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"से"
कविता
भुलक्कड़ नहीं है वो
बंधन
औरत का सफर
कमियां और खूबियां
दोस्ती
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कवि हो जाना
तन्हाई
#पुराने धागे (रिश्ते)
यह तिरंगा कैनवास
बुरा क्यूँ मानूँ
कहाँ से लाओगे
पहले के जैसे
#जिन्दगी से जंग
गुलाम की हसरते चाहत
मैं तुमसे प्यार नही करता
कभी मेरे श्रृंगार से वाक़िफ होते
दरबदर खुदा खुद के दर से
माँ से कुछ प्रश्न
मैंने पूछा चाँद से
तर्पण
पाप और पुण्य से परे
कभी गौर से देखा नहीं
हाँ, वो प्यार करती है
प्रपोजल
धुंधलापन ------------------------ इस रात के घने अंधेरे में मैं देखना चाहता हूँ चारों ओर इस दुनियाँ का रंग रूप पर कुछ दिखता नहीं पर मन में एक रोशनी सी दिखती है | बस हर तरफ से नजरें हारकर बस उसकी तरफ मुड़ जाती है दिखती है वह दूर से आती हुई पर उस
बूढ़ी मां....
प्रपोजल
झरोखे से
मातृ भाषा हूँ मैं
क्यों लगता है मैं बहू से बेटी ना बन पाई
जिंदगी
जैसे ग़ज़ल
हिंदी से हम हिंदुस्तानी
तुम्ही बताओ
हिंदी हमारी पहचान
सम्भल जा ज़रा
हिंदी से हिंदुस्तान है
हिंदी से हिंदुस्तान है
हिंदी से हिंदुस्तान है
क्या है आज के अखबार में
दिल से दोस्ती तक
माँ से जब भी मिला हूँ खुदको बिसरा हूँ
शून्य से शिखर तक
अपनों से दूर
ख्याल से हकीकत की कलम
इतना हँसें कि रोने का वक्त ना मिले
अतिथि, तुम कब जाओगे
"चाँद से हुई बातचीत"
उसने कहा
काश ! मृत्यु से पहले जाग जाते
मुझसे पूछो
काश
मैं इसे इशारे समझूं या क्या समझूं?
कैसे कहूँ क्या दफन है मेरे ज़हन में
कौन कहता खामोशी में बात नही होती
अभिभूत
हक दुश्मन से मांग रहा है
पत्ते डाली से
हे माँ!
कभी बैठो पास तसल्ली से
हीन हो संवेदना से चल रहा है आदमी
मां (प्रार्थना)
हां मै एक औरत हूँ
कैसे तूफां होगा शांत
संवेद से संवेदनाएँ
पापा से प्रश्न
मिले खुदसे हुए ज़माना सा लगता है
रूठी कलम
दीप वह फिर से जलेगा
बदलती दुनियाँ
और ये सब तुडे़-मुडे़ से, सिकुडे़ से अखबार
ग़ज़ल
अभिभूत
इश्क़ जताऊं कैसे
दिल दर्द से भर जाता है
कोरोना से डरो ना
सीखी ग़ज़ल,,, नीलिमा जी से
भोपाल गैस त्रासदी पट
दिप जैसे चमकते रहो तुम ...
जयहिंद की सेना
वक्त से तकरार
अधकचरे से ये रिश्ते
कलम से लगन लगी
लौह पुरुष
फिर से आँखें हुई सजल शायद
उनसे जो हमारी ये मुलाकात हो गई
जिंदगी ऐसे ही चलती है
मेरे सवाल पास में उनके पड़े हुए
आत्मविश्वास.....
मृत्यु और सभ्यता
बेरुखी का आलम
बचपन की सखियाँ
अलविदा 2020
लॉकडाउन
दिल से दिल तक
२०२० तुमसे कोई शिकायत नहीं
दिल से दिल तक
मैं तुमसे प्रेम करता हूँ
आती रहती हैं
मेरा शहर
मेरा शहर बनारस
अपनो के सपने
आती रहती है
हिंदी से हम हिंदुस्तानी
तिल का महत्व
मौन
सबसे बड़ी मां....
पेड़ से बात.....
इंतज़ार की घड़िया
इकरार
मैंने माँ से पूछा
तुम्ही बताओ
तुझसे प्यार करने लगी हूँ मै
यह तिरंगा कैनवास
एक दीया सेना के नाम
तेरे इश्क में डूबे डूबे से हम हैं
तड़पती हूँ
बस छोटी सी दरकार
बचपन की एक बात
वो बचपन के दिन
नारी
नस नस से गुजरती संवेदनाएँ
हे माँ तू मेरी जन्नत है,
कल मिलोगी जब तुम मुझसे...
