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लव-सेंस - मदन मोहन" मैत्रेय (Sahitya Arpan)

कहानीप्रेम कहानियाँ

लव-सेंस

  • 13
  • 257 Min Read

यह कहानी समाज में हो रहे बदलाव पर आधार बिंदुओं को चिंन्हित करता है!कहानी का फैक्ट मुल बिंदू से अलग है,कहानी के मुख्य पात्र में भिन्नता हैं,शौरभ जो कि स्वभाव से प्रेक्टीकल हैं,वो चाहता हैं कि जो लङकी उससे प्यार करें,वो उसकी तावेदार हो,उसके हरेक नखरे,इशारे को मुक हो कर अनुसरण करें!लेकिन दुसरी तरफ शौम्या चाहती हैं कि वो जिससे प्यार करें,वो बस उसके जुल्फो मे खोया रहें, उसकी गुलामी करें,रात के वो पल जो सिर्फ बेडरूम तक रहते हैं, उसके अलावा उससे कोई मतलब ना रखें!
दोनो का प्यार परवान चढने बाला हीं होता हैं,दोनो हीं लीव इन रिलेशनशिप में साथ रहते हैं,पर जब दोनो के अहम आपस मे टकराते हैं,तो दोनो के जिन्दगी मे इक हलचल सा उठता हैं और वो हलचल इस प्रकार विकृत होने लगता हैं कि लगता हैं,अपने साथ सबकुछ बहा कर ले जाएगा दूर कहीं!

आभार
मदन मोहन(मैत्रेय)

सुबह की पहली किरण ने धरती के आँचल पर पहला कदम रखा!
किरण के रक्तिम आभा से सज कर धरती नाच उठी,चिङियों के प्रभात कलरव से दिशाएँ गूजायमान हो उठी,लेकिन प्रकृति के उन्मत सुगन्ध ने भी मानो शौरभ पर कोई प्रभाव नहीं डाला,वो अपने बंगले के विशाल गार्डण मे बांस की बुनी हुई चेयर पर बैठा विचारो मे खोया हुआ था!आँखे शून्य मे टिकी हुई थी,ऐसा नहीं है कि वो सामान्य व्यक्तित्व का स्वामी था,आकर्षक चेहरा,शौष्ठव से कसा हुआ शरीर और निली आँखे,उसपर घुंघङाले बाल उसकी सुन्दरता मे चार चाँद लगाते थे,कुल मिला कर अगर कहा जाए कि वो किसी का भी ध्यान अपनी ओर खींच ले तो अतिस्योक्ति नहीं होगा!उम्र यही बाईस शाल
के करीब!
शौरभ शांडिल्य वैभव शांडिल्य के पुत्र थे,वो वैभव शांडिल्य जिनका कपडे के होल शेल व्यपार मे डंका बजता था, दौलत मानो प्रवाहित होती थी वैभव विला मे,वैभव शांडिल्य भी सोंचते थे कि उनका यह विशाव साम्राज्य आखीरकार शौरभ को हीं तो संभालना हैं,अतएव मगध युनिवर्सिटी से इंटर का एग्जाम पास करते हीं उन्होने हावर्ड युनिवर्सिटी भेज दिया था,उनका विचार था कि शौरभ बाहर जाकर जब पढेगा,तो उसके विचारो मे विशालता आएगी, लेकिन हुआ बिल्कूल अलग हीं!
विदेश मे जाकर शौरभ और भी संकिर्ण विचार का हो गया,अब तो प्रींट और इलेक्ट्रोनीक मिडिया मे रोज हीं उसके नाम का एक कारनामा होता था,उसके नाम उछाले जाते थे!
सर!
सुनते हीं मानो शौरभ की तंद्रा तुटी,उसने नजर उठाकर देखा,तो उसका पर्सनल सेक्रेटरी प्रभात कांबले था,मुंबई मे वो हीं एक अकेला सख्स था अथवा यू कहा जाए तो अतिस्योक्ति नही होगी कि उसका हर तरह से ख्याल रखता था!
हां बोलो कांबले,उसने धीमी प्रतिक्रिया दी!
सर आज वकील ने तारीख ले रखी हैं,आज अपने केस की सुनवाई हैं,प्रभात कांबले एक हीं सांस मे बोल गया!
सुन कर शौरभ ने लंबी सांस ली और बङबङाया,उफ यह कोट भी ना, एक दिन हमारा जान लेकर रहेगा,दो जडल से केस को ऐसे खींचे जा रहा हैं,मानो यह केस ना हो कोई जीन्न की आत्मा हों!
सर आपने हमे कुछ बोला,कांबले तत्परता से बोला!
नहीं मिस्टर कांबले,मै तो बस यू हीं,ठीक हैं तुम बाहर जाकर वेट करो, हम तैयार होकर आ रहे हैं,शौरभ ने शुष्की से उत्तर दिया और उठ कर बंगले के अंदर बढ गया,वो चलता चलता बाथरूम के पास पहुंचा, फिर खङा होकर एकटक बाथरूम के दरवाजे को देखने लगा और धीरे धीरे ख्यालो मे फिर खो गया!
बचपन के वो दिन,पटना सिटी मे उसका विशाल बंगला,बंगले मे नौकरो की विशाल फौज!शांडिल्य विला का इकलौता वारिस होने के कारण वो सभी के आँखो का तारा था!उसके होठो से बात निकली नहीं कि पुरा का पुरा शांडिल्य विला दौर परता था,इसका परिनाम यह हुआ कि वो जिद्दी और निरंकुश होता चला गया,हालांकि वैभव शांडिल्य ने उसके स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने की कोशिश की,लेकिन हर बार माँ की ममता की ढाल ने रोक डाली! वैभव मे इतनी शक्ति नहीं थी कि वो माँ के ममता की ढाल को अपने प्रहार से तोर पाते!
माँ विभा शांडिल्य तो चाहती थी कि वो अपने आँचल की छाँव से कभी भी उसे अलग ना करें,हालांकि यह संभव न था,पिता के हृदय की वेदना कभी शब्दो का रूप ले लेता था!वे बोलते जरूर थे कि विभा तुम्हारा लाङ प्यार शौरभ के लिये एक बोझ बन कर रह जाएगा,लेकिन विभा उत्तर देती थी कि समय आने पर वो खुद हीं समझदार हो जाएगा!
एक दिन तो हद हीं हो गई,वो देर शाम आँफिस से मिटींग को खत्म करके घर पहुंचे,शाम का धुंधलका वातावरण पर हावी हो रहा था,रात की स्याह परते छाने लगी थी,वैभव के दिल मे आशंका थी कि आज भी जरूर विला मे तुफान आकर गुजङा हैं!वे डायनिंग हाँल मे हीं शोफे पर बैठकर टाई ढीली करने लगे,तभी रामदिन काका जो कि उम्र के साथ हीं स्वभाव से हीं सभी के सम्मान निय थे,उनके सामने अाकर खङे हो गए!
वो काफी सहमे हुये से दीख रहे थे,वैभव ने शंकित होकर पुछा कि क्या हुआ काका,जबाब मे रामदिन कांपते हुये लहजे मे बोले,मालिक!
बोलिये क्या हुआ आपको?
मुझे कुछ भी नही हुअा मालिक,वो शौरभ बाबु हैं न!
हां तो क्या हुआ शौरभ को,वो भय से कांपते हुये बोले!उनकी जुबान सुखे पत्ते की तरह कांप रही थी!
मालिक उन्हे कुछ नही हुआ!
तो फिर?
मालिक अपना डाँगी है ना टौमी,शौरभ बाबु ने दो दिनो से उसे जंजीङ से जकङ कर रखा हुआ हैं,दो दिनो से टौमी भूखा प्यासा भी हैं!राम दिन एक हीं सांस मे सारी बातें कह गया!
कहां रखा हैं उसे?
मालिक वो उन्होने अपने रूम मे!शौरभ बाबु भी वहीं पर हैं,बोल कर रामदिन ने चुप्पी साध ली!
लेकिन मिस्टर शांडिल्य कोई भी प्रतिक्रिया देने के लिये वहां नही रूके,वे लगभग दौर हीं परे और पलक झपकते हीं शौरभ के रूम मे पहुच गये!वहां के हालात देखे तो उनका हृदय विदिर्ण हो गया,सिकंजो मे कसा हुआ टौमी अपने मालिक को आया देख रोने लगा!वो ठहरा कुत्ता,इंसानी आवाज और इंसानी भावना कहां से लाये!लेकिन इतना तो तय था कि उसकी आवाज उस के वेदना की अनुभूति करा रही थी!
शांडिल्य ने नजर घुमाया तो देखा कि शौरभ विडियो गेम खेलने मे व्यस्त हैं!वो लाख कोशिश कर रहें थे कि अपने गुस्से को कंट्रोल करें,लेकिन दया के आवेग ने गुस्से को हवा दे दी थी! फिर भी उन्होने खुद को संयत किया और आवाज दी!बेटे शौरभ!
जी पिताजी!शौरभ फिर गेम खेलने मे उलझ गया बोलने के बाद!
बेटे आपने टौमी की क्या हालत कर दी हैं,आप इसे खोल दो!वे धीरे से बोले!
नही पिताजी मै इसे नही खोलुंगा,गेम इन्स्ट्रुमेंट साईड मे रखते हुये शौरभ बोला!
लेकिन क्यों,आखिर इसकी गलती क्या हैं,आप इसे क्यों नही खोलना चाहते!वे चिंतित होकर बोले!
जबाब मे जो शौरभ ने बोला वो काफी भयावह और मानव संवेदनाओं से परे था,वो बोला,यह हमारे आदेश को नहीं मानता!
एक पल को उसके कहे वाक्य ने शांडिल्य के चेतना तंत्र को ही जाम कर दिया!फिर वो बोले,लेकिन बेटे यह मूक प्राणी हैं,और इसमे सोंचने की ताकत भी तो इतनी नहीं हैं,फिर यह इंसान नही हैं,जो हमारे हरेक इशारे को समझे!बेटे अगर किसी को भी चाहे वो बेजुवान जानवर हो या इंसान,अपने आधीन रखना हैं,तो प्रेम हीं वो अचुक हथियार हैं,जिससे किसीको भी बस मे रखा जा सकता हैं!ताकत के बल पर विद्रोह का जन्म होता हैं!
जी पिताजी!
हां बेटे!आप टौमी को खोल दो,देखो तो बेचारा निरीह भाव से देख रहा हैं!
छनन-छन-छन-न!
सहसा दूर कहीं कोई बस्तु पथरीले चीज से टकराई और उसकी तंद्रा टुट गई!शौरभ सचेत हुआ और बाथरूम का दरवाजा खोल कर अंदर चला गया!वो आज जी भर के ठंढे पानी का बाथ लेना चाहता था! उसे आभाश हो चला था कि उसकी जिन्दगी रिक्त हो गई हैं और वो उस रिक्तता को भरने के उपाय को ढुंढ रहा था!उसे पिताजी की कही बातें सिद्धत से याद आ रही थी कि किसी को बस मे करना हो तो उससे प्रेम जताओ,अधीकार खुद-ब-खुद हो जायेगा!लेकिन तब वो उस बातों को कहां समझता था!वो कैसे समझता कि प्रेम हीं वो अचुक हथियार हैं,जिससे किसी को भी बस मे किया जा सकता है,तभी दरवाजे पर दस्तक हुई!
