कहानीसामाजिकलघुकथा
समाज सेवा
कर्नल साहब रिटायर हो चुके थे। साधन-संपन्न,बहुत बड़ा घर था,सारी सुख - सुविधाओं से लैस,मगर उस घर में कौन रहता था... ? हैं उनकी तीन बेटियां और एक बेटा।बेटा अब अपने परिवार के साथ दुबई में रहता था।सबसे बड़ी बेटी विवाहित है।वह भी विदेश में है,मंझली अविवाहित बेटी किसी विदेशी एन जी ओ में समाज सेवा कर रही है..जाना - माना नाम है,उस एन जी ओ का।सबसे छोटी बेटी के पति की मृत्यु हो चुकी थी।वह पति की मौत के बाद कुछ दिन इनके साथ रही,बाद में बच्चों की बेहतर पढ़ाई की वजह से वह दूसरे शहर में रहने लगी ,इस वजह से मां की बेटी को जरूरत समझी गई,नतीजतन अमूमन वे उसके पास रहतीं।
जिन दिनों की यह घटना है,उन दिनों कर्नल साहब घर पर अकेले थे, उस बड़े से घर में अकेले!
सर्दियां थीं, कर्नल साहब ने नौकर से कह कर अंगीठी जलवाई और आग तापने लगे। इस बीच कब क्या हुआ,शायद उन्हें झपकी लग गई थी, अंगीठी कब उल्ट गई,मालूम नहीं चला। कपड़े जलने पर हड़बड़ा कर हाथ - पांव मारते,आग को बुझाने की कोशिश करने लगे, ज़ोर - ज़ोर से चिल्लाने लगे,उनकी आवाज़ सुनकर नौकर दौड़ा- दौड़ा आया, किसी तरह आग बुझायी और फौरन पास- पड़ोस में रहने वाले एक करीबी रिश्तेदार ,जो पास ही रहते थे, उन्हें टेलीफोन पर सूचना दी।उन्होंने आनन -फानन में उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया,ज्यादा जल गये थे।
उन्हें बचाया नहीं जा सका।
एक सवाल मेरे अंतर्मन को आज तक मथ रहा है..
कर्तव्य में प्राथमिकता बुजुर्ग पिता की सेवा है या समाज सेवा ?
गीता परिहार
अयोध्या
घर के बुजुर्गों के प्रति कर्तव्यपालन पहले है. बाद में बाहर की समाजसेवा..!
यही अपेक्षित है।