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एक सत्य - नेहा शर्मा (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

एक सत्य

  • 304
  • 3 Min Read

मृत्यु की छाया विदित होती है उन प्रतिबंधित मार्ग से गुजरती हुई
जिन पर हजारों कांटे शरीर को छलनी कर बेध कर निकल जाते हैं।
उस क्षण का मौन पसर जाता है आंखों पर
फैल जाती है सूर्य की कठोर तपन हृदय के किनारों पर,
अग्नि सी प्रचंड तपस्या में लीन देह पर पड़े चिन्ह
बता देते हैं कि जीवन कुछ नही है
बस एक धुंआ है जो हवा में मिश्रण बनाकर पानी सा बह जाता है।
और छोड़ जाता है उसी वेग से डर जिससे उभरना मनुष्य के बस की बात नही।
जिस क्षण वह काबू पा लेता है उस डर पर
मृत्यु की छाया उसकी मुट्ठी में कैद उसे मिला देती है
उस छोर से जिससे उसका नाता जन्म से पहले का है। - नेहा शर्मा

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Punam Bhatnagar

Punam Bhatnagar 3 years ago

बहुत खुब

शिवम राव मणि

शिवम राव मणि 3 years ago

वाह अद्भुत

नेहा शर्मा3 years ago

धन्यवाद

Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

जीवन का चिरन्तन सत्य..!

नेहा शर्मा3 years ago

शुक्रिया

वो चांद आज आना
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तन्हाई
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प्रपोजल
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माँ
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