दरवाजा खुला है,आ जाओ!उसने धीरे से कहा!
वो जब चेहरे पर ठंढे पानी के छीटे मार रहा था,तभी कांबले उसके सामने आ गया!
सर!सुबह के नौ बज चुके हैं!
तो मिस्टर कांबले!
तो सर!अदालत चलना हैं,कांबले संतुलीत और नपे तुले शब्दो मे बोला!सुनकर शौरभ का मन कसैला हो गया!वो विना कोई प्रतिउत्तर दिये टावल से चेहरे को साफ किया और तेजी से बाहर निकल गया!कांबले भी उसके पीछे पीछे लपका!
बंगले के लाँन मे फियाट खङी थी,शौरभ ने दरबाजा खोला और अंदर बैठ गया!कांबले ने दरबाजा बंद किया, ड्रायविंग शीट संभाली और गाङी श्टार्ट करके आगे बढा दी!गाङी तेजी से विला छोर कर शङक पर आ गई और सरपट दौङने लगी!उतनी हीं तेजी से शौरभ के ख्यालात भी दौङने लगे थे!
शौरभ जब हावर्ड युनिवर्सिटी से पढ कर वापस लौटा,तो शांडिल्य विला मे जश्न का महौल हो गया,सभी खुश थे, केवल उसको छोर कर!उसे तो इस सबसे कोई मतवब हीं नहीं था! पटना जैसे छोटे से शहर मे मानो उसका दम घुटता था!उसे लगता था कि वो यहां कैद होकर रह गया हैं,उसके पंखो को किसी ने कुतर दिए हैं,वो उन्मुक्त गगण मे मुक्त होकर बिहार करना चाहता था!जिसके लिए उसे पटना शहर का परिधी छोटा परता था!
उफ ये व्याकुलता,कहीं उसकी जान न ले ले,उसपर घरबाले उसकी शादी की बात कर रहे थे!उसे समझ हीं नहीं आ रहा था कि वो करें तो क्या करें!उसका कोई सुनने बाला नही था,ना ही उसने कभी भी कोशिश की थी किसी के करीब होने की!ले देकर एक माँ थी,जिसे वो समझा सकता था,लेकिन वो व्यर्थ,माँ तो कितने अरसे से उसके शादी के सपने सजाये बैठी थी!वो यू ही मामला हाथो से नहीं निकलने देती!
एक दिन मौका पाकर गार्डेण मे जब वैभव शाम को बैठे थे,वो उनके पास जाकर बैठ गया!एक पल को उसे करीब देख कर वे चौंके,फिर बोले!हेल्लो बर्खुर्दार कैसे हो?
जी पापा ठीक हूं!उसने संछीप्त सा उत्तर दिया!
लेकिन मुझे तो ठीक नहीं लग रहा!मुझे लग रहा हैं कि ऐसी कोई तो समस्या हैं,जो तुम्हे अंदर हीं अंदर खाये जा रही हैं!वैभव सांडिल्य बोले!
जी पापा,आपको सही महसूस हुआ हैं,मै यहां नही रहना चाहता! वो उदिग्न होकर बोला!
तो फिर कहां जाना चाहते हो!आश्चर्यचकित होकर वैभव बोले!
मुंबई!उसने धीरे से कहा!
लेकिन वहां करोगे क्या?इस बार वैभव आशंकित होकर बोले!
मै वहां मल्टीपल बीजनैस करना चाहता हूं,मुझे उँचे उङना हैं!
लेकिन बेटा उँचे उङने की चाह मे औंधे मुह गिर ना जाओ और तुम्हारे पंख टुट ना जायें!वैभव की आशंका और भी गहरी हो गई थी!
पापा आप हो ना,मै गिरा भी तो आप संभाल लोगे!प्लीज पापा मै यहां इस छोटे से शहर मे नहीं रह सकता!मेरा यहां दम घुटता हैं! शौरभ लगा कि बोलते बोलते रो हीं परेगा!
लेकिन तुम्हारे लिये लङकी देख रहे हैं,शादी कर लो फिर चले जाना! वैभव ने न चाहते हुये भी कहा!
पापा मेरी अभी तो कितनी उम्र हुई हैं,मुझे अभी शादी नहीं करनी, बोलने के साथ हीं शौरभ उनके गोद मे सिर रख कर लेट गया!बस वैभव भी अपने आप को नहीं रोक सके!वो दुलारने लगे उसे!
वे जानते थे कि जल्दी मे उनका लिया गया निर्णय भयावह रूप भी ले सकता हैं!अत:उन्होने शौरभ की इच्छाओं पर अपने स्वीकृति की मौन मुहर लगा दी!घर मे हलचल सी मच गई, शांडिल्य विला को किसी की नजर लग गई!माँ विभा शांडिल्य ने तो पुरे विला को हीं सिर पे ले लिया!लेकिन वैभव अडीग रहे,उन्होने आनन फानन मे मुंबई कांदिवली मे विशाल बंगला खरीद लिया!शौरभ के लिये लीगल एडवाईजर दयाल मोहंतो और सेक्रेटरी कांबले की नियुक्ति कर दी!
और देखते हीं देखते उसके लिये एक लाँवी तैयार कर दी गई,जो उसके बीजनेस डील को आगे बढाने मे मदद करें!खुद वैभव ने मुंबई मे रहकर उसको सेट करने मे मदद करने लगे! दिन भर ढेरो अप्वाईंटमेंट और फिर उसके बाद लंबी लंबी मिटींग,इन सब से शौरभ जल्दी हीं थकान महसूस करने लगता था,तो पिता का हूंप और प्यार पाकर फिर से तरोताजा हो जाता था!
समय यू हीं पंख लगा कर उङने लगे और थोरे हीं दिनो मे शांडिल्य कौर्पोरेशन के नाम से उसका बीजनेस चलने लगा और थोरे हीं दिनो मे उसका बीजनेस सुर्खीयो मे आने लगा था!वैभव वापस पटना लौट गये थे और बीजनेस की कमान शौरभ ने संभाल ली थी!हालांकि मार्केट मे कंपटीसन काफी था,लेकिन उसे इसी मे मजा आता था,सो वो जी जान लगा कर मेहनत करता था!
घर्रर घर्र!
टायरो पर एकाएक ब्रेक लगने से वातावरण मे एक सुर सा गूंजा और उसके यादो के तार बिखर कर रह गए!उसने कांच के बाहर से देखा तो कोर्ट का परिसर आ चुका था,वो इतनी बार कोर्ट के चक्कर लगा चुका था कि आँखे बंद कर के भी कोर्ट के पास होने की अनुभूति कर सकता था!
कांबले ने गाङी पार्क की,वो गाङी से उतरा और कोर्ट लाँवी की ओर बढ गया,उसे एडवाईजर दयाल मोहंतो से मिलना था, दयाल मोहंतो का यही इंट्रक्सन था!वो जानता था कि शौम्या भी जरूर आई होगी!वो भी तो मुंबई मे अकेली रह कर वकालत की प्रेक्टीस कर रही हैं!वो भी बरे परिवार से ताल्लुकात रखती हैं,वो सोंच हीं रहा था कि उसके सोंच को ब्रेक लग गये!दयाल मोहंतो का आँफिस आ गया था,वो उसके आँफिस मे प्रवेश कर गया!
ठीक एग्यारह बजे अदालत की कार्यवाही सुरु हुई, निखील आप्टे की बेंच केस की सुनवाई कर रही थी!अदालत की कार्यवाही सुरु होते ही फिर से शौम्या बरस परी!वो अपना जीरह खुद हीं कर रही थी!वो अदालत को फिर से वही बात बताने लगी,जिसे उसने कितनी हीं बार दुहरा दिया था!वो बोल रही थी कि कैसे धोखे से प्रेम के जाल मे फांस कर शौरभ ने उसका शारीरिक और मानसिक शोषन किया था!वो समझ हीं नही पाई उसे और वो उस पर शारीरिक और मानसिक दुराचार उससे करता रहा!बोलते बोलते शौम्या फिर रोने लगी!
जबाब मे दयाल मोहंतो ने भी शानदार दलील दी,कोर्ट मे साक्छ्य भी प्रस्तुत किये,परिनाम कोर्ट ने अगले महीने की तारीख देकर कोर्ट मुलतबी कर दी!शौरभ का मन इतना कशैला हो चुका था कि उसने दयाल मोहंतो से बात भी नही की और तेजी से निकल कर कोर्ट रूम से बाहर आया और पार्किंग मे खरी फियेट मे बैठ गया और फिर ख्यालो मे खो गया!
सुबह का समय,शर्दी के दिन थे,शौरभ फटाफट तैयार होकर शांडिल्य विला से निकला!आज उसे अपने खाश क्लाईंट से मिलना था,कांबले मुस्तैद था,दोनो गाङी मे बैठे और गाङी ने शङक पर कुलांचे भर दी!थोरी हीं देर बाद उनकी गाङी भाव्या काँफीशाप के सामने पार्किंग मे खङी थी!क्लाईंट ने यहीं मिलने के लिये बुलाया था!शौरभ काँफीशाप के अंदर बढ चला,हाँल मे पहुंचने पर उसने चारो तरफ नजर फैलाया,तो क्लाईंट तो कहीं नही दिखा,लेकिन वो चौंका,उसके रोंगटे खरे हो गये!हो भी क्यो नही,उसने सुन्दरता की प्रतिमा देख ली थी!
शाप के बीचो बीच टेबल पर शौम्या अपने सहेलियों के साथ ठंढी मे काँफी का लूफ्त उठा रही थी!शौरभ यू ही नही घायल हुआ था,वो वास्तव मे सुन्दरता की मूरत थी!अब शौरभ के सामने समस्या थी कि कैसे वो उस लङकी से नजदिकी बढाये!वो हिम्मत करके आगे बढा और धीमी आवाज मे उसने शौम्या को संबोधीत किया!
हेल्लो मिस!
शौम्या शुक्ला,मुस्कुराते हुए शौम्या ने हाथ बढा कर उससे सेकहैंड कर लिया फिर झेप कर बोली,मै भी कितनी पागल हूं,वैसे आपका परिचय?
मै शौरभ शांडिल्य,प्रोफेसनल आर्टीटेक,बोलते हुये शौरभ उसके सामने परी खाली कुर्सी पर बैठ गया!फिर तो उन दोनो के बीच बात निकल परी!इस बीच वेयरे ने एक कप और काँफी सर्व कर गया!थोरे हीं देर मे दोनो मे घनीष्ठता छा गई!दोनो ने एक दुसरे का पसंद, परिवार और प्रोफेसन तक की जानकारी ले ली!
