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"में"
कविता
मास्टरजी
प्रेम
"इस बार जो बरसा सावन"
८४ जूनी बाद मिला है जीवन
भींगे-भींगे बारिश वाले प्यार
रूह में मेरी समाओगे कब
बीते वक्त का एक घाव ज़हन में रह गया है
कोई दिल में जब उतरता है
खुद में खुद के लिए अभि ज़िदा हूँ मैं (स्वाभिमान)
कवि हो जाना
मेरी बेटी मेरी माँ हो गयी
लमहा-लमहा, बूँद-बूँद
लाॅकडाउन में पति की दशा
मै वेदनाओं में ही जलता रहा
हाँ इश्क़ में तेरी मेरी एक ही राशि है
तुम्हारे घर में एक छोटा सा कोना चाहती हूँ
सबके दिल में
मौत के शिकंजे में जिंदगी
मन में कुछ जिज्ञासा है
मन में कुछ जिज्ञासा है
धुंधलापन ------------------------ इस रात के घने अंधेरे में मैं देखना चाहता हूँ चारों ओर इस दुनियाँ का रंग रूप पर कुछ दिखता नहीं पर मन में एक रोशनी सी दिखती है | बस हर तरफ से नजरें हारकर बस उसकी तरफ मुड़ जाती है दिखती है वह दूर से आती हुई पर उस
पर हमें भी लिखना है
हिंदी हूँ में
हिंदी दिवस विशेष - विश्व में पहचान हिंदी
कव्वाली,,बच्चों में नैतिक मूल्य
हिंदी क्या है??
हिंदी है पहचान हमारी
देश प्रेम की भाषा
दिल के सांचे में अश्क ढलता है
यूँ हाथ थामकर हर पल का
हिंदी से हिंदुस्तान है
हिंदी से हिंदुस्तान है
हिंदी से हिंदुस्तान है
क्या है आज के अखबार में
काँटों के बीहड़ में खिले गुलाब
ब्रजमंडल में ग्रीष्म
नये दौर के बच्चों में नादानियाँ कहाँ रही
शरद पूर्णिमा में रास
खुद में खूबसूरत है हम
मित्रता मेरी दृष्टि में
जब हम किसी के प्यार में होते हैं तो
सन्नाटे में तैरता सा कोलाहल
दिल में
मेरे देश में
मेरे गले में
बचपन हमें जीने दो
हाथों में आ जाती है कलम
मैं छाँव तेरे आँगन की
कैसे कहूँ क्या दफन है मेरे ज़हन में
बेटी के नाम
मासूम कलियां
नवरात्रि में नौ देवियां
जाते जाते दे गई वो मेरी आंखों में पानी
कौन कहता खामोशी में बात नही होती
ना जाने किस वेश में
खामोशी बातों में
खामोशी बातों में
म्हारा आंगणिया में
ना जाने नारी कब किस रूप में ढल जाती है
!! नवरात्रि में नवदुर्गा माँ !!
बँटे आज हम जाने क्यूँ
कुछ अच्छे में, कुछ अजीब भी था
आओ माँ मन मंदिर में
तब गांव हमें अपनाता है
चिड़िया पिंजड़े में कैद हो गई
दिल का दर्द
जिंदगी मुट्ठी में बंद रेत सी
स्त्री
मिलकर देश उठाओ ना
कार्तिक मास की धूप
कफस में कनेरी
कफ़न में लिपटकर आना है
हम आगे बढ़ते जाएँगे
तेरी गोदी में,,,,सो जावाँ
इक उजाले का नयन में आस होना चाहिए
वो खेत में खड़ी
प्रभु मन में उम्मीद जगा दो
शहर में बसा गँवार मन
तेरी गोदी में,,,,,,नदियाँ
मैं तो हूं ही बेवकूफ
लॉक डाउन में क्या खोया क्या पाया
मेरे सवाल पास में उनके पड़े हुए
राह में कुछ लोग अब भी मुस्कराते चल रहे
इसी में तो भला है
मेरे चांद
जग के उर्वर आँगन में
मेरे देश में पौष मास
बाक़ी हो आज भी मुझमें
तारे
#इकरार
सुन..बापू तेरे देश में
शीत ऋतु
शीत ऋतु
मेरे देश में पोषक का स्वागत
(राष्ट्रीय बालिका दिवस) गर मैं गर्भ में न मारी जाती...