आज मिलेगी वो मुझसे...
वो पल मैं कैसे बतलाऊं..
बच्चों डरो मत मुश्किलों से
"पहला चुम्बन"
तेरे ना होने से
तेरे ना होने से
अंखियों के झरोखों से
फोन ऐ मोहब्बत
ओ सनम मेरे सनम
बरसात में तेरा दीदार
कुछ उल्टा सीधा
कैसे कहूँ सच्चाई
मेरा गांव मेरा आंगन
प्रकृति की रक्षा
मन से बचपन
पति पत्नी और वो
हिंदी से हम हिंदुस्तानी
मन के भाव
कहाँ खो गए तुम
येदिलकर रहा है तुम से ही बातें
मैं खूंटे से नहीं बंधूगीं
मैं खूँटे से नहीं बंधूगीं
मैं खूँटे से नहीं बंधूगीं
इजहारे_मुहब्बत
मुझसे प्यार है और नहीं भी
तुमसे है प्यार
ख़ता
कैसे गुल खिलेंगे ?
होली मन से कभी बेमन से
होली विरह गीत
कभी जिये होते आकाश में
कोरोना वायरस और प्रकृति
रेशम से एक ख्वाब
रूह से रूह का मिलन
"खेले खेल हवा से डाली"
मां से गुहार
अतिथि, तुम कब जाओगे
खुले आसमानों से जिंदगी को देखना, बहुत ही खूबसूरत सा दिखाई देता है।।
इस मोड़ से जाते हैं
बच्चों से बतियां
हे माँ दुर्गा
चमक चाँदनी।
सबसे पीछे
भारत देश और इंसान
एक सत्य
कोरोना से हार चुके क्या ईश्वर से ये कहे बेचारे?
ओ माँ
बचपन की सखियाँ
परिवार
प्रकृति से पंगा (भोजपुरी गीत)
प्यार के भंडार से
संवेद से संवेदनाएं
उम्मीद से सजे ज़िन्दगी
मन की आंख से
मेरे घर की खिड़की से
तुम सुनो न सुनो
मैं खुद में तुमसे ज्यादा नहीं था कभी
💐💐"लड़कियों के बचपन से पचपन तक का सफर💐💐 "
जिंदगी से कोई शिक़वा नहीं...
मुझे उड़ान भरने दो
मुझे उड़ान भरने दो
बचपन की सखियाँ
इस मोड़ से जाते हैं
हिंदी से हम हिंदुस्तानी
वे साँसे हैं हमारी
मैंने पूछा चाँद से
✍️किसी को किसी से भी प्यार हो जाता है।
तुम मिले ऐसे...
ओ री सखी
राधे ...राह दे
मन मयूरा
देखो घड़ी क्या बोल रही...
यशोधरा
उर्मिला की विरह वेदना
कारी बदरी
मैं मेरी हाँ मेरी...
ठोकर से ठाकुर
कहो श्याम कैसे आये?
मेरा अपना आप
*प्यार अपने आप से कर.....*
आओ ऐसे दीप जलाओ
तुम और मैं जैसे
बच्चा
तुम हमसे मिलें ऐसे
वाओ क्लासेस
उससे मिलने की खुशी मत पूछो
तुम्हें कैसे समझाऊं...
जिदंगी, मुझको तुझसे प्यार है
याद आती हो तुम .....
