कवितालयबद्ध कविता
जीवन का लक्ष्य ये बना के चलो,
गुरू सेवा हो,
बिन गुरू नाम लिये,
दिन कैसे शूरू हो,
होश संभाले इस धरा पर,
फिर बिना गुरू नाम लिये,
ये रात क्यों सुनी हो,
जीवन का लक्ष्य ये,
गुरू सेवा हो,
कलयुग है,पर
अज्ञानी भी गुरू है,
ज्ञान समुद्र विशाल मगर,
जो कभी समाप्त ना है,
पाओ जरूर तुम ज्ञान,
अपने जीवन में,
सदियों की परम्परा है,
जीवन का लक्ष्य ये बना के चलो,
गुरू सेवा हो,
गुरू मिल,
एकलव्य जैसा ज्ञान लेना,
जीवन में कठिनाई भले,
कुछ क्षणिक मात्र की,
गुरू नाम अपना लेना,
गुरू भलीभाँति पहचान के,
जो सद् बुद्धि तुमको प्रदान करे,
जीवन का लक्ष्य ये बना के चलो,
गुरू सेवा हो,
बिन गुरू नाम लिये,
दिन कैसे शूरू हो,