जब कोई बात दिल में घर कर जाती है
अमर शहीद
# शहीदों की याद में एक दिया जलाये
तेरे इश्क में डूबे डूबे से हम हैं
सपने में पापा आए
बचपन में
पनपी मन में एक अभिलाषा
देव भूमि में प्रकृति का कहर
इनबॉक्स वाला इश्क़
भारत के वीर सपूतों को नमन
ज़माने की नज़र में
मेरी जिंदगी में चली आना
मेरी जिंदगी में चली आना
मन के आईने में
बरसात में तेरा दीदार
दर्द
जीने की ललक
मन में आता ताव
आखों में चमकता प्यार तेरा
भोर में विभोर
दो कदम तुम भी चलो
दिल टूट गया।
कचरे के डिब्बे में भरा कचरा
"अब हमें प्रखर रहने दो "
खेल खेल में
मां तू है ममतामयी
रूह आसमान में रहती है
💕दुल्हन...
पचपन में मन खोजे बचपन
बीते हुए लम्हों में
असमंजस में
विरह वेदना
"प्रेम में तेरे"
घनाक्षरी
दिल ही तो जाने है
रात के आकाश में जागता एक चांद
सूरज
कांच के गिलास में
शब्दों की महिमा
राधा किसी गुहार
राधा की गुहार
न्याय इतनी दूर क्यों ?
न्याय इतनी दूर क्यों ?
कभी जिये होते आकाश में
व्यंग्य
मेहरबां है रब जो उसने हमें मिलाया
थम गए
बुढ़ौती में हमरा के लव होइ गवा..!
आऊँ भरूँ तुझे अंक में
आ भरूँ तुझे अंक में
ग़ज़ल
गांव की अनुभूति
ग़ज़ल
आपदा में अवसर
सन्नाटे में तैरता सा कोलाहल
मोहब्बत सी हो गई है, तेरे एक इंतजार में...
सड़कों पर बिखरी हुई यह विवशता
मिलकर भगायेंगे कोरोनावायरस
काँटों के बीहड़ में खिले गुलाब
जीवन के सपनों को
बँटे आज हम जाने क्यूँ
एक कड़वे सच के आईने में
दिल में एक लहर सी
# बहुत घुटन है
यादों के धागे में
यादों के धागे में
एक खुले आसमान की हवाओं की तलाश में
मैं खुद में तुमसे ज्यादा नहीं था कभी
धरतीपुत्र 💐💐
अब शौक नहीं है।
पंछी निराले रंगीले।
एक अंधाधुंध दौड़ में
✍️बेहिसाब है,यह खुशियां तेरे एक मुस्कुराहट में।।
मित्रता दिवस (Freindship Day)
✍️इंसान को भी जीना सिखा देता है।
" हम थे नादान " 💐💐,
एक अंधाधुंध दौड़ में
नारी के जीवन में इतवार नहीं आता
बन के परिंदा
तेरी बातो में
हे माँ शारदे
दो कदम तुम भी चलो
प्रीत में कुछ ना शेष
तेरी यादो के अंजुमन में
अब में ही सिमटा है
मेरे घर में माँ आयी है
क्या करूँ, बीच में नेहरू आ गया
जिंदगी की डायरी
शुभ कर्मों में देरी क्यूँ
नववधू
नहीं दे सके साथ
वक्त के इस काफिले में
वक्त के इस काफिले में
दरीचे
तुम्हारे सीने में मेरा दिल
आसान नहीं हैं, किसी के साथ जीना
बाल कविता होली में मची है धूम
क्यों सत अंतस दृश्य नहीं?