मिस शौम्या ये लिजिये हमारा विजीटींग कार्ड,शौरभ कार्ड को आगे बढाते हुए बोला!फिर मुस्कुरा कर बोला,जब भी आपको कंपनी की जरूरत हो बस इक काँल कर दिजिएगा!
थैंक्स,जबाब मे शौम्या सिर्फ इतना हीं बोली!
इसके बाद उसका क्लाईंट आ गया और वो उठ कर दुसरे टेवल पर चला गया और क्लाईंट मे उलझ गया!लेकिन उसका दिल तो कहीं खोया हुआ था!उसने फटाफट काम को निपटाया और जब नजर उठाकर देखा,तो शौम्या जा चुकी थी,उसे गहरा झटका लगा!उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करें!बस बोझील कदमो से वापस आकर गाङी मे बैठ गया!
कांबले ने पुछा भी कि उसके उदासी का क्या कारण हैं, लेकिन उसने अपने भावो को छुपा लिया!उसने आँफिस जाने का विचार त्याग दिया था,अतएब कांबले गाङी को सीधा विला मे ले आया,शौरभ गाङी से उतर कर सीधा अपने बेडरुम मे चला आया, लेकिन फिर भी उसे शांति नही मिल रही थी!
दिल हीं तो हैं जनाब,जब लग जाये तो बिना महबूब की दुनियां की हरेक बात बुरी लगती हैं,शौरभ का भी यही हाल था,उसे समझ नही आ रहा था कि वो क्या करें,बीके या खरीद ले!इसी उधेर बुन मे कब शाम हो गई,उसे पता हीं नही चला,और यह शाम उसके लिये चाहतो की बारिषे लेकर आई,उसके मोबाईल ने हल्की आवाज मे बजना सुरू किया!आजा पिया तोहे प्यार दूं,बस एक पल का भी बिलम्ब नही किया उसने फोन उठाने मे!उसका दिल घबङाहट मे बल्लियों उछल रहा था,उसने दिल की स्पीड को थामने की कोशिश करते हुए पुछा,आप कौन?
मै शौम्या,आज सुबह काँफी सौप मे मिली थी!उधर से खनकती हुई आवाज उभरी,और उसका मन मयुरा नाच उठा,उसे लगा कि काश उसके पंख लगे होते तो वो उङ कर शौम्या के करीब पहुंच जाता, यह इश्क भी हैं ना कितना अजीब हैं,उसके आँखो के आगे सतरंगी सपने घुमने लगे!वो चाहत के समंदर मे गोते खा रहा था,उधर से शौम्या ने न जाने क्या क्या कहा,वो कुछ भी तो समझ नही सका,उसे तो बस इतना हीं खयाल आ रहा था कि शौम्या उसके बांहो मे होगी!हां इतनी बात तो वो जरूर समझ गया कि शौम्या उसे डिलक्स वियर वार मे मिलने के लिये बुला रही हैं!
उसने उतावले पन मे मोबाईल को बेड पर फेका और फ्रेश होने के लिये वाथरूम मे घुस गया!और थोरी देर बाद जब वो विला से बाहर निकला तो काफी खीला खीला लग रहा था,इस वक्त उसने मैरून कलर कीं जींस और ब्लू टीशर्ट पहना हुआ था,जो उस पर फव रही थी, पार्कींग मे आकर उसने फियेट का दरबाजा खोला,बैठा और विला के गेट से निकाल कर रोड पर दौरा दी,कांबले दौर कर वाथरूम से निकला,लेकिन तब तक गाङी फर्राटे भङ चुकी थी,कांबले आश्चर्य चकीत सा देखता रहा!क्योंकि यह पहली बार हीं हुआ था कि शौरभ उसके विना अकेला कार लेकर वो भी शाम के वक्त विला से निकला हों!
शौरभ ने गाङी की स्पीड बढा दी थी,गाङी मे हीप हौप म्युजिक का तेज स्वर गुंज रहा था,जिसके ताल पर वो झुम रहा था!तभी डिलक्स वार आ गया,उसने तेजी से ब्रेक लगाये,परिनाम यह हुआ कि गाङी तेज आवाज के साथ दुर तक घिसटती चली गई,उसने गाङी को कंट्रोल किया,गाङी पार्क की और तेजी से हाँल की ओर बढ गया!शाम ढलने को आतुर था,और उसी आतुरता के साथ वियर वार का शबाब अपने चरम की ओर बढ रहा था!
हाँल मे हर जगह मदहोशी बिखरी परी थी,जोङी पीने और पीलाने मे मस्त थे,चारो ओर रौशनी मे हरेक चेहरा चमक रहा था और बेमिसाल लग रहा था!लेकिन उसकी आँखे तो उस चेहरे को ढुंढ रहा था,जिससे उसकी आज हीं दिल्लगी हुई थी!फिर उसकी नजर हाँल के कोने मे जाकर ठहर गई,वहां शौम्या अकेली बैठी वियर के मग को शीप कर रही थी!उसे देखते हीं उसकी बांछे खील गई,वो मदमस्त चाल मे चलता हुआ उसके पास पहुंचा और सामने बाली चेयर पर बैठता हुआ मुस्कुरा कर बोला!
हाय शौम्या!
शौरभ,तुम,मुझे तो लगा था कि तुम आओगे हीं नहीं,वो आश्चर्य चकीत होकर बोली!
ऐसा कैसे हो सकता था कि तुम बुलाओ और हम नहीं आयें!लो हम आ गये,प्रतिउत्तर मे शौरभ मुस्कुरा कर बोला!
फिर वो वियर की बोतल से अपने लिए भी मग तैयार करने लगा!इस बीच उनदोनो मे इधर उधर की ढेरो बातें हुई,वेयरा उनके लिए नई वियर की बोतल सर्व कर गया था!वे दोनो भी महेफिल के रंग मे ढलने लगे थे!रात का आलम ज्यों ज्यों बढता जा रहा था,वहां मस्ती का ग्राफ बढता जा रहा था!तभी वहां की सारी लाईटे बंद हो गई!फिर तो हल्की ब्लू लाईट और रे म्युजिक की प्यारी धुन ने शमा बांध दिया,प्रेमी जोङे एक दुसरे के बांहो मे बांहे डाले वहां झुमने लगे!
अब वहां किसे होश था,सभी महफिल के रंगो मे रंग कर आज जीवन का पुरा लूफ्त उठा लेना चाहते थे,वहां का मौशम भी खुशगवार और शर्द सी हो गई थी!शौरभ को भी खुब मजा आ रहा था,आज का अनुभव उसके लिये किसी बादसाहत से कम न था!वे सभी रात एग्यारह बजे तक झुमते रहे!जब तक कि पव बंद ना हो गया,शौरभ का बस चलता तो वो पुरी रात झुमता रहता!
सर!
कांबले ने आवाज दी और उसके सहेजे हुए प्रतिबिंब छिन्न भिन्न हो गये,उसने कार के बाहर देखा तो उसके बंगले का पोर्च था!उसने भारी मन से कार का दरबाजा खोला और थके कदमो से विला के अंदर बढ गया!उसके चलने के अंदाज से लग रहा था कि वो महीनो से बिमार हो,लेकिन जब वो डायनिंग हाँल मे पहुंचा तो चौंक उठा!
चौंकना भी तो लाजिमी था,सामने शोफे पर वैभव सांडिल्य बैठे हुये अखबार पढने मे तल्लीन थे!उसके कदमो की आहट ने उनकी तंद्रा भंग की!उन्होने नजर उठाकर शौरभ को देखा और सपाट लहजे मे बोले!आजा,करीब आजा,मै जानता हूं कि तु थक गया हैं,काफी थक गया हैं,अब तुझे प्यार और संबल की जरूरत हैं!
सुनना था कि बस लगभग शौरभ दौर हीं तो परा,वो दौर कर उनके कदमो के पास बैठ गया और उनके गोद मे सिर रख कर सिसक परा!वैभव ने ममता के अहसासो से उसके बालो मे जुंबीस कर रहे थे और गंभीर होकर बोल रहे थे!बेटा मै ने तुम्हे पहले हीं कहा था कि हौशलो की उँची उङान जरूर उङो लेकिन आसमान चाहे कोई भी हो,अपनापन जरूरी हैं!
वैभव बोले जा रहे थे और शौरभ सुनता जा रहा था एवं आंसुओ को बहाये जा रहा था,आज उसे लगने लगा था कि जीवन को सुखमय और शांत बनाने के लिये अनुभव की जरूरत होती है, उसके लिये शहर का छोटा या बरा होना नगन्य हैं!पर अनुभव आये कहां से,सायद उम्र का पराव हीं हैं जो आदमी को आदमी बनाता हैं जीने के लिए!आज उसे पश्चाताप हो रहा था अपने किए पर!उसने अपने मम्मी पापा के भावनाओं को बहुत रौंदा था और सायद यही कारण भी था कि उसकी सारी ग्लानी उसके आँखो से वह जाना चाहती थी!
समय बहुत बीत गया ऐसे हीं,शाम होने लगी थी,वैभव ने शौरभ को कंधे से पकर कर उठाया और शोफे पर बीठाया फिर किचन मे चले गये,और जब लौटे तो उनके हाथ मे प्लेट था,जिसमे गाजर का हलवा था,वो मुस्कुराये और उसके बगल मे बैठ कर हाथो से उसे खीलाने लगे !
मेरा प्यारा बेटा,देख तो तुने कैसी हालत बना ली हैं,तेरी माँ बहुत परेशान रहती हैं,उसे मालुम हैं कि तुझे गाजर का हलवा बहुत पसंद हैं,इसीलिए उसने खुद हीं अपने हाथो से बना कर भेजा हैं!
जी पापा!शौरभ रूंधे हुए आवाज मे सिर्फ इतना हीं बोल सका!
जबकि वैभव उसे खीलाते हुए बरे इम्तिनान से बोले,चिंता नही करते बेटा!बीती बातो को भूल जा!अब मै आ गया हूं ना,देखना सभी ठीक कर दुंगा!वैभव बोलते जा रहे थे,परन्तु उसने कोई जबाब नहीं दिया और थोरा सा खाने के बाद अपने बेडरूम मे चला गया!
कांबले ने बंगले की सारी लाईटे जला दी!शाम का वक्त ढलने लगा था,इसीलिये वैभव बंगले से बाहर घुमने के लिये निकल गए!
शौरभ जब अपने रूम मे पहुंचा,तो उसे लगा कि शौम्या उसके करीब हीं हो,उसे कमरे से भीनी भीनी खुश्वु आ रही थी,फिर तो वेचैनी मे उसने पुरा रूम छान मारा,और जब पुरा का पुरा रूम खाली मिला,फिर उसने दिल को समझाया कि यह उसका वहम हैं,वो थका थका सा निढाल होकर बेड पर गिरा,सांसे थी कि बेतरतीब चलने लगी थी,नफरत से उसकी सांस धौंकनी की तरह चलने लगी,वो खुद को नियंत्रीत करने की कोशिश करने लगा,जिसके कारण उसको हृदय मे दर्द की भी अनुभूति हुई!