मंजूर न था
सलीक़े से हवाओं में जो ख़ुशबू घोल सकते हैं
गीत.. मुरझाने से क्यों घबराना
वर्तमान से वक्त बचा लो तुम निज के निर्माण में द्वितीय भाग
वर्तमान से वक्त बचा लो पंचम भाग
बहार की वो यादें
क्षुधा प्यास
उठो युवा तुम उठो ऐसे
खबर हादसे की
फिर से सतयुग भू पर लाओ
प्रियतम
मां
नकाब
श्रीमती जी
यदि उसे नजरों से गिराया नहीं होता
श्रीमती जी
मैं हो गया फ़कीर बशर
वक़्त से बशर बना कर चल
मत पूछ मुझ से हबीब मेरे
तू ही सही है
शेर-ओ-सुख़न से दूर रहते हैं
साहिल से अनजान रहा
किसीको जीना आ जाता है बशर
तेरी यहाँ पर याद किसे रहती है
हद-ए-बर्दाश्त का बांध टूट कर सैलाब बन सकता है
हद-ए-बर्दाश्त का बांध टूट कर सैलाब बन सकता है
सावन के महीने में कोई बड़ी शिद्दत से याद आता है
रहगुज़र से दूर ही रहा घर-बार मिरा
सुकूँ से बशर हम सैर करें
सुकून वोह बशर मिल गया इक फ़क़ीरी से
बशर ज़ेरे-ए-असर आकर दामने-कोह के सहन में बस गया
सियासत से ही सियासत की काबू में रखना माया मुमकिन है
सुबह से शाम
क्यूं करे कोई नफ़रत उनसे
अमन का रास्ता बातचीत के द्वार से होकर गुजरता है
अच्छा-खासा वक़्त हमारा बशर जहाँ से गुज़र गया
अदू समझा जिसे मेरी हबीब निकली
राब्तों का रास्ता नहीं मिलता
वो हमसे पूछे कितना है क़रीब मेरा
यौमे-आजादी से बड़ादिन हो नहीं सकता
सबा से गुज़र जाओ
किसी को चाहने से पहले ख़ुदको आजमा लेना
असल जिंदगी बशर हर तर्ज़ ओ तक़रीर से परे होती है
धरातल की दशा से मुंह मोड़
गैरों से दोस्ताना अहबाब से रक़ाबत रखते हैं
हयात में मग़र बशर हयात से मात खाता है आदमी
नसीब से मग़र कमही मिला है
झरोखे यादों के
अहबाब फ़िक्र-ए-मुसबत वाले क़िस्मत से मिला करते है
नीर क्षीर विभेद का विवेक
तुम
ख़ामोशी से बेहतर लफ़्ज अगर बशर हों तो बोलिए
मुलाक़ात हबीब से ख़्वाब में कम न थी
ज़ीस्त से जिंदगी-भर से यूं खेलता रहा है बशर
वस्ल तेरी मज़बूरी उसी से
मेरी किसीसे कोई जफ़ा नहीं
बे-शुमार मसर्रतें होती हैं मयस्सर जरा-सा मुस्कुराने से
खेलते रहेंगे रक़ीब बशर हमारे जज़्बात से
जिन्दगी से हमने हमारा बाक़ी सफ़र पूछा
मंज़िल से लौटे हुए मुसाफ़िर कहाँ जाएं
बीते हुए वोह जमाने ढूंढ़ कर कहाँ से लाऊँ
*आँखों से नमी नहीं जाती*
*बड़ा सरल है किसीसे खुश रहना*
*रौनक-ओ-मसर्रत से यौमे-ए-खास की हर पहर गुजरी*
हौसले से जग जीतता रहा
*हम से ही "बशर" हमारी बात हो गई*
*वक़्त से बड़ा नहीं उस्ताद कोई*
वो अब हमसे नाराज़ नहीं है
*किताबी जिंदगी से बाहर चला जाए*
संवेदना
कोई अपने मां-बाप से बड़ा नहीं हो सकता
*दरीचों से देखते रह जाएंगे*
*जग से नहीं हौड़ बशर*
"संवेदना" [महाकाव्य] से
*अदब से पेश आएं*
माँ तुम्हारे रूप से
बृज भाषा में सवैया
*उस्ताद से बड़ा चेला हो गया है*
*मिटादो मन-मुटाव जमाने से*
जनता के हिस्से सिर्फ हलाहल
इससे उजले प्रतीक नहीं
तबीब करने लगे शिफ़ा वबा से
रूह तक उतर जाने दो
जीवन से तम को दूर करो
वफ़ा कहां
कैसे कहें के वो हमारा हमसफ़र हमदम नहीं
दुश्वारियां सिमट जाती हैं हयात से
*अहसासे-फुर्क़त हुआ हदे- हयात से निकलकर*
खुशियों से ज्यादा ग़म निकले
*उन्हींसे दूर रहना उन्हींको चाहना*
इजाज़त 🥺
सफ़र से गुजरता हर कोई है
ज़मीन से उठकर मिट्टी कहाँतक जाएगी
*जिंदगी से मिलने को तरस गए*
ऊन के गोले और मां ककी सलाइयां
ऊन के गोले और मां की सलाइयां
इश्क़ में 💫
*सराबों से आब चाहता है*
*ज़ार-ज़ार रोए*
जाहिल बेवकूफ़ी से बाज नहीं आता
दर्द की दर्द से शिफा किए बैठे हैं हम
