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जन्म धरती से प्रेम - Kumar Sandeep (Sahitya Arpan)

कहानीप्रेरणादायक

जन्म धरती से प्रेम

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जन्म धरती का त्याग कर मनोज पूरे परिवार के साथ मुम्बई महानगर में रहता था। अभी दो वर्ष ही हुए हैं गाँव से महानगर आए हुए। ईश्वर की कृपा से तन्ख्वाह भी अच्छी मिलती थी मनोज को। कुछ दिन किराए के मकान में रहने के बाद उसने बना बनाया बड़ा मकान खरीद लिया।परिवार में कुल तीन सदस्य थे मनोज, मनोज की पत्नी और एक दस वर्षीय बेटा अनमोल। जब से गाँव से महानगर में आया था अनमोल तब से हर पल बेहद मायूस रहता था। उसकी मायूसी की मुख्य वजह थी गाँव में नहीं रहना।



जहाँ एक ओर मनोज और मनोज की पत्नी महानगर में रहना पसंद करते थे वहीं दूसरी ओर अनमोल को गाँव में रहना पसंद था। अनमोल को गाँव के वो खट्टे-मिट्ठे पल याद आ रहे थे। दोस्तों के संग घंटों अमुआ की डाली पर बतियाना, खेलना-कूदना, गुल्ली डंडे के वो खेल। सबकुछ यादकर अनमोल बड़े कमरे के एक कोने में बैठकर सिसक सिसकर अश्रु बहा रहा था अपनी आँखों से। आलिशान भवन में रहकर भी तमाम सुख सुविधाओं के साधन मौजूद होने के बाद भी अनमोल की आँखें सदा नम रहती थी। चूंकि उसकी वास्तविक ख़ुशी तो गाँव में थी जो उसके पिता ने छीन ली है उसे शहर लाकर।



महानगर के चकाचौंध ने मनोज का मन मोहित कर लिया था उसे बेटे के चेहरे पर पसरा सन्नाटा दिखाई नहीं दे रहा था। महानगर के बड़े विद्यालय में मनोज ने अपने बेटे का दाखिला करवा दिया था। समय गुजरता गया, अनमोल कड़ी मेहनत और लगन से पढ़ाई करता था। लगन और कड़ी मेहनत की बदौलत उसने उच्च शिक्षा ग्रहण की।अनमोल गाँव की यादों को अब तक भूल न सका था।उसने एक दिन अपने पिता से कहा, "पापा अब मैं यहां नहीं रहूँगा मेरा गाँव मुझे बुला रहा है मैं अपनी जन्म धरती पर रहने जा रहा हूँ। गाँव में एक विद्यालय खोलूंगा और उसमें सभी गरीब असहाय बच्चों को निःशुल्क पढ़ाकर उनके उज्ज्वल भविष्य का निर्माण करूंगा। और गाँव जाकर सचमुच मुझे बेहद भी सुकून मिलेगा। इतने दिन मैंने किस तरह गुजारा है मैं ही जानता हूँ।" एक पल के लिए तो मनोज अपने बेटे को गाँव भेजने के लिए राजी न था पर उसने बेटे की ख़ुशी के लिए उसे गाँव जाने की आज्ञा देना उचित समझा।



महानगर से वापस अब अनमोल अपने गाँव में आ चुका था। गाँव में प्रवेश करते ही उसकी खोई हुई ख़ुशियाँ उसे वापस मिल चुकी थी। गाँव वालों के साथ और सहयोग से और अपने बुद्धि-विवेक का सदुपयोग कर उसने गाँव में विद्यालय खोलने का पुनीत कार्य संपन्न कर दिया।विद्यालय में सभी निर्धन विद्यार्थियों के लिए निःशुल्क पढ़ाई की व्यवस्था की थी अनमोल ने। इस पुनीत कार्य के संचालन में अनमोल के पिता भी अनमोल का पूरा साथ देते थे। अनमोल भी बच्चों को पढ़ाता था और न केवल किताबी ज्ञान अपितु प्रेरणादायक बातें भी बताकर अनमोल बच्चों को आगे बढ़ने के लिए प्रेरणा देता था। और सदा कहता था कि "बच्चों अच्छे-से पढ़-लिखकर बेशक अपार सफलता अर्जित कर लेना पर कभी भी जन्म धरती से प्रेम करना मत भूलना और बड़ा आदमी बनने की नहीं बल्कि अच्छा आदमी बनने की कोशिश करना।" सभी विद्यार्थी अनमोल की बातों को गंभीरता से सुनने का प्रयत्न करते थे और उन बातों को आत्मसात करने की कोशिश भी करते थे।

©कुमार संदीप
मौलिक, स्वरचित

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दादी की परी
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