वक्त के इस काफिले में
आस में हूं
" पत्ता " 🍁🌺
उमंग
गीत... हो रहे हैं लोग
सलीक़े से हवाओं में जो ख़ुशबू घोल सकते हैं
गीत.. हाथ में खंजर लिए
वर्तमान से वक्त बचा लो तुम निज के निर्माण में द्वितीय भाग
चौका
मेरी उल्फ़त, मेरी चाहत
वो छुईमुई
चाँद
ऐसी रित जगत में
ऐसी रित जगत में
दास्तां ए दिल
मेरे ही घर में पूछ के लाया गया मुझे
जीवन का सत्य
जीवन क्या सत्य
हर किसी के हाथ में अब आंच है।
हम बस देखते रहे
“दायरे–इश्क़ में हुस्न”
सब जायज़ दिखाई देता है
प्यास दरिया की बुझती है समंदर में आकर
कुछ भी नहीं है बशर बात नई जिंदगी में
घर की बात बशर रखा कर घर मेंअपने
यादों का आभास हुआ मुझ में
सावन के महीने में कोई बड़ी शिद्दत से याद आता है
अंधे रेवड़ी बांटने में लगे
ख़त्म करो बशर येह तलाश अपनी गैरों की हयात में
और बशर इस जहां में क्या रखा है
सियासत में
बशर ज़ेरे-ए-असर आकर दामने-कोह के सहन में बस गया
सियासत से ही सियासत की काबू में रखना माया मुमकिन है
हिज्र-ओ-फ़ुर्क़त में हबीब के कभी बसर करने का इरादा भी नहीं है
किस्तों में अदा होती है
ख़त में उसके आज भी वही ख़ुश्बू आती है
इक उम्र गुजरी है बशर यहाँ तक आने में
यायावर फकीरों के मुकद्दर में कभी कहीं घर नहीं आता
तसव्वुर में हबीब हमारा देखा
इशारों में बता
घर में ख़ान-ए-ख़ानाँ हो गए
तुमअपने सपने बशर जिस ज़बान में देखो
हयात-ए-मुस्त'आर खुदमें इक छोटासा सफ़र है
अनल, जल धूल, सलिल जज़्ब है सब तुझमें
हम कितने चैतन्य
सुकून-ए-ज़ीस्त मयस्सर ही नहीं कहीं आदमजात में
सबा से गुज़र जाओ
हयात में मग़र बशर हयात से मात खाता है आदमी
किरदार इन्सान का ज़ीस्त में असली सरमाया होता है
आज वतन की शान में करते थकते नहीं गुणगान
सही दिशा में
जन पक्ष में लेखनी चले
तहखानों में छुपा रखा है
मजा तो दर्दे-जिगर छिपाने में होता है
सरगिरानी में भी मसर्रतों का हमारी न कमाल पूछिए
राखी के धागों में है पिन्हा बहन-भाई का प्यार सलामत
ख़ाकसारी में भी बशर उन की बड़ी शान होती है
मुलाक़ात हबीब से ख़्वाब में कम न थी
हमें न बताकर आए
उम्रें गुज़र जाती हैं बात दिल की कानों तक आने में
जीवन वह है बशर जो हम ने जिया है
दुआ में हाथ हमारे उठ गए
मेरे वतन में खुदा बहोत हैं
जीने के अहसासात गुजारे हमने गाँवमें अपने
धूप में जले हम छांव के होते हुए
जमाने गुज़र जाते हैं बशर खुशियों के आने में
*हमें बशर हरसू इन्सान में इन्सान नज़र आता है*
जन मन में हो उत्कट चाह
*आख़िर तेरे शहर में आना हुआ*
*रहगुज़र मुकद्दर में ''बशर'' तेरे लिखा है*
मन में क्यों भरा रहे घमंड
*पहचाने जाने में जमाने लगे हैं*
अपने ही घर में थे