हालात से निराश नौजवान
तुमसे मोहब्बत है 😍
वजूद हमारा कायम अख़लाक के भरोसे
कैसे खुदा राजी रहे
खुदसे सुनना चाहता हूँ
किस्मत से ❤️
हयात में मिले हर फ़रेब से वाकिफ़ हूँ
मतपूछ हमसे कैसे हमने हयात गुजारी हो
आदमी खुदा बनने से बाज नहीं आता
मरने से फुरसत न होती
शीर्षक (भारतीय सेना)
जख़्म से बात करे जख़्म
ग़म जमानेभर से पाये हमने
हो गई पहचान उसे
वक़्त हाथ से फिसल गया
कहीं कोई ऐब नहीं
एक और बरस हयात से चला गया
टिके हैं कैसे पांव आसमान के जमीन पर
वस्ल-मुलाक़ात के तहज़ीब को न भूल जाना
कोई किसीसे जफ़ा करे ऐसा न खुदा करे
आदमी, आदमी की बू से परेशाँ है बहुत
वो इल्मो-हुनर हमें नहीं आता दर्दे-जिगर जिससे बांटें
वफ़ा किसीसे नहीं
सफ़र-ए-हयात में कांटों से भरा रहगुज़र आता है
हबीब की रक़ीबों से रब्त-ए-शानाशाई निकली
सबक जमाने से सीखा था
सुख़न जो ख़ामोशी से अयाँ होता है
सुख़न कहने से रह गया
तेरेसे भी बेहतर शख्सियत हैं
हरसूरत हरसू हरशय के हालात पर लिख
अखबारों में छप जाने से नाम नहीं होता
तेरे दिल की 💞
संस्मरण --खुली आंखों से देखा स्वप्र भी सच होते हैं
तीसरा हमें गवारा नहीं बशर
मर्जी से देता है
ख़ामोशी से बड़ा जवाब नहीं
अच्छाई ने हमको बुराई से सिला दिया
खुद से बशर बेगाना होता चला गया
ज़माना आंसू बहाये
रिश्तों के मरने से पहले
कानों को हो गई है आदत सुनने की आवाज़ उनकी
मंजिल से फिरभी दूरी है
ख़्वाब से गुज़र गई रात अपनी
फिरसे निखर गई रात अपनी
*मुश्क़िलात से भरा होता है सफ़र*
*मुश्क़िलात से भरा होता है सफ़र*
जीने से सरोकार छोड़ दिया
तुमसे ज्यादा नहीं है खास कोई
दिमाग से पैदल बेबात की बात करता है
रूठने से रिश्ते गहरे होते हैं
खुदा बचाए रुस्वाई के अज़ाब से
मशक़्क़त से गुजरी है हयात अपनी
खुदसे खुद की ही जवाबदेही
हमने मान लिया कि यही सही है
वसूक़ ओ यक़ीन से फ़रेब किया
वसूक़ ओ यक़ीन से फ़रेब किया
तुम काबिल हो ❤️
ख़ामोशियों में शोर पुरज़ोर होता है
दिल से दूरी थोड़ी हैं
फरिश्तों को सुना है पलटते हुए अपनी बात से
बाप औलाद से डरता है
आंसू आंखों से बाहर नहीं आ पाते हैं
आसमानों से बाते करने लगे हैं
मरना जीने की आदत से कम नहीं
उतने ग़म न मिले
अपने बैठेहैं अपनों से दूर
ए वतन
ए वतन
मेरे वतन
जर्द पत्ते गिरा दिए डाली से
इधर से गुज़र जाने के बाद
ख़ामोशियों से गुरेज़ कर
दिल से वतन निकला ही नहीं
वतन से ऐसी बेवफ़ाई न थी
अपनों को अपना कहने से डर लगता है
दवा से ज्यादा असर दुवा से हुआ
आजाद मुक़म्मल तौर से ख़ुश्बू-ए-चमन है
दूर खुद से भागता रहा आदमी
जानवर आदमी से प्यार करता है
तेरी अपनी चुस्ती से
यादों से बिछुड़ना ना आया
खोटे सिक्कों के जोर से
सच से परेशानी है
रिश्तों को संजीदगी से देखा होगा
तेरे दिल से मेरे दिल 💞💞
डर क्या डरने से कम हो जाएगा
कांटों में गुल खिलता है
महरूम कर दिया दादू को पोते के दीदार से
क्या आखीर-ओ-तासीर से भी बचकर निकल सकते हो
सूरत से भी बढ़ कर होता है स्वावलंबन
मुद्दत हुई जिसे खुदसे मिले
बताए तो सही हुई क्या है ख़ता हमसे
सीसे के उस पार देख
मसर्रतें हयात से ख़फा रहती हैं
सेवा अपने मां-बाप की
केशों से तुम कह दो-कविता
बन गए किस्से-कहानी अफ़्साने लोग
चाहे जैसे भी हों हालात
अकेला अब्र बेचारा कहाँ कहाँ बरसे
दुआसे बढ़कर दवा क्या है
तू ही सही है
तन्हाई की ख़ामोशी से गुफ़्तगू होती है
बे-ख़बर बेख्याल से
नादानी से काम नहीं चलता मुहब्बत में
कोई अपनों से दूर न रहे
वीर चरणों के स्पर्श से...