फिर वो ख्यालो के अथाह समंदर मे खोने लगा!वो उस दिन के बाद शौम्या के करीब खींचने लगा था,उसे लगने लगा था कि अगर उसे शौम्या नही मिली तो उसकी जिन्दगी विरान हो जायेगी! ऐसा नहीं था कि आग सिर्फ उसकी तरफ हीं थी,आग शौम्या के हृदय मे भी लगी थी,प्रेम का रंग हीं ऐसा होता हैं जनाब कि जिसपर भी चढे उसे अपने रंगो मे रंग लेता हैं,यह वो सांचा हैं,जो प्रेमी जोङे को अपने सांचे मे ढालने मे कोई कसर नहीं छोरता!
तभी तो दोनो हीं एक दुसरे से मिलने को व्यग्र रहने लगे थे,उनलोगो के बीच मुलाकात के दौर बढते गये और वे एक दुसरे के करीब आते गए!इजहार तो कब की हो चुकी थी,इकरार भी हो गया था और करार भी खो गया था,बांकी बचा था तो सिर्फ पार होना, एक दुसरे के करीब आना और एक दुसरे के सांसो मे उतर जाना! सायद दोनो हीं इसके लिये व्यग्र भी थे!
सायद दोनो तरफ की बेचैनी हीं थी कि संडे को शौरभ ने कांबले की छुट्टी कर दी,कांबले से उसे भय सा लगता था कि कहीं वो उसकी हरकतो को उसके घर तक ना पहुंचा दे!कांबले के जाने के बाद उसने शौम्या को काँल किया कि आज वो बंगले पर आ जाये,वो अकेला हैं,आज दोनो मिल कर मस्ती करेंगे,एंज्वाय करेंगे!शौम्या ने हामी भङी और शाम को आने के लिए बोली!
थोरी देर तो उसने जैसे तैसे समय को बीताया,लेकिन अब उसे समय की सुई धीमी सी चलती प्रतीत होती थी,आज उसके बस मे होता,तो वो समय की सुई को खुद हीं आगे कर देता,लेकिन ऐसा क्योंकि मुमकीन नहीं था,इसीलिये वो बेचैन होने लगा!उसने बेडरूम मे भी जो उसे अच्छा लगा,दब्दीली कर डाली,फिर भी काफी समय बचा था!यह सही फैक्ट हैं कि जब आप किसी के इन्तजार मे हों तो समय का परिधी काफी बरा हो जाता हैं!
खैर उसने उलझनो मे उलझा हुआ समय की दरिया को पार करने लगा,तभी बंगले के बाहर गाङी की हौर्ण बजी,उसने नजर उठा कर देखा,तो घङी शाम के पांच बजने की उद्धघोषना कर रही थी,वो खुशी से झुम उठा,उसके पुरे शरीर मे हर्ष की तरंग दौर गई!वो समझ गया कि उसके दिल की मलीका आ गई है,वो लगभग दौङ हीं परा,उसने बरे ही उतवले पन से शौम्या का हाथ पकर कर ड्राईंग हाँल मे ले आया!
बरी हीं नजाकत से शोफे पर बीठा कर पुछा!आपके खीदमत मे क्या पेस किया जाये मोहतरमा!
दो ग्लास,व्हीश्की की बोतल,शोडा और साथ मे चखना!बोलने के साथ हीं शौम्या खीलखीला कर हंस परी!
तेरे इसी अदा पर तो हम कुर्वान हैं जालीम!जबाब मे शौरभ मस्ती मे बोला!
फिर तो वो फ्रीज से सारी चीज उठा लाया और सामने टेवल पर सजा दिया!फिर तो शौम्या पैग बनाये जा रही थी,दोनो शीप करते जा रहे थे,मस्ती अपने चरम पर छाता जा रहा था!बाहर शाम ढल चुकी थी और अँधेरा घीर चुका था,शौरभ ने लङखङाते कदमो से उठ कर लाईट जलाई फिर अपनी जगह पर आ बैठा!फिर पीने का दौर,और मदहोशी मे बोला!
अमा यार शौम्या तुम्हारे ओठ गुलाब के सुर्ख पंखुरी से हैं!
तो क्या?शौम्या शोखी मे बोली!
बस मन करता हैं इसके पराग को चुम लु,शौरभ बहकता हुआ बोला!
तो रोका किसने हैं,चुम लो,शौम्या वहकते हुये बोली फिर खीलखीला कर हंस परी!
इजाजत मिलने भर की देर थी,शौरभ उठा और उसके करीब बैठ गया,उसके चेहरे को हाथो से थामा और अपने ओठो को उसके ओठो पर टीका दिये!फिर तो वहां पर हलचल बढ गई,दोनो हीं अपने दिल की जगी प्यास को मीटा लेना चाहते थे,लेकिन यह एक ऐसी प्यास हैं कि जितनी भी बुझाने की कोशिश करो बढती हीं जाती हैं,यह इश्क का बुखार हैं साहब,तरप और भी बढाती हैं!
दोनो के हरकतो ने हाँल का तापमान बढा दिया था,जब शौरभ से नही रहा गया,तो उठा और शौम्या को गोद मे उठा कर बेडरूम की ओर बढ गया!उस रात बंगले मे जज्वात का तुफान गुजरता रहा!सुवह शौम्या काँफी का मग लेकर आ गई,शौरभ सोया हीं हुआ था,उसने शौरभ को उठाया,फिर दोनो काँफी सीप करने लगे!
और रात की बातें याद करके शर्माने लगे!
फिर तो जिस्म मिलते हीं उनके चाहत का पैमाना भी बढने लगा!मिलने का सिलसिला बढ गया!शौरभ मे काफी तब्दीली आ गई थी,शौम्या जब भी उसके आँखो से ओझल होती उसके दिल की वेचैनी बढ जाती!वो लाख कोशिश करता दिल को समझाने की,लेकिन दिल विद्रोह करने पर उतर जाता,विद्रोह इतना बढ जाता कि उसे खुद को संभालना मुश्किल हो जाता!जब उससे परेशानी सही नहीं गई,तो उसने शौम्या को काँफी सौप पर बुलाया,
जब वे दोनो मिले,तो उसने अपने दिल की बात उसे बता दी!
मामला तो काफी गंभीर है,शौम्या बोली!
हां जानु,समझ नही आता कि क्या करें!
मै भी तो इसी समस्या से दो चार हो रही हूं!शौम्या बोली!
यही तो मै कहना चाहता हूं कि अब तुमसे अलग होकर नहीं रहा जाता!शौरभ भावुक हो चुका था!
वो बात तो ठीक हैं हनी,पर मै अभी शादी के बंधन मे बंधना नही चाहती!
वो तो मै भी नहीं चाहता!शौरभ ने उसके सुर मे सुर मिलाए!
फिर वहां शांति छा गई,उन दोनो के चेहरे पर सोंचने के भाव फैले हुये थे!सुवह का वक्त होने के कारण काँफी सौप मे भीङ ना के बराबर थी,इसीलिय वहां चीर शांति फैली हुई थी!आखीर कार शौम्या चहक कर बोली!हनी हमारे पास इक रास्ता हैं!
वो क्या,शौरभ चौंक बोला!
हम लीव इन रिलेसन शीप मे रह सकते हैं!शौम्या चहक कर बोली!
खयाल तो अच्छा हैं!शौरभ ने उसके हां मे हां मिलाई!
फिर दोनो मौन होकर खयालो मे खो गये,उन दोनो ने लीव इन रिलेसनशीप मे रहने का फैशला तो कर लिया था,लेकिन उसके सामने सबसे बरी समस्या कांबले को मैनेज करने का था!वो नहीं चाहता था कि उसके करतुतो की भनक उसके घर तक पहुंचे! दुसरी बात उसके हरकतो से थी,जिसके कारण उसके कारोबार पर गलत अशर हो रहा था!तंग आकर कांबले ने उसे टोक भी दिया था कि वो कारोबार पर ध्यान दे!
काफी कोशिशो के बाद वो कांबले को राजी कर पाया,कांबले ने शर्त रखी थी कि वो एक शाल के बाद शादी कर लेगा, कांबले ने सिर्फ इतना बोला था कि साहव ऐसे रिश्ते टीकते नहीं है, ब्याह हीं वो पवीत्र संस्था है,जिसमे बंध कर इंसान सुकुन की जिन्दगी गुजारता हैं,पर उसने कांबले की बातो को अनसुना कर दिया था!फिर तो शौम्या उसके पास ही बंगले पर आ गई रहने के लिए!
सुरूआत के दिनो मे तो उन दोनो मे काफी छनने लगी थी,काफी खुश थे वे दोनो,लेकिन एक दिन वो रात के करीब आठ बजे जब आँफिस से लौटा तो शौम्या को नहीं पाकर थोरा विचलीत हुआ!उसने जब माली से पुछा,तो माली ने बताया कि शौम्या बेबी अभी तक नहीं लौटी हैं!वो परेशान हो उठा,उसने शौम्या के मोबाईल पर काँल किया तो श्वीच आँफ!अब उसकी वेचैनी बढती जा रही थी,वो लाख कोशिश कर रहा था खुद को संभालने का,लेकिन गुस्से की अधीकता से उसकी सांसे तेज हो गई थी!
वो डायनिंग हाँल मे हीं चहलकदमी करने लगा,बीच बीच मे बार-बार उसकी नजर वाँल घङी पर चली जाती थी,धीरे धीरे समय आगे भागता रहा,उसी रफ्तार मे उसकी वेचैनी भी बढती रही!घङी ने रात के एग्यारह बजने की उद्दघोषना की और बाहर गाङी के रूकने की आवाज आई!
वो लगभग दौर हीं परा,लेकिन वो प्रेम की अधीकता से नहीं दौरा था, आज उसके अंदर उत्तेजना थी,गुस्से की अधीकता से उसके चेहरे बार बार बन बिगर रहे थे,वो ड्राईंग हाँल से निकलने हीं वाला था कि शौम्या ने अंदर कदम रखा,उसके कदम लङखङा रहे थे!जब उसने शौरभ की वेचैनी देखी तो मुस्कुरा कर बोली!
क्या हुआ हनी?
मुझे क्या हुआ उसकी छोरो,तुम अभी तक कहां थी!शौरभ खुद को नियंत्रीत करने की कोशिश करते हुये बोला!
दोस्तो के साथ पार्टी कर रही थी,शौम्या परिस्थिति को टालने के लिये कहा,और शौरभ उस पर बरस परा,तुमने ऐसी कौन सी पार्टी अटैंड करनी धी कि मुझे बताया भी नहीं,बताने की तो बात छोङो,तुम ने तो मोबाईल को भी आँफ कर दी!
तो क्या मै तुम्हारा जरखरीद गुलाम हूं,मै तुम से बंधी हुई नही हूं,मेरी मर्जी जो आये वो करू!शौम्या भी तैश मे बोली!
