कहानीहास्य व्यंग्य
अगले दिन डोर बेल पर डोर बेल बजे जा रही थी। हम बड़े कंफ्यूजीयाये हुए से हड़बड़ाकर दरवाजे की तरफ भागे। देखा तो जिज्जी पर गुस्से के लाल पिले नीले हरे सब रंग चढ़े हुए थे। हमने तुरन्त से दरवाजा खोल दिया। नही तो असज घण्टी ही उखड़ जाने वाली थी।
जिज्जी के कुछ बोलने से पहले ही हम हँसते हुए बोल पड़े
“क्या हुआ जिज्जी घण्टी की रेल काहें बना दी??? तनिक अंदर तो आओ”।
जिज्जी पूरे रौद्र रूप में बोल उठी
“काहें अंदर काहें आये। अंदर आने लायक छोड़े हो जो अंदर आये,”
“हाये जिज्जी ऐसा कैसे बोल रही हो। अब कौन सी गलती होगयी हमसे जो ऐसा बोल रही हो आप”
शशि ने आश्चर्य से पूछा। तभी जिज्जी बोल उठी
“हटो जरा” (धम्म से सोफे पर बैठ जाती है, शशि दरवाजा बंद कर आती है)
“हमें तुमसे और भैया से ये उम्मीद कतई न थी शशि। तुमने सोचा भी कैसे हमें कुछ पता ही नही चलेगा। अगर हम तुम्हारे आजू बाजू न रहते ना, तो तुम तो बेच ही खाती हम सबको”।
अब शशि दूर दूर तक दिमाग के घोड़े दौड़ा रही थी। “ऐसा क्या पता लग गया जिज्जी को, जो इतना भड़क रही हैं, अरेरेरे कहीं वो फ्लैट वाली बात तो नही उगल दी भानु ने जिज्जी के सामने, आने दो भानु को आज हम बात भी नही करेंगे उनसे”
उधर जिज्जी बोले जा रही थी। इधर शशि पति प्रेम में खोई पड़ी थी। तभी जिज्जी का पैर टेबल पर लगा खटैक की आवाज से हमारी तन्द्रा टूटी।
जिज्जी घुटना पकड़कर बैठी थी’
“हाये दैया लग गया पैर ठुक गया, घर के सामान भी सम्भालकर नही रखे जाते मैडम से, तोड़ डाला मेरा पैर, अब वहीं खड़ी रहेगी या बाम भी लाकर देगी।
शशि बाम अलमारी से निकालते हुए खुद से बात करती हुई, ज्यादा नही लगी होगी नाटक ऐसे फैला देंगी जैसे फ्रैक्चर होगया हो, और अगर अब चोट पर ध्यान नही देंगे तो फिर से चार सुनाएंगी, कसम से कहाँ फँस गए हम, वही समझ नही आता,
बाम दे देती है। “जिज्जी पानी लाऊं कमजोरी आगयी होगी बहुत जोर से लगा है पानी पी लो फिर मैं बाम लगा”।
जिज्जी-“ हमसे तो चला ही नही जा रहा है लगता है हड्डी टूट गयी है, हड्डी के डॉक्टर के पास जाना पड़ेगा, हमें तो फिक्र है हम घर कैसे जाएंगे, हाये हमरे टुन्नू सुन्नु दोनों बच्चे भी भूखे होंगे,। हम तो आज खाना भी नही बना पाएंगे। एक काम करते हैं हम यंही रुक जाते है आज कल थोड़ा ठीक लगा तो चले जायेंगे”।
शशि खुद से बात करती है “घर कौन सा पाकिस्तान या लन्दन में है इनका जो वीज़ा लगेगा। एक नम्बर की नौटँकी फैला देती हैं”।
जिज्जी तभी शशि को टोकते हुए “कुछ कहा तूने”
शशि- “नही जिज्जी बस हम यही कहना चाह रहे थे कि जिज्जा बिचारे बहुत प्यार करते हैं आपसे कैसे रहेंगे इतने घण्टे आपसे दूर। हम एक काम करते हैं धीरे-धीरे सहारा देकर आपको घर तक छोड़ देते हैं।
जिज्जी “बात तो तुम्हरी ठीक है, बिचारे परेशान हो जाएंगे, वैसे कभी- कभी समझदारी की बात कर देती हो तुम भी। हमसे अच्छी सिख ले रही हो। चलो छोड़”।
(शशि मुंह छिपाकर हौले से मन ही मन मुस्कुरा रही थी, “वाह शशि पहली बार तीर निशाने पर लगा है”)
जिज्जी-“अच्छा सुन हम इस हालत में खाना नही बना पाएंगे तू बनाकर भिजवा दियो, और सुन, मटर की कचोरी, शाही पनीर, आलू गोभी, मूली का रायता, भिंडी, और मेरा अचार खत्म होगया है। थोड़ा सा जावन भी भेज देना मैं शाम को बच्चों को भेज दूंगी मेरा बड़ा टिफ़िन लेकर और एक तेरा टिफ़िन दोनों पैक कर भेज दियो।
शशि खड़ी-खड़ी सोच रही थी, (“अच्छा हुआ जिज्जी बात भूल गयी नही तो आज शशि तेरी खैर नही थी)-नेहा शर्मा।
फिर भी कुछ सस्ते में छोड़ दिया, जिज्जी ने जो रात भर सिर पे सवार रहतीं, बात बढिय़ा डिनर तक ही रही..!! 😊