परिंदे के दिल से कफ़स निकालना है
आईने से डरते हैं
गैरों से ज्यादा अपनों के ग़म मिले
इन्तेहा भी भ्रम से हुई
ख़ामोशी से हमें डर लगता है
दो शे'र ( चार मिसरे )
न रही किसीसे उम्मीद
बच निकला उसे रब मिला
अकेले कैसे जिया जाता है
जिंदा ख्वाहिशों से जिंदगी की कहानी है
तहरीर ए किताब ए हयात
राब्तों से राब्तों का विश्वास मर रहा है
मसर्रतों से ख़ौफ़ज़दा
हवाओं से जर्द पत्तों को इश्क़
दुनिया से कोई उम्मीद ही नहीं
उम्मीद फिजाओं से
सब से ज्यादा कीमती
उसे कोई सूचित करो
इसे समझाये कोई
तुम,से है,हमें मोहब्बत, ये बात और है
किसी का होकर आने से,तेरा जाना लगा अच्छा
फिर रहे हैं दर बद्दर, तुम, दर दर से पूछ लो
मुझमें ही रह के मुझ से फासला भी कमाल का है
अंधेरों से जुगनुओं की बात होती है
वसवसे और वहम में गुज़र गई
सलाहियत से महरूम
आसमां से आती है मौत कैसे
अल्फ़ाज से नहीं
जिंदगी क्या चीज़ है मौत से इंसान डरता नहीं
सभी दौलते-दर्द से मालामाल हैं
भाईचारे से है हमारी हस्ती
किरदार हमें हमारे कर्म से मिला है
दौलत से परखने लगे हैं
बिछड़ते हैं फितरते-अना और सवाले नाक से
ऐसे रिश्ता-नाता तोड़दो तो अच्छा
फिरसे बिछती बिसात हर मात के बाद
जंग जीत सकते हो अपने किरदार से
तल्ख़ियाँ बढने से पहले
नाशाद दिल फिरसे शाद हो जाएं
मज़हब की दीवारों से ऊपर
अब खुदको भी समय कुछ दान करो
नहीं पता सच की कैसे सफाई देते हैं
जिस नज़र से देखेंगे दुनिया वैसीही दिखाई देगी @ "बशर "
खुद के साये से भी हैं महरूम
हालातों से मजबूर
ज़माने ने जैसा समझा वैसा हुआ मैं
मोहब्बत भी तार तार हुई
मनसे फ़कीर होना बड़ी बात होती है
मुसीबत से बड़ी मकतबे-हयात नहीं होती
अपना कहने को जी चाहता है
औलाद मा-बाप से बड़ी नहीं हो सकती
मफ़रूर कहे चाहे कोई मग़रूर कहे
भीतर से कितने रीते हैं हम
समझौता मत करो अपने वक़ार से
जिंदगी ऐसे गुजारी जाती है
सुना नहीं तुमने
यादें जीने की वज़ह बन जाती हैं
अल्फ़ाज ऐसे न निकल पड़े कि वापस लेने पड़े
वो मेरा है
कहोतो किसे मां कहो
बोलूं तो, बीते हुए काल-खंड से सीखा हैं.......
लहू पसीना बनकर रोमरोम से निकल आता है
माँ से बड़ी नेमत नहीं
Magar nahin hota
अभ्यागत"....तुम आए जब से, हो उदासीन.....
मनके पिंजरे से हिरासत न गई
इस जमाने से विदा लेकर ......
वोभी जाने जो हमसे कहा न जाए
मन मेरा ऐसे ही बरबस बिहंस गया........
बाक़ी हैं कुछ किस्से अभी अनकहे
ख़ामोशियों से मुहब्बत का गुमाँ कर बैठे
मनों के मिलने से घर बनता है
कब्रें पड़ीं हैं खाली लाशों से भर कर
मिलने हमसे अहबाब पुराने ले आ
ख़्वाहिशों के रस्तों से उफ़क तक जाना है
भँवर से निकलना मुश्क़िल होता है
ख़ुदकुशी का हौसला कहाँ से लाएं
सपने का प्रतिबिंब हृदय पर अब-तक छाया......
