कविताअन्य
**** सुख और दुःख ****
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सुख दुःख धूप और छाँव सम
बन्दे तुम जावै क्यूँ घबराय l
दुःख की बदली ज्यों छटे
सुख की धूप निकरि तब जाय l
कठिन परिश्रम देखि के
हार नहीं तुम मान
अग्निपरीक्षा ते ही होत है
सुवरन की पहचान l
असफल और सफल के मद्धये
परिश्रम निर्णायक होत l
बिना किसानी के किये l
फसल खड़ी नहिं होत l
जो नर करे बुराई औरन की
उससे बुरा न कोय l
तुम्हहि देखावै तर्जनी
चारो अँगुली आपन तरफ ही होय l
है बड़ाई इसी में
करिये सबका सम्मान l
भूले से भी ना करे किसी का कभी अपमान l
( आलोक मिश्र )