फिर तो दोनो मे ठन गया,शौरभ उसे भद्दी भद्दी गालियां देने लगा,तो शौम्या भी कहां पिछे रहने बाली थी!फिर तो उनका वाक्युद्ध मारपीट मे तब्दील हो गया!शोर सुनकर कांबले दौर कर आया,और बीच बचाब किया!उस रात दोनो एक दुसरे से अलग होकर सोये!फिर तो उन दोनो मे आये दिन टकराव होने लगा!दुरियां बढने लगी,जिस्मानी संबन्ध नही होने के कारण शौरभ चीङचीङा स्वभाव का होने लगा,उसके परिनाम स्वरूप उसका व्यपार भी प्रभावीत होने लगा!
एक दिन तो हद हीं हो गई,शौम्या देर शाम जब लौटी, बंगले मे कोई नही था शौरभ के अलावा,वो नशे मे चुर था!उसने पहले तो खुब शौम्या से लडाई की,उसके बाद जबरदस्ती पर उतर आया! उसने शौम्या को जबरी उठा कर बेडरूम मे ले गया और उसके साथ बलजबरी संबन्ध बनाने लगा!शौम्या चिखती रही,चिल्लाती रही, लेकिन उस पर कोई प्रभाव नही परा,और फिर वो वेसुध होकर लूढक गया!उसके बाद तो शौम्या रोती रही,चिखती रही,चिल्लाती रही और देर रात अपना सामान लेकर बंगले से निकल गई!
सुबह देर से शौरभ की आँख खुली,सुर्य देव आसमान पर चढ आये थे,रात की खुमारी उसकी उतरी नहीं थी!जब उसने खुद को थोरी देर तक सहेजता रहा,तब जा कर बीती रात की सारी हरकत उसे याद आ गई और उसका हृदय ग्लानी से भङ गया!उसको लगने लगा कि उसने गलती की हैं और उसे शौम्या से मांफी मांग लेना चाहिये!लेकिन जब उसने माफी मांगने के लिये शौम्या को ढुंढा,तो वो नदारत थी!उसने पुरा बंगला छान मारा,लेकिन शौम्या उसे कहीं नही मिली,अब उसका दिल किसी आशंका से धडकने लगा!
वो अपना सिर पकर कर शोफे पर बैठ गया,वेचैनी बढने लगी थी,सिर चकरा रहा था,तभी वहां कांबले आया,वो आँफिस के लिय तैयार था,उसने जब पुछा कि आँफिस चलना हैं,तो शौरभ ने मना कर दिया!कांबले समझ चुका था कि उसका मुड अपसेट हैं!वो निकल गया!सुबह के नौ बज चुके थे,और सुरज की रौशनी ने चारो तरफ अपने प्रकाश का संम्राज्य स्थापीत कर लिया था,चारो तरफ हीं सबकुछ खीला खीला और कोलाहल से भङा था!अँधेरा था तो उसके दिल मे!वो खुद मे हीं उलझ गया था,समय बीतता जा रहा था और वो इसी हालात मे बैठा रहा!
दिन के एक बजे अचानक से हीं उसका बंगला पुलिस छावनी बन गया!उसे तो समझ हीं नही आया कि क्या हो रहा हैं!जब उसे अरेस्ट करके पुलिस थाने लाया गया,तो उसे पता चला कि उसके उपर शौम्या ने इण्डियन पीनल कोड के तहत केस दायर किया हैं,ओर वो फिलहाल पुलिस के चंगुल मे फँस चुका हैं!उसने पुलिस इन्सपेक्टर सदाशीव भाले को काफी सफाई दी कि मै बेकसूर हूं,हम दोनो मे आपसी थोरी सी लङाई के सीवा और कुछ भी नहीं हैं,वो लाख कहता रह गया,लेकिन वहां उसका कोई सुनने बाला था!उसे लाँकअप मे डाल दिया गया!
हाईप्रोफाईल परिवार से विलौंग करने के कारण थोरे हीं मिनटो मे पुरे शहर मे यह बात आग की तरह फैल गई!चारो तरफ उसके बारे मे तरह तरह की बातें की जाने लगी!शाम होते हीं कांबले और उसका पर्सनल एडवाईजर दयाल मोहंतो ने वहां प्रवेश किया! कांबले ने साईन का इशारा करके उसे भरोसा दिलाया कि सब ठीक हैं, वो चिंता ना करे!
पुलिस की सभी कार्यवाईयों के बाद उसकी अग्रीम जमानत हो गई,इसके बाद तो कोर्ट के चक्कर और जलालत का सिलसिला सा सुरू हो गया,जिसे दिनो दिन उसके लिये दुष्कर सा होता गया!वो अब तो समझने लगा था कि उसके लिए खुशियों का सवेरा नहीं है!
बेटे शौरभ,लगता हैं निंद नही आ रही हैं बेटा!तभी कमरे मे वैभव ने प्रवेस करते हुये बोला!
आवाज सुन कर उसके खयालो के माला बिखर गये,वो पहले तो दिवाल घङी की ओर देखा,रात के नौ बज रहे थे,फिर उसने अपने को संयमित करता हुआ बोला!ऐसी बात नहीं हैं पिताजी,वो तो मै बस!
मै समझता हूं बेटा,तुम्हारे हालात को,पर तुम चिंता मत करो,मै आ गया हूं ना,अब सब ठीक हो जाएगा!वैभव उसकी बातो को काटते हुये बोले,फिर उसको चादर उढाने के बाद कमरे से निकल गये!
शौरभ काफी कोशिश करता रहा कि उसे निंद आ जाये,पर निंद थी कि उससे रूठ गई थी और उसके आँखो से कोसो दुर थी!समय यू ही बीतता रहा ओर ना जाने कब उसकी आँख लग गई,सपने मे उसने देखा कि वो बादलो मे उङा जा रहा है,आज उसका मन प्रफुलीत है,आज मौसम भी तो काफी सुहाना और अहसासो से भिगा हुआ है,तभी उससे कोइ कठोर बस्तु टकराती हैं,वो चौॆकता है, देखता है तो वो शौम्या है,खून से लथपथ,वो खुद को देखता है,तो वो भी खून से भिगता जा रहा है,वो भय के मारे चीखता हैं,पर उसकी आवाज नही निकल रही!
तभी शौरभ की निंद टुट गई,वो भय से व्याकुल हो गया,मुख से सहसा निकला,हे राम!आज तक वो कभी भी इतना भयभीत नही हुआ था!वो बेड से उतरा और एक हीं सास मे जग का पुरा पानी पी गया,पर उसे चैन नहीं परा,वो समझ नहीं पा रहा था कि इस सपने का क्या मतलब हैं!फिर से उसने कोशिश की और बेड पर लेट गया,जल्द हीं निंद की देवी ने उसे अपने आगोश मे ले लिया!
सुबह शांडिल्य विला,वैभव अहाते मे चेयर पर बैठे अखबार के पन्नो को यू ही उलट पलट रहे थे!उनके चेहरे पर चीरशांति छाई हुई थी,तभी कांबले भी आ गया और उनके सामने बैठ गया!सुर्य देव धीरे धीरे अपने किरणो के पंख को फैला रहे थे!तभी शौरभ भी उठकर बाहर आया एवं उन लोगो को बैठा देख कर उनके पास बैठ गया,तभी माली काका उनलोगो को काँफी का मग थमा गये!
शुभ प्रभात बेटा!वैभव ने शौरभ को संबोधीत किया!
आपको भी गुडमार्णिंग डैड!जबाब मे शौरभ बोला!
बेटा मै आपको आज कुछ खाश मेहमान से मिलवाने बाले हैं,वे लोग बस आते हीं होंगे!वैभव मुस्कुरा कर बोले!
मै समझा नहीं पिताजी!
आप आने तो दिजिए उनलोगो को,सब समझ मे आ जाएगा!वैभव अपनी हीं टोन मे बोले!उनकी बोली सुनकर कांबले के चेहरे पर भी मुस्कान छा गई!जबकि वो असमंजस की स्थिति मे उन दोनो के चेहरे को देखता रहा!
तभी गेट से काले रंग की इनोवा ने प्रवेस किया!तीनो की हीं नजर गेट पर टीक गई!इनोवा बढती हुई आकर पार्किंग मे आकर लगी और उसमे से वृद्ध दंपती उतरे!उनदोनो के चेहरे से हीं लग रहा था कि वे बरे घर के हैं!
वे लोग जब करीब आए,तो वैभव ने उठकर उनका स्वागत किया,कांबले भी उठा और अंदर जा कर माली काका को निर्देश देने लगा!वैभव ने उन लोगो को सामने बाली शोफे पर बिठाया और फिर खुद बैठे,उसके बाद उन्होने इशारा किया शौरभ को कि वो उनको प्रणाम करें!शौरभ भौचक्का सा उनलोगो को देखता रहा और पिता के कहने पर उठ कर प्रणाम किया,फिर अपनी जगह पर आकर बैठ गया!
तब वैभव ने उनलोगो का परिचय शौरभ को करबाया,उनके आवाज मे गर्मजोशी थी,बेटा ये हैं मिस्टर प्रभात शुक्ला,शौम्या के पिता और शुक्ला इनङस्ट्रीज के मालीक और ये हैं उनकी माता भावना शुक्ला,ये लोग तुमसे हीं मिलने आए हैं!वैभव चब बोलकर रूके तब तक माली काका काँफी के प्याले और नास्ता का प्लेट लाकर सामने टेवल पर सजा दिया था!
बेटे शौरभ,हम लोग तुमसे हीं मिलने आए हैं,प्रभात शुक्ला गंभीर होकर बोले!
जी कहिए,शौरभ ने कहा!
बेटा,हमलोग समझते हैं कि जो हुआ,वो बुरा हुआ और हम लोग चाहते हैं कि उसका डैमेज कंट्रोल हो!शुक्ला जी बोलते वक्त और भी गंभीर हो गये!
जी!धीरे से शौरभ ने कहा!
हां बेटा,हम तुम्हारी बात समझते हैं,हमने तुम्हारे पापा से बात कर ली हैं,बस आप लोगो की रजामंदी जरूरी हैं!
जी मै समझा नहीं!शौरभ चौंक कर बोला!
बेटा इसमे ना समझने बाली कोई बात नही हैं!हम लोग चाहते हैं कि तुम दोनो आपस मे सुलह कर लो!फिर हम लोग तुम दोनो की शादी धूमधाम से करना चाहते हैं!प्रभात शुक्ला गंभीर होकर बोले!
लेकिन शौम्या,वो इसके लिए राजी होगी!शौरभ ने आशंका जाहीर की!
उसकी चिंता ना करो बेटा,उसे हम लोग मना लेंगे!प्रभात शुक्ला पुर्ववत बोले!जबाब मे शौरभ ने कहा कि जैसा आप लोग ठीक समझे ,इसके बाद उनलोगो मे बात होती रही!शौरभ मौन होकर उनकी बात सुनता रहा!