*मुस्कुराने में क्या जाता है*
राजनीतिकों में चिंता नहीं शेष
आस उस की मन में विश्वास जगाती है
यादें
बृज भाषा में सवैया
विष बो रहे समाज में सरेआम
*कण कण में भगवान*
*ये सिक्के इन बाजारों में नहीं चलते*
*इसका हमें न पता था*
*जमाने का होता है हाथ फ़ितरत-ए-इन्सा बनाने में*
*धनदौलत जिंदगीमें सच्चे अहबाब होते हैं*
सच समझने में चूका तंत्र सारा
*शजर की छाया में*
मुश्क़िल हालात में
*सीने में धड़कता क्या है*
*यहाँ पर नहीं हूँ मैं*
मसर्रत
सलीक़ा
*कदमों में जमाना होता है*
*दिल को पहलू में संभाल कर रखा करो*
*माटी में माटी होने दफ़्न आ गई*
इश्क़ में 💔
मोहब्बत में वफ़ा ना हो
वादे कसमें 🥹
मोती लड़ियों में पिरोने लगती है
*मुझमें मैं रहा ही नहीं*
मुझ में 'मैं' बचा ही नहीं
इश्क़ में 💫
रोया मग़र बशर गोया आकर दिसम्बर के महीने में
*वक़्त वस्ले-यार में गजारा हुआ*
हयात में मिले हर फ़रेब से वाकिफ़ हूँ
हाथों की लकीरों में क़िस्मत न रही
जद अपनी "बशर" अपने दस्तरस में नहीं
*खुश रहने में भी कुछ जाता है क्या*
वोह फ़ना हो जाते हैं सचके हकपर खड़े रहने में
कागज़ की कश्ती में घर
मौसम-ए-सर्द में बर्फबारी आम बात है
किसी के लिए किसी में कोई खास बात होती है ©️ "बशर"
हम भी तो देखें दिल उसका अपने सीने में डालकर
हैं औरभी मुख़्तलिफ जानवर-जात दुनिया के जंगल में हर किस्म के मग़र आदमजात के बदरंग किरदार का सूरत-ए-हाल ही और है
प्रेम
वो इल्मो-हुनर हमें नहीं आता दर्दे-जिगर जिससे बांटें
सफ़र-ए-हयात में कांटों से भरा रहगुज़र आता है
दिलों में गर्माहट बहुत है
जान में जान आ जाती है
दश्त-ए-शनासाई में हमको दोस्ती बड़ी हरजाई मिली
इंसान
जिंन्दगी हमें कहाँ कहाँ ले गई
दिल में सच्चाई रख
उम्रे-पीरी में अहद-ए-शबाब चाहते हो
उम्रे-पीरी में अहद-ए-शबाब चाहते हो
अखबारों में छप जाने से नाम नहीं होता
होश में रहता हूँ
फ़रेब भरे हैं प्यार में
ला-हासिल ही रहता है यादगार में
ज़िक्र तेरा सब सफ़्हात में
तीसरा हमें गवारा नहीं बशर
नसीब ने दिए हमें बेशुमार ग़म
दर्द जिगर में होता है
हम सब इम्तिहान में हैं
रंगों में रवानी है
तिरे शहर में क्या क्या नहीं होता
आ गए मां-बाप दहेज में
मसर्रतें बंट गईं खुशनसीबों में
अंतस् में जब राम विराजे 🙏
राम आएंगे
जो हमें भूल जाते हैं
वफ़ा और यक़ीन एक ही खुदा में
गृहस्थी में फ़क़ीरी का मजा लीजिए
राब्तों में दम नहीं है
चांद सहर ए सराब में देखा
वक़्त को मनाने में जमाने निकले
अना में रहे कम न हुए
कविता
ख़ामोशियों में शोर पुरज़ोर होता है
जवानी हमने रूठने मनाने में गुजारी है
जेबों में नहीं दिलों में संजोये जाते हैं
