Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
डाकिया से - Bindesh kumar Jha (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

डाकिया से

  • 62
  • 3 Min Read

डाकिया से

तुझसे बड़ा दगाबाज शायद कोई ना होगा
जो दे तसल्ली झूठी बार-बार
निगाहों में यूं ही लगातार अरमान जगाए
बोले, होगी रूठी वह इस बार,
डाकिया इतना ही बोलता है।


आज कोई चिट्ठी नहीं आई है
कल शायद आने वाली है
मेरा दिल टूटने से बचा रहा है या फिर
है कोई बात जो कहने वाली नहीं है
डाकिया क्या सोचता है?


एक बात बता तो फिर मुझे डाकिए है
क्या बाहर ही अंधेरा है
यह मेरी आंखें ही बंद है
या मेरी आंखों पर इश्क का पहरा है?
डाकिया चुप ही रह गया

बिंदेश कुमार झा

IMG-20240524-WA0015~3_1716781477.jpg
user-image
वो चांद आज आना
IMG-20190417-WA0013jpg.0_1604581102.jpg
तन्हाई
logo.jpeg
प्रपोजल
image-20150525-32548-gh8cjz_1599421114.jpg
माँ
IMG_20201102_190343_1604679424.jpg