद कंपनी की कमान अपने हाथ में लेने की कोशिश कर रहा था। इससे राघव का शक और भी गहरा हो गया।

जैसे ही राघव ने जांच को और गहराई से किया, उसे कई धमकी भरे फोन कॉल्स आने लगे। इन कॉल्स ने उसे सतर्क कर दिया। एक रात, जब राघव अपने होटल के कमरे में सो रहा था, तभी उसे लगा कि कोई उसके कमरे के बाहर घूम रहा है। उसने दरवाजे के नीचे से झांक कर देखा तो एक छाया को वहां से जाते हुए पाया। राघव तुरंत सतर्क हो गया और उसने कमरे के चारों ओर जांच की, लेकिन कुछ भी असामान्य नहीं पाया।

अगले दिन, जब राघव ने होटल से बाहर निकलने की कोशिश की, तो उसे महसूस हुआ कि कोई उसका पीछा कर रहा है। उसने अपने पीछा करने वाले व्यक्ति को धोखा देने की योजना बनाई और शहर की तंग गलियों में घुस गया। वहां उसने अपनी सूझबूझ से उस व्यक्ति से पीछा छुड़ा लिया।

राघव ने संजय वर्मा से दोबारा मुलाकात की और गोपाल वर्मा की मौत के बारे में उससे बात की। संजय ने अपने पिता के साथ अपनी अंतिम मुलाकात के बारे में बताया, जिसमें गोपाल ने उसे कुछ महत्वपूर्ण दस्तावेज़ सौंपे थे। ये वही दस्तावेज़ थे, जो राघव को संदिग्ध लगे थे।

संजय ने राघव को बताया कि उसके पिता ने उसे बताया था कि इन दस्तावेजों को बहुत सावधानी से रखना है, क्योंकि ये उनके व्यापार के लिए महत्वपूर्ण थे। लेकिन संजय को यह नहीं पता था कि इन दस्तावेज़ों में क्या था। राघव ने उन दस्तावेज़ों की जांच की और पाया कि वे एक संदिग्ध अनुबंध के बारे में थे, जिसमें गोपाल वर्मा को भारी नुकसान उठाना पड़ा था।

राघव को पता चला कि राजेश कुमार ने यह अनुबंध बनाया था, और यह गोपाल वर्मा के खिलाफ एक साजिश थी। राजेश कुमार ने जानबूझकर अनुबंध को इस तरह से डिजाइन किया था कि गोपाल वर्मा को भारी आर्थिक नुकसान हो और कंपनी की कमान उसके हाथ में आ सके।

राघव ने इस बात का खुलासा संजय वर्मा से किया और उससे कहा कि राजेश कुमार को पकड़वाने के लिए उसे पुलिस की मदद लेनी होगी। संजय पहले तो हिचकिचाया, लेकिन फिर उसने राघव की बात मान ली।

राघव ने राजेश कुमार को पकड़वाने के लिए एक योजना बनाई। उसने संजय वर्मा से कहा कि वह राजेश कुमार को मिलने के लिए बुलाए और उसे बताए कि कंपनी को एक नए अनुबंध पर हस्ताक्षर करने की आवश्यकता है। संजय ने राजेश को फोन किया और उसे एक महत्वपूर्ण बैठक के लिए बुलाया। राजेश को इस बात की भनक भी नहीं थी कि यह एक जाल था।

बैठक के दिन, राघव और संजय दोनों ने होटल के एक प्राइवेट कमरे में राजेश से मुलाकात की। राघव ने जानबूझकर राजेश के सामने कुछ सवाल उठाए, जिससे वह घबराया हुआ लगने लगा। उसने महसूस किया कि राघव कुछ जानता है, लेकिन वह इस बात को झुठलाने की कोशिश कर रहा था।

राघव ने संजय से कहा कि वह नया अनुबंध पढ़े, जो असल में राघव ने पहले से तैयार किया था। इसमें कुछ ऐसी शर्तें डाली गई थीं जो सीधे तौर पर राजेश कुमार के फर्जीवाड़े की ओर इशारा करती थीं। जैसे ही संजय ने अनुबंध को पढ़ना शुरू किया, राजेश कुमार का चेहरा पीला पड़ने लगा। उसने अपनी आवाज में कंपकंपी के साथ कहा, "यह अनुबंध गलत है... यह... यह सही नहीं है।"

राघव ने तीखे शब्दों में जवाब दिया, "तुम्हें कैसे पता चला कि यह अनुबंध गलत है, राजेश? क्या तुमने इससे पहले इसे देखा था?"