दो घंटे की लंबी बात करने के बाद शुक्ला दंपती ने वहां से रूख्सत किया!वैभव उनको उनकी गाङी तक छोरने गये!उनको जाते देखकर शौरभ अपने रूम की ओर बढ गया,और थोरी देर बाद तैयार होकर निकला!आज उसका मन थोरा सा हल्का था,और वो इसपल को वो कैश कर लेना चाहता था!उसने गाडी श्टार्ट की और विला के गेट से निकाल दी!
आज वो अपने आप को कुछ हल्का सा महसूस कर रहा था!इसीलिए वो गाडी को शडक पर यू ही इधर से उधर भगाता रहा!दिन के नौ बज गये थे,और इसके साथ हीं शडक गाडियों के अवर जवर से गुलजार हो रही थी!पर इस भीड से दुर कहीं उसका दिल सफर कर रहा था!आज उसे महसूस हो रहा था कि इंसान जब गलतियां करता हैं,तो उसे आभास हो रहा था कि उसने जो गलतियां की,काश कि वो पहले संभल जाता!
आज उसे जिस्म की गर्माहट और नजदीकी की खाश जरूरत महसूस हो रही थी!उसने अपना मोबाईल उठाया और अपने नजदीकी दोस्त प्रशांत भार्गव को काँल लगाया और उससे इधर उधर की बात करने के बाद अपनी जरूरत बतलाया!सामने से प्रशांत ने कहकहे लगाये फिर बोला!यार इतना टेंशन नक्को लेने का!तुम अपने फार्महाउस पर पहुंच,मै अभी तुम्हारे लिये टंच माल भेजता हूं!
सुनने के बाद शौरभ का दिल थोरा सा शांत हुआ,वो जानता था कि इंसान अपनी जरूरतो को एक हद तक हीं रोक सकता हैं!उसे अपनी इच्छाओं की पुर्ति के लिए कभी ना कभी अपने आदर्शो से समझौता तो करना हीं परता है!फिर तो जब वो जर्मनी मे पढाई कर रहा था,उस दरमिया उसने ना जाने कितनी हीं लडकियों से संबन्ध बनाये थे!वो इसकदर हरकत करने लगा था कि उसके कारनामो से न्युज पेपर भरने लगे थे!
ऐसा नहीं था कि उसे अपने परिवार की,अपने संस्कार की फिक्र नही थी,पर वो अपने आदतो से मजबुर था,उसकी आदत सी हो गई थी, जिस्म और वियर के मग की,जब तक इन दोनो चीजो की वो पुर्ति नही कर लेता था,उसे चैन हीं नही मिलती थी!वो तो भारत मे वापस
लौटा और उसकी इच्छाओं पर लगाम लगी!
वो सोंचो के जाले उलझा हुआ था कि कभी कभी ङ्रायविंग मे उसका हाथ फिसल जाता था और गाडी लहडा उठती थी,जिसे वो मुश्किल से संभालता था!आज उसके मन का दैत्य जाग उठा था,जिसके कारण उसे जिस्म की जरूरत सिद्धत से महसूस हो रही थी!और सोंचो मे खोया हुआ वो इस तरह रहा कि उसे पता हीं नही चला कि कब उसका फार्महाउस आ गया,उसे पता हीं नही चला, एकाएक जब उसकी नजर फार्म हाउस पर परी,तो उसने तेजी से ब्रेक लगाए,ब्रेक लगने के कारण टायर की आवाज से इलाका गूंज उठा!फिर शौरभ ने गाडी बैक करके फार्महाउस के गेट के अंदर किया, गाडी पार्क की और हाँल के अंदर की तरफ बढ गया!
उसने आते हीं देख लिया था कि पार्किंग मे दुसरी कार पार्क की गई थी,इसीलिए उसके दिल को सुकुन था कि उसके आरामेगाह की बस्तु वहां पहुंच गई हैं!इस दरमियां उसने घडी पर नजर ङाली,दिन के बारह बज चुके थे,ऐसे तो वो दिन के उजाले मे ऐसी हरकतो का ख्वाहिशमंद नही था,पर उसकी जिस्मानी भूख इस तरह बढ गई थी कि क्या दिन और क्या रात,बस उसको जिस्म हांसील करना था!
वो जब हाँल मे पहुंचा,तो भौचक्का रह गया,बास्तब मे वो हुस्न की मलिका थी!हाँल के बीचोबीच परे शोफे पर बैठी मानो वो उसीका इंतजार कर रही थी!शौरभ ने वहां पहुंचते हीं उससे सेक हैंङ किया,दोनो मे औपचारीक बातें हुई,बातों हीं बातों मे उसने बताया कि उसका नाम मोनीका धुलर हैं,और वो यहां उसके हीं ख्वाहिशो को पुरा करने के लिए आई हैं!सुन कर शौरभ के दिल को संतोष पहुंचा!उसने मोनीका से पुछा,आप क्या लेंगी,शोफ्ट या हार्ङ ङ्रींक्स?
जबाब मे मोनीका मुस्कुराई और बोली,आप जो पीला दे,बस सुनना था कि शौरभ व्हीश्की की दो बोतल,खाने को नमकीन और ग्लास उठा लाया और टेवल पर सजा कर सामने बैठ गया,फिर मुस्कुराने लगा!उसका मतलब मानो मोनीका समझ गई,वो पैग तैयार करने लगी!फिर तो पीने का दौर सुरु हुआ,वो बढता हीं गया!धीरे धीरे उन दोनो पर नशा छाने लगा था और नशे का हीं अशर था कि शौरभ बहकने लगा था!वो उठा और मोनीका के सुर्ख लवो को अपने होठो के नीचे दबा लिए,पर उसको मानो झटका लगा हो,उसे लगा कि मोनीका के होठ बेमजा हैं,उसने अपने होठो से मोनीका के शरीर पर चुंबनो की बौझार लगा दी,लेकिन उत्तेजीत होने की जगह उसका नशा हीं उतर गया!
वो अपनी जगह वापस आकर बैठ गया और तेजी से पैग बनाकर गले से उतारने लगा!उसकी हरकतो से हत् प्रभ हुई मोनीका उसे आश्चर्य चकीत देखती रही!थोरे पल के लिए वहां शर्द खामोशी छा गई,जिसे शौरभ ने तोरा,वो धीरे से बोला,मोनीका अब तुम जा सकती हो,मेरा मन नही हैं!
लेकिन क्यों?मोनीका बिस्मय से बोली!
बस यू ही मेरा मन नही हैं,बोलने के बाद शौरभ ने नोटो की बंङल निकाली और मोनीका की ओर बढा कर बोला,यह लो अपना मेहनताना,अब प्लीज मुझे अकेला छोर दो!
सुन कर मोनीका एक पल को झुंझलाई,फिर नोटो का बंङल उठा कर बडबडाती हुई निकल गई!थोरे पल तक तो शौरभ अपनी हरकतो पर हैरान था,फिर उदासी के गर्त मे समाता चला गया, उसे समझ हीं नही आ रहा था कि उसे क्या हो गया हैं!
निकिता अपार्टमेंट,इसवक्त वहां काफी तनाव फैला हुआ था,कारण था शौम्या के माता पिता,जो उसके सामने बैठे हुये थे, जबकि शौम्या बेङ पर लेटी थी,उसके आँखो से अभी भी आँसु बह रहे थे,जिससे लगता था कि कुछ पहले तक वो जी भर के रोई है, समय दिन के एक बजा था!
तो बेटा,क्या इरादा हैं तुम्हारा,शुक्ला जी गंभीर होकर बोले!
पापा इरादा कैसा,आप तो जानते हीं हो कि शौरभ कमीना इंसान हैं,मै उसके बारे मे सोंच भी नही सकती!शौम्या अपने गुस्से को नियंत्रीत करते हुये बोली!इस वक्त उसकी आवाज गुस्से और नफरत की अधीकता से तेज हो गई थी!
लेकिन बेटा,तुम समझने की कोशिश नही कर रही हो,इस बार उसकी माँ बोली!
आप लोग कहना क्या चाहते हैं,मै तो बस इतना समझती हूं कि वो सख्स सिर्फ नफरत के लायक हैं!शौम्या जहर बुझे स्वर मे बोली!
लेकिन बेटा मेरा मानना हैं कि ताली एक हाथ से कभी नही बजती,मै मानता हूं कि शौरभ की अकेले की गलती नही हो सकती हैं,जरूर तुमने भी गलती की होंगी!शुक्ला साहव गंभीर होकर बोले!
आपका मतलब हैं कि मेरी भी गलती हैं!बिफड कर बोली शौम्या!
हां बेटा,मै यह नही कहता कि शौरभ ने गलती नहीं की है,उसने गलती तो जरूर की हैं,पर उस गलती मे तुम भी भागीदार हो!बोलते वक्त शुक्ला साहव की आवाज तेज हो गई थी!
आप आखीर चाहते क्या हैं?शौम्या उठ कर बैठ गई और गुस्से मे बोली!
हम लोग तो बस इतना चाहते हैं कि बेटा शौरभ अच्छे परिवार का लडका हैं!तूं एक बार कोशिश तो करके देख लो समझौते का!अगर बात बनती हैं,तो हम लोग गंगा नहायें समझो,बोलते बोलते शुक्ला जी भावुक हो गए!
नहीं पापा,ऐसा कभी भी नहीं हो सकता,अब मै कभी उस कमीने से समझौता नहीं कर सकती!पापा यह दिल हैं मेरा,खिलौना नहीं,मै कभी भी उसे माफ नही करूंगी,मै उसे सजा दिलवा कर रहुंगी!शौम्या गुस्से की अधीकता से भभकते हुये बोली!
नही बेटा ऐसा नहीं बोलते,प्लीज एक बार तु समझौता की कोशिश तो कर,मेरी हीं खातीर सही,प्लीज बेटा,हालात को समझ!इसबार उसकी माँ लगभग गीडगीडा हीं परी!
ठीक हैं माँ-पापा,आप लोग कहते हैं,तो मै तैयार हूं!शौम्या ने हथियार ङालते हुये कहा!
उसका कहना था कि शुक्ला दंपती मे खुशी की लहड छा गई,उसके फैशले से उस अपार्टमेंट की दिवार भी मानो खीलखीला उठी!शुक्ला दंपती उठे और उन्होने वैभव शांङिल्य को काँल लगाई और उनको सिलसिलेबार सारी बात बताई,फिर तो उधर से हर्ष से ङुबा हुआ स्वर उभरा!तो फिर देर किस बात की,हम लोग कल सुबह हीं मिलते हैं,आप शौम्या को लेकर आ जाओ!फोन ङिस्कनेक्ट होने के बाद शुक्ला दंपती ने राहत की सांस ली!
