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कवितालयबद्ध कविता
प्रेम की इस आशा को। मौन की परिभाषा को। तुम कैसे जानोगे बोलो कैसे पहचानोगे। शब्दो के इस बाण को। टूटी ही पहचान को बोलो कैसे जोड़ोगे कैसे मुँह तुम मोड़ोगे। नेह के इस स्नेह को नदियों के इन मेह को। कैसे तुम अपनाओगे कैसे घर तुम बनाओगे। नेहा शर्मा
बहुत खूब नेहा जी
shukriya
Good one