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आपदा या उत्सव हम भारतीयों की उत्सवधर्मिता का परिचायक है।
वाल्मीकि रामायण के अनुसार राम रावण युद्ध लगातार 84 दिन चला था।
मायावी रावण हर बार बच जाता।सफल ना होने पर प्रभु श्रीराम को शक्ति पूजा अर्थात शस्त्र पूजा करनी पड़ी। दसवें दिन ही रावण का वध किया जा सका। इसलिए इस दिन को भगवान श्रीराम के संदर्भ में विजय-दशमी के रूप में मनाते हैं।
रावण के दस सिर थे, इसलिए इस दिन को दशहरा यानी दस सिर वाले के प्राण हरण होने वाले दिन के रूप में भी मनाया जाता है।
हिंदू संस्कृति में विजयादशमी पर शस्त्र पूजा का बहुत महत्व है क्योंकि युद्ध में विजय अच्छे शस्त्रों से ही प्राप्त होती है। शस्त्र होने से व्यक्ति को बल, सम्मान और आत्मविश्वास प्राप्त होता है। शस्त्र को वीरों का अलंकार माना जाता है।शस्त्र को धारण करना महत्वपूर्ण नहीं होता उसे योग्य समय पर उचित रूप से चलाना भी आना चाहिए।हमारी संस्कृति कहती है कि शस्त्रों का उपयोग सत्य और धर्म की रक्षा लिए होना चाहिए।वीर और धर्मनिष्ठ शस्त्रधारी से पापियों के हृदय में भय और आम लोगो के बीच अभिमान होना चाहिए।
आज के युग में हमारे कौशल, कार्यकुशलता, कर्तव्य निष्ठा, व्यावहारिकता, चरित्र , परस्पर सहयोग और विश्वास हमारे शस्त्र हैं जिनके उपयोग से समाज का कल्याण करें।आज इस पावन मौके पर हमारे पास जो शस्त्र हैं उनकी पूजा करें, उनका इस्तेमाल सही तरीके से सत्य के काम में करें। उनमें समय- समय पर धार देते रहे।
क्रोध,लोभ,मोह,अहंकार,ईर्ष्या, हिंसा,आलस्य,छछ
कारों को हराकर अपने अंदर के रावण पर विजय पाकर विजयदशमी पर्व मनाएं।
गीता परिहार
अयोध्या
बहुत ही उम्दा और बहुत ही सटीक विषलेषण किया आपने
हृदय से आभार