दुसरे दिन सुबह से हीं शांडिल्य विला मे गहमा गहमी थी,खुद वैभव शांडिल्य सारी तैयारियों को देख रहे थे!उन्होने खाश इन्ट्रक्सन दिया था कांबले को!तैयारियां तो ऐसे हो रही थी,मानो कोई खाश मेहमान आ रहे हों,तभी चहल पहल सुन कर शौरभ की आँख खुली,निंद खुलते हीं सबसे पहले उसने घडी की ओर देखा,सुबह के आठ बजे थे,समय बहुत हो गया था,सुर्य की किरणे खिडकी से छन कर आ रही थी,वातावरण के स्पंदन को महसूस करके वो उठकर बैठ गया,तभी उसका सिर चकराने लगा और उसे कल की बातें याद आ गई,वो तो अपने फार्महाउस पर था,हां उसने गम गलत करने के लिए खुब शराब पी थी,उसके बाद उसे होश नही रहा,वो समझ नहीं पा रहा था कि वो फिर वापस कैसे अपने बंगले पर आया!
वो अपने विचारो के झंझावात मे उलझा हुआ था, तभी वहां वैभव ने कदम रखा और उसे जगा हुआ देख कर मुस्कुरा परे और उसे जल्द तैयार होने के लिए कहा!शौरभ की हिम्मत नही हो रही थी,उसके दिलो दिमाग पर कल का नशा हैंगओवर कर रहा था, फिर भी वो उठा और वैभव के चरणो मे झुक गया!पिता तो पिता होता हैं,वैभव ने उसे उठाकर गले से लगा लिया और प्यार से उसके पीठ पर थपकी करने लगे!वो लाख बुरा था लेकिन माता पिता का सम्मान करता था और यही बात थी कि वैभव को लगता था कि उनका लाङला अनमोल मोती हैं और एक दिन जरूर इसका रंग निखडेगा!
खैर जो भी हो,वैभव ने उसे जल्द तैयार होकर बाहर आने को कहा,शौरभ उनसे अलग होकर बाथरूम मे चला गया और वैभव बाहर हाँल की ओर बढ गए!समय क्रमश: पंख लगाए बढ रहा था,और उसी गति से वैभव के दिलो की धडकन बढती जा रही थी!पिता होने के नाते उन्हे भय था कि ना जाने आगे क्या हो!तय समय पर गेट से इनोवा कार ने प्रवेश किया,गाडी ने गेट से प्रवेश किया और वैभव दौर परे अगवानी के लिए!गाडी पोर्च मे लगी,उसमे से शुक्ला दंपती उतरे,साथ मे शौम्या थी,शोम्या को देखकर वैभव की बाँछे खील गई,जबकि शौम्या ने झुक कर उसके पाँव छुये!
फिर वे लोग अहाते मे लगी आराम चेयर पर बैठ गए,तब तक शौरभ भी तैयार होकर आ गया,उसने झुक कर शुक्ला दंपती के पांव छुये,फिर शौम्य और शौरभ की आँखे मिली,फिर तो मानो दोनो तरफ से नफरत की फुलझरी जली हो,लेकिन दोनो ने हीं खुद को संभाला और एक दुसरे से हाथ मिलाया!उनकी हरकते वैभव से छुप नही सकी थी,लेकिन उनका मानना था कि समय के साथ सब ठीक हो जाएगा!तब तक माली काका उनलोगो के लिए काँफी का मग और नाश्ता रख गया था!
अच्छा तो हमलोग थोरा सा फुल होले काँफी और नाश्ते से,देखो ना माली काका ने हमलोगो के लिये बरे हीं प्रेम से तैयार किया हैं!वैभव ने वहां बोझील स्थिति को सामान्य करने के लिए कहा,और उनकी बातो से शुक्ला दंपती ठठाकर हंस परे!फिर वे लोग नाश्ता करने मे बीजी हो गए!तभी गेट से काले रंग की एस यु वी कार ने प्रवेश किया, सभी की नजर उधर हीं टीक गई!गाडी पार्किंग मे खडी होने के बाद उसमे से दयाल मोहंतो उतरे और तेज कदमो से चलते हुए उनके पास पहुंँचे,उनके हाथ मे ब्लू रंग की फाईल थी!
या रब्ब सब भला करें,आप लोग पहले आ गए,मै थोरा सा लेट हो गया,दयाल मोहंतो उनलोगो के पास पहुंच कर बोला!फिर उसने उन लोगो से हाय हेल्लो किया!
उनको आते हीं माली काका उनके लिए भी काँफी और नाश्ता सर्व कर गए!फिर नाश्ते काँफी के दरमयान हीं उनलोगो मे इधर उधर की बातें होती रही!जब सब नाश्ता काँफी से फारिग हुए,तब दयाल मोहंतो शौम्या की तरफ मुखातीब होकर बोले!
शौम्या बेटा,हम लोग यहां किसलिए इकठ्ठा हुए हैं,वो तो तुम्हे मालुम हीं होगा!
जी अंकल,शौम्या ने छोटा सा वाक्य बोला!
तो बेबी,इस फाईल पर तुम दोनो सिग्नेचर कर दो!दयाल मोहंतो उत्साहित होकर बोले!इतना सुनना था कि नफरत की लहड शौम्या और शौरभ,दोनो के चेहरे से होकर गुजरी!लेकिन शौम्या ने फाईल थामा,पन्ने पलटे और कलम उठा कर सिग्नेचर कर दिया!शौरभ ने भी बेमन से साईन किया,तभी सभी लोगो ने ताली बजाई,खुशी का माहोल सा बन गया!
मै जानता था कि तुम लोग जरुर हमारी भावना को समझोगे!आज मेरे मनोरथ पुरे हुए!शाम को तुम दोनो का एंगेजमेंट का आयोजन किया हैं!अब तुम लोग ऐसी कोई हरकत मत करना,जो हमलोगो के दिलो को ठेंस पहुंचाए!भावनाओं के सागर मे ङूबते हुए वैभव शांङिल्य बोले!
उनके घोषना करते हीं वहां तालियों की गडगडाहट गुंज उठी!शाम होते होते शांङिल्य विला को दुल्हन की तरह सजा दिया गया था!कांबले की खुशी का ठीकाना नहीं था,वो दौर दौर कर सारी तैयारियों का जायजा ले रहा था!खुशी की कोई सीमा तो वैभव शांङिल्य की भी नही थी,वो खुशी से फुले नहीं समा रहे थे!आज ऐसा लगता था कि उनपर जवानी फिर से चढ गई हो!आज उन्हे कमी खल रही थी,तो सिर्फ अपने धर्मपत्नी की,आज वो अगर यहां होती,तो खुशी कई गुणा बढ जाती!वो भावनाओ मे प्रवाहीत हो रहे थे,तभी उनका मोबाईल बजा!
वो यारा वो यारा,मिलना हमारा!
उन्होने मोबाईल निकाल कर देखा,सामने उनकी जीवनसंगिनी थी,फिर तो वे फोनलाईन पर बीजी हो गए!इधर उधर की ढेर सारी बातें,बात जज्बात और कभी कभी अाँखो मे छलकते आँसु,भावनाओं का ज्वार और उसमे एक दुसरे को दिलाशा देते हुए!काफी वक्त बीत गया दोनो को बात करते हुए!तब वैभव ने हीं फोन लाईन डिस्कनेक्ट किया!शाम ढल चुकी थी,इसी के साथ शांङिल्य विला रौशनी से दुल्हन की तरह नहा गई और खुबशुरती से दमकने लगी!
तय समय से पहले हीं मेहमानो के आने का सिलसिला सुरू हो गया!कांबले मेहमानो के स्वागत मे तल्लीन था,खुशी तो माली काका को भी थी,वो पुरे जोश खरोश से मेहमानो की सेवा मे जुट गए!मेहमानो के आने का ताता लगा हुआ था,और लगे भी क्यों नही,बीजनेस मैन होने के साथ हीं वैभव का समाज मे काफी रूतवा था,रात ज्यों ज्यों छा रही थी,शांडिल्य विला की सुन्दरता बढती जा रही थी!तभी तय समय पर गेट से इनोवा कार ने प्रवेश किया!
कार के प्रवेश करते हीं वैभव पार्किंग की ओर दौरे और गाडी के रूकते हीं नजाकत से शौम्या को उतारा,शौम्या ने उतरते हीं उनके चरणो मे झुक कर प्रणाम किया,बस वैभव गदगद हो गए, वे शोम्या के माथे पर ममता से सिंचीत हाथ फेरा और हाँल की तरफ लेकर बढ चले!शौम्या के आते हीं हाँल मे हलचल बढ गई थी,जितने मुख,उतनी बातें,शुक्ला दंपती भी मेहमानो मे घुल मिल गए!तभी सिढीयों पर शौरभ दिखा,उसे देखते हीं हाँल मे चहल पहल बढ गई! पहले तो वैभव ने शौम्या और शौरभ को मिलबाया,दोनो एक दुसरे को देख कर शर्मा उठे,लेकिन उनके आँखो मे एक अजब किस्म की चिंगारी थी,जो वहां और किसी को नजर नही आ रही थी,और वो चिंगारी थी नफरत की,जो दोनो एक दुसरे से करते थे!
समय की अनुकूलता देख कर वैभव ने इको वायरलेस थामा और पुरे जोश खरोश से बोले,लेङीज एण्ङ जेंन्टल मैन,आज खुशी का दिन है,जिसका कि हमने बर्षो से इंतजार किया था!मै आज अपने पुत्र शौरभ शांङिल्य का शौम्या शुक्ला के साथ इंगेजमेंट की घोषना करता हूं,और दोनो की शादी अगले सप्ताह पटना के कंकर बाग के लाल भवन मे आयोजीत की जाएगी!जब वैभव ने अपनी बात खत्म की,तो पुरा हाँल तालियों के गडगडाहट से गूंज उठा!
शौम्या और शौरभ ने आगे बढ कर इंगेज अंगुठी एक दुसरे को पहनाया,इसी के साथ महेफिल के रंग जम गए!सभी पार्टी का लूफ्त उठाने मे व्यस्त हो गए!महफिल ने रंग जमाये,तो जोडे एक दुसरे से ताल मिला कर थिरकने लगे,लेकिन इस सबसे अलग शौम्या ने शौरभ का हाथ पकरा और उसे उसके बेङरूम मे ले गई!वहां पहुंच कर दोनो ने राहत की सांस ली!
तुम्हे तो मजा आ रहा होगा ना,आखीरकार तुम मुझे अपना गुलाम बनाने मे सफल हुए!शौम्या गुस्से की अधीकता से बोली!
मजा मुझे नही बल्कि तुम्हे आ रहा होगा!तुम्ही तो चाहती थी कि मै बर्बाद हो जाउँ,सो कर दिया,अब जले पर नमक छिडकने के लिए साथ आना चाहती हो!शौरभ कुटिलता से मुस्कुरा कर बोला!
सुनकर शौम्या के हृदय मे नफरत की ज्वाला भभकने लगी, वो बेङ पर बैठ गई और अपने सांसो को नियंत्रीत करने लगी,जबकि शौरभ दिवार से लगा खडा रहा!पर दोनो के चेहरे पर बेचैनी थी और यही बात वहां माहोल को तंग कर रही थी!एकाएक शौम्या मुस्कुरा कर बोली,जानते हो,मै ने तुमसे रिश्ते का प्रपोजल क्यों स्वीकार किया,जबकि मै तो तुमसे नफरत करती हूं!