राजेश कुमार का चेहरा सफेद पड़ गया, और उसने अपने आप को संभालने की कोशिश की। लेकिन उसकी घबराहट और शब्दों की लड़खड़ाहट ने उसकी पोल खोल दी। राघव ने तुरंत कमरे के बाहर छुपे पुलिस अधिकारियों को संकेत दिया। पुलिस ने कमरे में घुसते ही राजेश कुमार को गिरफ्तार कर लिया।

पुलिस की हिरासत में, राजेश कुमार ने आखिरकार सब कुछ उगल दिया। उसने स्वीकार किया कि वह गोपाल वर्मा की सफलता से जलता था और हमेशा से उनकी कंपनी को अपने हाथों में लेना चाहता था। उसने अनुबंध में जानबूझकर ऐसी शर्तें डाली थीं जो गोपाल वर्मा के लिए आर्थिक नुकसान का कारण बनतीं।

लेकिन बात यहीं खत्म नहीं हुई। राजेश ने यह भी कबूल किया कि गोपाल वर्मा की हत्या के पीछे भी उसी का हाथ था। उसने कुछ स्थानीय गुंडों को हायर किया था, जो गोपाल की गाड़ी को दुर्घटना में बदलने के लिए पीछे लगे थे। वह चाहता था कि गोपाल की मौत के बाद संजय, जो इस बिजनेस में ज्यादा दिलचस्पी नहीं रखता था, कंपनी को उसके हवाले कर दे।

राजेश कुमार के कबूलनामे के बाद, संजय ने फैसला किया कि वह अपनी कंपनी को अपने पिता के नाम पर चलाएगा और किसी भी तरह के फर्जीवाड़े से दूर रहेगा। उसने राघव का धन्यवाद किया, जो न केवल इस जटिल मामले को सुलझाने में कामयाब हुआ, बल्कि उसकी कंपनी को बर्बादी से भी बचाया।

राघव ने अपने सेल्स प्रोजेक्ट को भी सफलतापूर्वक पूरा किया। उसने संजय के साथ एक नए अनुबंध पर हस्ताक्षर किए, जो कंपनी के भविष्य के लिए बहुत फायदेमंद साबित हुआ।

जब राघव वापस अपने शहर लौटा, तो उसके मन में संतोष था कि उसने एक और जटिल केस सुलझा लिया था। लेकिन उसकी यह जासूसी की जिंदगी अब और भी जोखिम भरी होती जा रही थी। उसे इस बात का एहसास हुआ कि जितनी बार वह किसी बड़े केस को सुलझाता है, उतनी ही बार वह अपने दुश्मनों की सूची में एक और नाम जोड़ लेता है।

राघव जानता था कि वह एक ऐसी दोहरी जिंदगी जी रहा है, जहां हर दिन एक नई चुनौती होती है। उसकी नौकरी की आड़ में उसकी जासूसी के कारनामें अनजाने खतरों से भरे हुये थे। लेकिन उसे इस जीवन से प्यार था, क्योंकि यही वह चीज थी जो उसे जीवित और ऊर्जावान महसूस कराती थी। उसकी सामान्य सी लगने वाली सेल्स की नौकरी ने उसे एक साधारण इंसान बना रखा था, लेकिन पर्दे के पीछे वह एक जासूस था, जो बड़ी-बड़ी साजिशों का पर्दाफाश करता था।

राघव की जिंदगी में यह बस एक और मामला था, लेकिन यह उसे हमेशा याद रहेगा, क्योंकि यह मामला उसे उसकी जिंदगी के दो महत्वपूर्ण पहलुओं से जोड़ता था, एक तरफ उसकी सेल्स की नौकरी, जिसमें उसने एक बड़ी डील को सफलतापूर्वक अंजाम दिया, और दूसरी तरफ उसकी जासूसी की दुनिया, जिसमें उसने एक जघन्य अपराध का पर्दाफाश किया।

राघव अब वापस अपने काम में लौट आया था, लेकिन उसका मन अब भी शिमला की सड़कों और पहाड़ियों में भटक रहा था। उसने अपनी आत्मा में एक संतोष की भावना महसूस की, लेकिन साथ ही उसे यह भी पता था कि अभी और भी कई रहस्यमयी मामले उसके इंतजार में थे। उसकी यह यात्रा अभी खत्म नहीं हुई थी, बल्कि यह तो बस शुरुआत थी।

राघव का काम अब और भी चुनौतीपूर्ण होने वाला था, क्योंकि वह जानता था कि जितना गहराई में वह जाएगा, उतने ही बड़े और खतरनाक मामलों से उसका सामना होगा। लेकिन उसे अपने कौशल और बुद्धिमानी पर पूरा भरोसा था। उसे पता था कि चाहे परिस्थिति कैसी भी हो, वह हमेशा सच्चाई की खोज में सफल रहेगा।

संजय निगम

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Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 2 weeks ago

बहुत सुन्दर और रोमांचक रचना..!!

संजय निगम2 weeks ago

धन्यवाद

दादी की परी
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