कहानीलघुकथा
कहानी पूर्णतया काल्पनिक है कृपया इसे किसी की जिंदगी से न जोड़े।
"उसे मिरगी का दौरा पड़ता है"
"अरे सब बहाने है उसके, जब भी कोई थोड़ा कुछ बोल दे लेट जाती है जमीन पर लोगों को उससे हमदर्दी हो जाती है, उसके चारों तरफ चक्कर लगाने लगते हैं उसका ध्यान रखने लगते हैं"
"यार वो मेरी बहन है। ऐसा मत बोल, देख उसकी तबियत खराब तो है उसकी शक्ल से ही दिख रहा है"
"कुछ नही है सब नाटक है"
"तू इंसान है या कुछ और तेरे अंदर इंसानियत है भी या नही"
"तुझे अभी यही लगेगा कि मैं ऐसी बात कर रहा हूँ पर सच यही है, उसने मुझसे खुद कहा"
"क्या!"
"हाँ, उस दिन भी याद है ताईजी और तेरी मम्मी बहस पर अड़ गई थी वो छोटी सी बात पर कुछ कह दिया था, ये गिर पड़ी थी उसके बाद मैने उससे पूछा था कि तू ठीक तो है।
"फिर"
"फिर क्या फिर बोली वो की घर में लड़ाई झगड़े बढ़ रहे हैं, ज्यादा बढ़े इससे अच्छा मैं नाटक कर लेती हूं "
"अच्छा इसलिये क्या?"
"हाँ"
"यार एक बात बता 2 या 4 बार नाटक करके ये झगड़ा रुकवा भी देगी, पर मन में जो लकीर खींच रही है उसका क्या होगा?"
कहकर वह अपनी बहन के कमरे में चला जाता है। और उसका चचेरा भाई अभी भी वहीं खड़ा होकर सोच में डूबा था। - नेहा शर्मा