दिल से लोग क्यूँ नहीं निकल पाते
गैरौं से कौन नाराज़ होना चाहता है
इतने क़रीब मिले
किनारों से ही खिसकती है ज़मीन अक़्सर
सितम लोगों ने कलसे ज्यादा आज किया
ख़ामोशी से बड़ी कोई बात नहीं
शजर बड़ा उदास हुआ
ज़िन्दगी बेज़ारी बेचैनी से लबरेज है
आवाज़ को ख़ामोशी से समझा जा सकता है
डाकिया से
मनसे अंधा अपने अंदर क्या देखे
दर्द ए दिल मिला कि अश्क ए चश्म मिला ग़म ए हयात मुझे तुमसे मेरे हमदम मिला
दोस्तों से हारा हो
कर्मों का ही सिला मिला है मुझे
वही दूर हैं जो सबसे क़रीब हैं
आग बरस रही है आसमान से
ज्यादा से भी सब्र नहीं
मदहोशी जैसे हो गए हैं
सीनेसे निकलकर किधर जाएगा
इन्सां संभल जाता है तूफ़ान-ए-हवादिश से निकल जाने के बाद
तीरगी को सुब्ह ओ सहर कोई कैसे कहे
गांव के सपनों से भी गए
हरकोई हरकिसी से बेगाना है
तकब्बुर से हासिल कुछ नहीं होता
ख़ामोशियों से मिले घाव भी जल्द नहीं भरते
कर्मों का असर किरदार पर दिखता है
इन्सान से जोरोजब्र नहीं
अपनों से जख़्म खाये हैं
निर्मला
हर रहगुज़र-ए-सफ़र से गुज़र के देख लिया
बदले हुओं से मिलने को तैयार नहीं हैं हम
दुबारा कौन कमबख़्त चाहता है
लाजरख मेरे हिस्से का रिज़्क़ तू ही देकर
नासमझी और नादानी से
राब्ता अपने रब से रखिए
अभिव्यक्ति” के शाश्वत गरिमा से....
दोज़ख से कम नहीं हुआ करता है
खुद से निकलकर नहीं देखा
किसीसे मिलकर नहीं देखा
कैसे भूलूँ
पहला इश्क
दीवाना दिल
एकतरफ़ा इश्क
दिल की आवाज़
बुरे वक़्त से क्यूं घबराता है
एक फूल के खिलखिलाने से
दिनरैन जगकर गर बिताए तो कोई कैसे बिताए! © 'बशर' بشر.
सबसे बड़ा सरमाया होता है
खुदसे किनारा होकर भगवान को प्यारा हो जाता है.
छोटेसे नामकी शुरुआत मुश्क़िल से होती है
ना तो मुमकिन जुबाँ से कद -ए-औरत की सना होती है.
कौन से हुनर थे मुझमें
देकर नहीं कहता किसी से
हमको चलने से मतलब
मनसे हारकर कभी नहीं जीता जा सकता
अपनों की फ़िक्र से निकलें तो हाल अपना देखें © 'बशर' bashar بشر
राजी हमसे कोई था ही नहीं
गुरू सेवा हो,
झूठ नहीं बोलूं तो गर्मी से झुलस जाऊं
अपने-आप से जमा-खर्चे के हिसाब मांगे
मन नहीं भरता 🥰
जिस्मों से इश्क़ 🥀
रैनबसेरे के मेहमानों की बात क्या करें
गुल खिलना ही नहीं
कितने लोग वो देखते हैं जो उन से छुपाया जा रहा है! @"बशर"
बातों से तक़दीर नहीं बदला करती
अपने वालदैन की वज़ह से हैं
उस से क्या जुदा होना
शुक्रिया आपका 🥰🥰
तुमसे आगे कुछ नहीं
तुमसे आगे कुछ नहीं
परिणीता
बुराई मिटाने से मतलब है
लबों से बयां नहीं होती
सीना चीरकर उसको कैसे दिखाई जाए
बात ही कुछ ऐसी है
मरने से पहले कोई कार ए नुमाया तो कर जाते
चांद 🌙
मिले नहीं बुराई किसी सूरत जमाने से
उम्मीद से प्यार मर भी जाता है
तक़दीर से 🦋🙌
उम्र तमाम हुई मयखानों में नादानी से
पता ही नहीं चला कब आगया बुढापा जवानी से
मां से ढेरों बातें होती थी
खुदा से भी नहीं डरता है
सुकून-ए-क़ल्ब से रहेंगे हम
निगाहे-मुहब्बत से ज़ालिम ने इशारा न किया होता
इल्मो-अदब से पुर-नूर शख़्स किस क़दर बदनीयत था
जफ़ा को वफ़ा बताई नहीं जाती हमसे
बंदा तक़दीर के भरोसे ही रहता है
गाँव की गलियों से निकलकर कोईदरवेश आया @"बशर"
शर्मसे सरझुके हमारा बेसबब सरझुके अगर किसीका
अदाकारी हमसे दिखाई नहीं जाती
