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पहला इश्क - Dipak Kumar (Sahitya Arpan)

कवितागजल

पहला इश्क

  • 17
  • 5 Min Read

मुस्कुराहटों पे उनके जान निसार था
कैसे मैं बताऊँ, उनसे कितना प्यार था
दिल के ज़र्रे ज़र्रे में बसे हुए थे वो
कैसे मैं भुलाऊँ, वो तो पहला प्यार था

हर फैसला तुम्हारा मुझको मंज़ूर था
दिल हमारा तेरे प्यार में ही चूर था
कुछ बात थी ज़रूर, उनमें उलझे रहते थे
वरना तो देखने को ये जग सारा यार था

मुस्कुराहटों पे उनके जान निसार था
कैसे मैं बताऊँ, उससे कितना प्यार था

एक दूसरे के चाहतों में खो गए थे हम
दुनिया में बस बहारें थीं, नहीं था कोई ग़म
दिल जान उनपे हम तो अपना वार बैठे थे
हर बात पे उन्हीं के हमको ऐतबार था

मुस्कुराहटों पे उनके जान निसार था
कैसे मैं बताऊँ, उससे कितना प्यार था

था वो सफर सुहाना, मंज़िलें करीब थीं
सबसे अमीर हम ही थे, दुनिया गरीब थी
हर बूँद में लहू के उनका खुमार था
लगता था जैसे सदियों से बस इंतज़ार था

मुस्कुराहटों पे उनके जान निसार था
कैसे मैं बताऊँ, उससे कितना प्यार था

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