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जिज्जी (भाग - 3) - नेहा शर्मा (Sahitya Arpan)

कहानीहास्य व्यंग्य

जिज्जी (भाग - 3)

  • 384
  • 11 Min Read

अब क्या बतायें!!!! जिज्जी हमारा एटीएम हल्का करवा कर निकल ली अपने घर को। अब हम घर पहुँचकर सोच रहे थे। भानु को क्या जवाब देंगे!!!! क्योंकि जो 3 महीने के राशन के पैसे भानु ने हमारे एटीएम में जमा किये थे..... उनमें से कुछ ही बचे थे। पर्स हो तो रो - चिल्ला कर नौटँकी फैला भी दें कि पर्स चोरी हो गया !!!!!! आज तो पक्का कारगिल युद्ध होगा घर में,

“हे भगवन इस मुसीबत से बचा लो...... सवा किलो लड्डू चढ़ाएंगे प्रशाद में.......”

आँख बंद कर हाथ जोड़कर भगवान को याद ही रहे थे, कि दरवाजे की घण्टी बजी। हमे लगा भानु आये, झट से दरवाजा खोला। देखा तो जिज्जी – जिज्जा, बच्चे सब सजे धजे नये कपड़ों में घर के बाहर खड़े है। जिज्जी साड़ी का पल्लू हिलाते हुए अंदर आयी। और जाकर सोफे पर धम्म से बैठ गयी। हम पीछे से बुदबुदाये......

“भगवानजी लड्डू की बात आपके हमारे बीच हुई थी इनको काहे बीच मे ले आये”

हमने बनावटी हँसकर पूछा,

“कहो जिज्जी कैसे आना हुआ”,

जिज्जी तुनककर बोली......

“ काहे आ नही सकते का, हमारे भाई का घर है,

जिज्जी फिर से घड़ियाली आँसू बहाते हुए.....

“तुम तो चाहती ही नही हो हम यँहा आये, हम तो अपने कपड़े दिखाने आये थे, की हम कैसे लग रहे है, भानु को धन्यवाद जो देना था..... हमें इतने सुंदर कपड़े दिलाये, पर तुम नही चाहती हो तो हम चले जाते है, फिर कभी नही आएंगे”,

(उठकर खड़ी हो जाती है)

“नहीं जिज्जी ऐसी कोई बात नही है, हम सच में खुश है, आप यँहा आये, आप अच्छे लग रहे हो जिज्जी सच कह रहे है।”

हमने चेहरे से टेंशन के भावों को हटाते हुए बोला, तभी जिज्जा बोल उठे,

“अरे आये है तो चाय पीकर जाएंगे ना, बैठो तुम”,

हम घड़ी के कांटो को बीच बीच मे नज़र बचाकर देख रहे थे जो तेज़ी से घूम रहा था और चींख चींखकर कह रहा था कि भानु के आते ही आज युद्ध पक्का है, पर इस जिज्जी नामक तूफान को घर से कैसे रुख़सत किया जाये। अब तो चाय पीने की भी डिमांड आ गयी है।

इतने में जिज्जी का फोन बजा,

"हाँ आती हूँ"

कहकर जिज्जी ने फोन रख दिया।

“चलो जी चाय बाद में पीते है, MRS मल्होत्रा ने बुलाया है कुछ जरूरी काम है”,

कहते हुए जिज्जी ने पर्स हाथ में टाँगा और सब लोग उनके पीछे पीछे कैटवाक करते हुए निकल लिये। हम मन ही मन भगवान का शुक्रिया अदा कर रहे थे।

दरवाजा बंद कर हमने लम्बी साँस ली। अब तो बस जुगाड़ लगा रहे थे कि रायता कैसे समेटा जाये। तभी दिमाग की बत्ती जली और एक कुटिल मुस्कान के साथ हम लग गये खाना बनाने में और पति को पटाने में।-नेहा शर्मा

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शिवम राव मणि

शिवम राव मणि 3 years ago

बहुत बढ़िया

Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

जिज्जी ने भी आपको खूब ' मजबूत' 'कर दिया है. अपने दांव पेंच से..! आपके दिमाग़ में' 'कोई प्लानिंग' 'हो गयी है..!! प्रतीक्षा है..! 👌👍

नेहा शर्मा3 years ago

जी धन्यबाद कल अगला एपिसोड प्रस्तुत करती हूं।

दादी की परी
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