चिंतन मनन वांछित से आधा हुआ है
मां-बाप केलिए बेटोंसे बढ़ कर रही हैं बेटियाँ
इश्क़ हमारा 😇✌️
सुख दुःख
गृह आभारी रहेगा तेरा
अपने आपसे भी रहता है नाराज़ आदमी
तिश्नगी बुझती नहीं सामने समंदर है
क्या अबकभी कोई न बसेगा सूनीपड़ी जमींपर
धरती का मिलन गगन से होना चाहिए
खा ले हवा दो दिन इस फ़ानी संसार की
मंहगा पड़ता है उल्टी नाव खेना
कमाने के लिए घर से निकलना पड़ता है
वाबस्ता होता नहीं किसीभी मज़हब से ख़ुदा
लाईलाज वबा से बेमौत ही मर गए
बबूलके पेड़ बोकर बशर आम कहाँसे खाएगा
बे-खुदी में खुदसे ही हो गए बेगाने
फूल झड़ना तो दूर पत्थर से बरसते हैं
गुस्से में इन्सान
हम सब कैसे होगए इक दूजे से जुदा
उनकी हैं मुंतज़िर कबसे हमारी आंखें
चुगलखोर से दूरी हो
काम केलिए निकल जाया करो
आते हैं कैसे जाते है कैसे चांद सूरज और दिन-रात
अहबाब की रक़ाबतें पहचानने का इल्म कहाँ से लाईए
शराबी से शराबी कहे चल कोई शराबी ढूंढें
सुकूंन से बसर करना हमारे बस में है
इन्सान कभी वालदैन से बड़ा हो नहीं सकता
उससे न जा सकाहै आजतलक कहीं कोई बचकर
ख़ुलूस से दुश्मन को भी अपना बनाया जा सकता है
माटी से शुरू माटी पर ख़त्म बात हयात की
मोहतरमा 🤩
हसरतें कहीं जाती नहीं हैं
मुझ से मुझ तक का फासला ना मुझसे तय हुआ
सपनों से दूर रहता हूँ
इस जहाँसे आगे जहाँ औरभी है
मेरे नुक़सान से तुझको नफा क्या है
जुदाई से हरसूरत वस्ले-यार बेहतर है
मुफ़लिसी से ही रहती है कुर्बत ग़रीब की
होती नहीं खुद ही से खुदकी मुलाक़ात
प्यार में हम हर हद से गुज़र जाएंगे
जा ही रहा है उसे भूल जाइए और जाने दीजिए
ये शेरो-सुख़न उसे बुलाने केलिए है
जगना पड़ताहै सुब्ह फिरसे उड़ने केलिए
डूबने के डरसे कश्ति में सवार नहीं होता
गैरों से उम्मीद का दिन देखना पड़े
तूफ़ान जिसने देखा वो नाख़ुदा लहरों से हारा
हमारी उनसे वस्लो-मुलाक़ात ही दवा है
खुदसे मिलनाभी उतनाही ज़रूरी है
खुशीकैसी कुछ पाने से गमकैसा कुछ खोने से
हरबार हरजगह एकजैसे रहते नहीं हैं लोग
हरगिज़ किसीसे कम नहीं
तुमसे जो प्यार कर बैठे हैं 😍
जिंदगी में जिंदगी से न हुई मुलाक़ात
वो देखने की कोशिश नहीं की जो उससे छुपाया गया है
रक़ीब दूसरों के घर की रौशनाई से जलता खूब है
तन को निखारने से क्या होगा
सोच और कर्म से हासिल की जाती है
विसाल-ए-हक़ीक़त से "बशर" फ़रेब से तुम हिज्र करो
अपने खुदके ज़मीर से ठुकराए हुए लोग
मरने से ज्यादा ज़िंदगी सताती है
साबित करो कि तुम हमसे नाराज़ हो
बांटनेसे और बढेंगी मसर्रतें कम न बांटा करो
जिंदगीसे भागकर आगे निकलने की न होड़कर
नजरों से समझाकर देखेंगे ©
बाप-बेटे से बढ़कर दादू-पोते का प्यार
मिलें कैसे दो किनारे
जिंदगी तुझसे क्या गिला करें
दुश्मन के वार से पहले होशियार हो जाओ
तुम्हारी दुनिया से निकलकर ही चला गया
वस्लो-गुफ़्तगू से करें दूरियाँ ये कम
इन्सान को इन्सान से मिलाये तालीम
आपकी हयात को आपसे मुहब्बत हो जाएगी
अश्आर बनते रहें बेहतर से बेहतर
बनगया ग़मकी वो दवा मुझमें
दोस्ती सिर्फ़ मसरूफ ओ मुबतिल से करता हूँ
नतमस्तक होना पड़े
कहानी
समझदार दादाजी
बिट्टो
फ़िक्र
मुझे सुसाइड नहीं करना था
मायाजाल
बंधन
गलती
"माँ का आँचल"
'जिएंगे शान से.. मरेगें शान से'
जन्म धरती से प्रेम
अनजान चेहरे
बेलजियम की चॉक्लेट...