नही मुझे मालुम नही,शौरभ मासूमियत से बोला!
बस इसीलिए जालीम कि मै तुमको चाहती नही हूं और ना हीं किसी और का होने देना चाहती,मै जानती थी कि मै अगर ना कहती हूं, तो तुम किसी और के बांह मे झुमोगे,जो मुझे मंजुर नही था!बोलने के साथ ही शौम्या के हाथो मे रिबाल्बर चमका,उसने निशाना लगाया और फायर कर दिया,गोली शौरभ के सीने मे लगा,वो लहडा कर झुका और वहीं बैठ गया!तभी शौरभ के हाथ मे भी रिबाल्बर चमका, उसने भी शौम्या की तरफ फायर झोंक दिया!गोली शौम्या के पेट मे लगी,वो भी लहडा कर बेङ पर लूढक गई!
तब शौरभ अपने दर्द को पीने की कोशिश करता हुआ मुस्कुरा कर बोला!मै भी तो नहीं चाहता था कि तेरे जुल्फो से कोई दुसरा खेले,इसीलिए तो हामी भरी थी,अब जाकर इन्तकाम पुरा हुआ, इधर वे लोग घायल होकर परे थे,उधर हाँल मे गोलियां चलने की तेज आवाज ने हरकंप मचा दिया!कितनो के हाथो से तो जाम का भरा प्याला हीं छूट कर पर्श पर गीरा और चुर चुर हो गया!हाँल मे भगदर सी मच गई,सभी शौरभ के रूम की ओर भागे,वहां की स्थिति देख कर सभी के होश उड गए!वैभव तो हत् प्रभ थे,उन्हे तो समझ हीं नही आ रहा था कि क्या करें,उन्होने क्या सोंचा था और क्या से क्या हो गया!
आखीरकार कांबले ने हिम्मत दिखाई,उसने शौरभ को बांहो मे उठाया,तब जाकर वैभव की भी तंद्रा टुटी,वे भी शौम्या को बांहो मे उठा कर बाहर भागे!पलक झपकते हीं दोनो को इनोवा कार मे ङाला गया!स्वयं वैभव ने ङ्राईवर शीट संभाली,फिर तो कार हवा से बात करने लगी!कांबले ने लीलावती हाँस्पिटल को फोन कर दिया था,अतएब गाडी पोर्च मे लगते हीं दोनो को स्ट्रेचर पर लेकर इमरजेंसी वार्ङ मे ले जाया गया!इस दरमियान वैभव पसीने से पुरी तरह नहा चुके थे,अनजाने भय से उनका हृदय कांप रहा था,आँखो से आँसुओ की धार बह रही थी,कहां तो उन्होने सपने सजाए थे खुशीयों के,और कहां उसके दामन मे कांटे ही कांटे चुभ गए थे!
उन्हे समझ हीं नही आ रहा था कि वो क्या करें,उनसे शौरभ के परवरिश मे कहां चुक हुई थी कि उन्हे आज यह दिन देखना परा,वो हाँस्पिटल की दिवार से सटकर खडे हो गए,तभी उनके कंधे पर किसीके हाथो का स्पर्श हुआ,उन्होने पलट कर देखा तो प्रभात शुक्ला थे,वो शुक्ला के गले लग गए और हिचकियां बांध कर रोने लगे!थोरी देर बाद जब मन हल्का हुआ तो इमरजेंसी वार्ङ की ओर लपके!
पुरी अनिश्चिताओं मे वो रात कटी,ङाँक्टर की टीम दोनो को बचाने की भरपुर कोशिश कर रही थी,तो इधर सभी के चेहरे पर गम के घनघोर बादल छाए हुए थे!सुबह होते ही आँपरेशन थियेटर का लाईट बुझा,और सभी की सांसे थम सी गई,तभी आँपरेशन थियेटर का दरबाजा खुला और उसमे से ङाँक्टर माथुर निकले!उनको देखते हीं वैभव उनकी ओर लपके!
मिस्टर शांङिल्य,अब चिंता की बात नहीं,दोनो हीं खतरे से बाहर हैं, माथुर मुस्कुरा कर बोले,तो सभी की जान मे जान आई,जबकि माथुर ने फिर कहा,हालांकि रक्त ज्यादा निकल जाने के कारण उन दोनो को होश नहीं आया है,पर चिंता की बात नही,दिन के बारह बजते बजते वे होश मे आ जाएंगे,फिर आप लोग मिल लिजिएगा!
उसके बाद दोनो को आँपरेशन थियेटर से सिफ्ट किया गया,इस बीच इन्सपेक्टर सान्तनु साहा ने आकर सारी औपचारिक्तायें पुरी की!शांङिल्य विला मे जो घटना घटी थी,वो न्युज चैनल बालो के लिए मसाला बन गया!प्रींट और इलेक्ट्रोनिक मिङिया मे इस न्युज को बढा चढा कर दिखाया जाने लगा,और पुरे शहर मे यही न्युज छा गया, जिसके मुह देखो वही बात!खैर शौम्या और शौरभ को ठीक होने मे लगभग आठ दिन लगे!उसके बाद दोनो को शांङिल्य विला ले आया गया!
हाँस्पिटल से आते आते शाम हो चुकी थी,अँधेरा घीरने लगा था,गाडी ने जब विला मे प्रवेश की,तो पुरे विला की लाईट जलने लगी,उसके बाद माली काका दौर परे कार के पास,उनका चेहरा मलीन था,और उनलोगो के सही सलामत आने पर उनके चेहरे पर चमक छा गई थी,अँधेरे मे भी स्पष्ट दिखता था कि रो-रो कर उनकी आँखे सूज गई हैं!गाडी पोर्च मे रूकी,वैभव ने दोनो को उतरने मे मदद की,गाडी के दुसरी तरफ से शुक्ला दंपती के साथ कांबले भी उतरा,सभी लोग हाँल मे आ गए!
हाँल मे शौम्या और शौरभ,दोनो को शोफे पर बिठाया गया,वैभव भी शौरभ के पास हीं बैठ गए!बांकी सभी लोग बाथरूम फ्रेश होने के लिए चले गए!तभी माली काका काँफी का प्याला ले आए और उन्होने शौरभ और शौम्या को थमा दिया,तीसरा कप वैभव ने खुद उठा लिए,तब तक कांबले और शुक्ला दंपती भी आ गए थे, उन लोगो ने भी काँफी का मग उठा लिया और सामने बाला शोफे पर बैठ गये!महौल थोरा तंग था,शौरभ और शौम्या का चेहरा सपाट था, काँफी खतम करने के बाद वैभव ने मुस्कुरा कर शौम्या को संबोधीत किया!
शौम्या बेटा!
जी अंकल,शौम्या ने धीरे से कहा!
बेटा मै आप दोनो को कुछ दिखाना चाहता हूं,सायद वो आपके लिए प्रेरणास्रोत हो!उसके बाद मै आप लोगो को वो बात बताउँगा,जो हम सभी के लिए काम की चीज है!भावुकता मे बोले वैभव,जबकि ऐसा नही लगा किडड उनके बातो का कोई खाशा प्रभाव दोनो पर परा हो,तभी वैभव ने इशारा किया,मानो यह कोई संकेत हो,कांबले उठा और प्रोजेक्टर उठा लाया!फिर थोरे से छेरछार के बाद पेन ङ्राईव लगा कर विङियो चालु कर दिया!
विङियो चालू होने के साथ हीं हाँल मे सन्नाटा पसर गया!हाँस्पिटल के आँपरेशन थियेटर का दृश्य,कैसे ङाँक्टर दोनो का आँपरेशन कर रहे थे,पल पल ङाँक्टरो के चेहरे पर बढती परेशानी, और इस सबके बीच शौम्या और शौरभ के होठो से निकलते वो वाक्य जो ङाँक्टरो को भी भावुक कर रहे थे,शौम्या बेहोसी मे भी बार बार बोल रही थी,प्लीज ङाँक्टर शौरभ को बचा लो,जबकि शौरभ शौम्या को बचाने के लिए बोल रहा था!
इशारा हुआ और कांबले ने विङियो बंद कर दिया,तब वैभव शौरभ और शौम्या से मुखातीब हुए!अच्छा तुम दोनो तो काफी पढे-लीखे हो,मुझे बताओ कि विङियो से तुम दोनो को क्या सीख मिली!जबाब मे शौम्या और शौरभ ने सिर्फ गरदन हिलाई,दोनो के आँखो से आँसु बह रहे थे,गला अवरूद्ध हो गया था!जबकि वैभव फिर बोलने लगे!तुम लोग नई पिढी के पुरोधा बनते हो,तुमलोग महत्वकांछा मे ङुब जाते हो और बरे शहरो की ओर पलायन कर जाते हो,पर जीवन जीने की कला नही सीख पाते!अपने अहंकार,सुख सुविधा मे दुसरे की भावना कुचलना जानते हो!
वहां चुप्पी छा गई थी,सभी दम साधे उनकी बातें सुनते जा रहे थे,जबकि वैभव फिर बोले,मै ने कहा था कि ब्याह करलो,यह जीवन की गाडी चलाने के लिए जरुरी हैं,पर तुम दोनो ने हीं इनकार किया,और मुंबई चले आए,हां तुम दोनो की शादी पहले हीं तय हो चुकी थी,पर तुम लोग रिश्तो के ङोर को क्या समझो,तुम्हे तो प्रेम करना हीं नही आता,प्रेम कहते किसे है,उसी शत्य से अनजान हो,प्रेम पाने का हीं नही खोने का भी नाम हैं,प्रेम मे समर्पण होता है,इसमे अधीकार दिखाया नही जाता,बस्तुत: स्वत:हो जाता है!हां मुझे अब मुझे अनुभूति हो गई हैं कि तुम लोग अब प्रेम के बास्तविक रूप को पहचान गए होंगे!
जी पिताजी,हम समझ गए है,सारी परेशानिया अब दूर हो गई है!शौरभ और शौम्या एक साथ बोल परे!
हां,और तुम लोग एक दुसरे को बखुबी समझ लो,इसलिए तुम लोग का टिकट कटवा दिया हैं,तुम लोग पटना जाकर एक साथ रहो और एक दुसरे को महसूस करो,तब तक यहां का व्यपार मै देखुंगा और कांबले मेरी मदद करेगा!जब तुम लोग प्यार का असली मतलब समझ लोगे,तो वहां हमलोग भी आएंगे,और तुम दोनो का ब्याह कर देंगे!
जी पिताजी,इस बार शौरभ शर्मा कर बोला,उसके बोलते हीं सभी के चेहरे पर मुस्कुराहट छा गई!



(यह पहला भाग हैं,दुसरे भाग मे शौरभ और शौम्या के दिल मे एक दुसरे के लिए उभडता हुआ प्रेम,छोटे शहर के गलियों की कुछ अनकही सरारत,प्यार की छोटी-छोटी बातें,गंगा किनारे की अनकही कहानी और विभाग शांङिल्य की हरकते,बहुत कुछ हैं!)

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दादी की परी
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