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ग़ज़ल - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कवितागजल

ग़ज़ल

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ग़ज़ल
एक प्रयास
प्लीज़ राय अवश्य दें।

लिहाफ़ में जब मुँह छुपाने लगी
लाली उषा की मुझे लुभाने लगी

साँसों में घुल गई चंदन
सी खुशबू
तेरी मौजूदगी याराँ मुझे
भाने लगी

ज़ख़्म जो दिए तूने प्रिये
ताज़ा है अभी
सब्र का मलहम अब मैं
लगाने लगी

तेरे दर की दहलीज़ पे
बैठी रहती
अश्क़ तेरी याद में प्रिय
बहाने लगी

बाद मुद्दत के मुलाक़ात
हुई उनसे
नज़रें गैरो की माफ़िक
चुराने लगी

चाँद चढ़ते ही ख़्वाब तेरे
आ जाते हैं
नींद में भी क्यूँ तू मुझसे
कतराने लगी
सरला मेहता

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शिवम राव मणि

शिवम राव मणि 3 years ago

भाव अच्छे हैं। कहीं कहीं मात्र भार आगे पीछे हो रहे है

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