किसे बताऊ
प्रथम ग्रासे मूषक पातः (भाग-1)
प्रथम ग्रासे मूषक पातः (भाग-2)
प्रथम ग्रासे मूषक पात: (अंतिम भाग-3)
सारे पुरुष एक से नहीं
अकेली लड़की मौका.. या जिम्मेदारी..
अन्नदाता से.छल
मैच्यरिटी
मैच्युरिटी
छोरी भी छोरा ते कम नहीं
माँ की सीख
बोए पेड़ बबुल के आम कहाँ से पाए
"प" से "म" तक
मीरा समर्पण... एक निष्ठुर से प्रेम
सेतु,,,,,,कहानी भाग,,,1
सेतु भाग,,,,,,2
प्यार से बढ़कर कुछ नहीं
आशंका
महंगी भूल
बड़े भाई साहब
भारत की सबसे लंबी दीवार
आशंका
भीड़ में कुछ ऐसे भी
जो बोया वो पाया
मिट्टी से तकदीर संवारी
क्योंकि लड़के रोते नहीं
प से म तँक
सबसे बड़ा छाता
समाज सेवा
समाज सेवा
कुछ ख्वाब अधूरे से
पैसे पेड़ पर नहीं उगते
क्या से क्या हो गया
एक डोर नाज़ुक सी
दौरा
सेवा का मेवा
टिप टिप बरसे पानी
माई की कत्थई साड़ी
मां से ही मायका
काकी
बूढ़ा आत्मसम्मान
टिप टिप बरसे पानी
नकारा
नकारा
नजरिया
जिज्जी (भाग - 3)
:महामारी से मुक्त होने हेतु ईश्वर को पत्र
:महामारी से मुक्त होने हेतु ईश्वर को पत्र
जिज्जी भाग 7
वैशाख की धूप
निर्वाह
" बादलों से घिरा आसमान "
" तुम्ही से शुरू तुम्ही पर खत्म"
" महज बता रही हूँ "💐💐
"अतीत के गलियारे से "💐💐
काश बुद्ध से कुछ करके जाट
" ऐक्सेंट वाली हिंदी " 💐💐
धरती से टिका अंगूठा
ये साँसे हैं हमारी
कमली
वैशाख की धूप
अमर प्रेम
जिन्दगी का दर्दीला पन्ना
अमर प्रेम
"पहला प्यार "🍁🍁
"मैंने जो कुछ अपने दादाजी से सीखा " 🍁🍁
बम्बई ट्रेनिंग सेंटर की स्मृतियाँ
पीयूष गोयल द्वारा लिखित “सेठ का पत्र ….”
मरा मरा से राम राम ….. मोह मोह से ॐ ॐ
“पंजाब से आये हैं..”
असफलता से सफलता की ओर
लव-सेंस
लेख
मैंगो वनीला मस्तानी
शायद तुनक मिज़ाज
#कैसी रीत?
सोने का पिंजरा
उपेक्षिता नारी
दर्द...
यादों के झरोखे से
काश से आस तक
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अति से बचे
विजयदशमी ऐसे मनाएं
भरोसे का बाज़ार
ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर
डायरी से...
क्लास श्री बिटिया
सामाजिक जिम्मेदारी
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अपनी_पहचान_हिंदी!
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