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प्रेम - नेहा शर्मा (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

प्रेम

  • 177
  • 2 Min Read

प्रेम की इस आशा को।
मौन की परिभाषा को।
तुम कैसे जानोगे
बोलो कैसे पहचानोगे।

शब्दो के इस बाण को।
टूटी ही पहचान को
बोलो कैसे जोड़ोगे
कैसे मुँह तुम मोड़ोगे।

नेह के इस स्नेह को
नदियों के इन मेह को।
कैसे तुम अपनाओगे
कैसे घर तुम बनाओगे।
नेहा शर्मा

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shubham sharma (पाठक)

shubham sharma (पाठक) 3 years ago

बहुत खूब नेहा जी

नेहा शर्मा3 years ago

shukriya

Rahul Sharma

Rahul Sharma 3 years ago

Good one

प्रपोजल
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वो चांद आज आना
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