जेबों में नहीं दिलों में संजोये जाते हैं
भीड़ है जिसमें सभी अकेले हैं
जीवन का एक भजन
अपनी नजरों में गिरने का सबब न हो जाए
चेहरों की सिलवटों में हमने पढी हैं
बड़ी बड़ी किताबों में
परेशानियाँ हर-बात में
उनकी छवि मेरे मन में
लोग जवानी में मर जाते हैं
धड़कने भी दिलमें धड़कनी चाहिए
सफ़र मुक़म्मल कर गया सागरमें समाकर
दर्पण में मुख संसार में सुख
तक्लीफ़ में परिवार साथ हो
हम में उनमें फ़र्क ही क्या
अपनों के ही सुख में अपना सुख देखा
'बशर'' ऐसा भी दर-ब-दर नहीं देखा
मुश्क़िल हालात में भी मुस्कुराते रहो
बड़ी जंग अकेले में लड़ी जाती है
बुरे वक़्त में लोगों के काम आता है
मिट्टी का मिट्टी में मिल जाना ना समझे
कांटों में गुल खिलता है
जिस के पैरों में फटे बिवाई
ख़बर न थी
बदहालियों में भी ख़ुशहाल है
फ़ासला दरमियान में रहा
दिलों में घर चाहता हूँ
सफ़र में रहकर
भीतर अपने तलाश कर
मुश्क़िलात में लोग कमाल कर गए
पीरी में सब साफ नज़र आता है
रिश्ते खतरे में
नादानी से काम नहीं चलता मुहब्बत में
इन्सान की रगों में खून काला बहने लगा है
होली मं
इंतज़ार में हबीब के
बुराई में सियासत दिखाई देती है
नब्ज बस में नहीं
तेरी नज़र पे है तू क्या देखता है मुझमें
अपना किसीको बनाने में
कुदरत का शाहकार लिए फिरते है
मुकद्दर में नहीं गुफ़्तगू
दिल में किसीकी जगह
नींद को आने में देर हो जाती है
ख़ामोशी से हमें डर लगता है
आईने में मिलने वाला है
बेफिक्र सी शामें
दिल में हमारे
रंग जाओ दिल के रंग में
रंग जाओ दिल के रंग में
बस दुआओं में मिला कोई हक़ नहीं आया
मेरे दिल में रहने वाले तुम दरार भी नहीं देते
तुम,से है,हमें मोहब्बत, ये बात और है
गिरना फिसलना खुद को उठाना पड़ता है
मुझमें ही रह के मुझ से फासला भी कमाल का है
घर में एक ही खिड़की होती थी ब्यार आने की
नृत्य काल कर रहा,भुजाओं में दो सर लिये
वसवसे और वहम में गुज़र गई
नादानी और अहम में गुज़र गई
ईद की बधाई
खुद को भूला हूँ तेरी याद में
ख़राब वक़्त में हमने अकेले ही दिन बिताए
दर्द में भी मुस्कराया करो
मुग़ालते में गुज़र गई
दिल के काशाने में है
किरदार हमें हमारे कर्म से मिला है
पलमें सदियां जीकर जाते हैं
मुश्क़िल है जगह पाना लोगों के दिल में
मुझको मिला वो सिला किसीके पास नहीं मिला
यारों की महफ़िल में आया करो
मुफ़लिस की बस्ती में चलकर दुआ करें
मझधार में लाकर रख दिया
हुआ मशहूर हयात में
जमाने लगने लगे हैं सहर होने में
जोर आता है निभाने में
दिलमें उतरने वालोंको संभालकर रखिए
विदाई की रात में
अपना घर तो अपना घर होता है
मेरा नाम नही 🥵
दाल में कहाँ कहाँ काला है
फ़कीरों की सोहबत में बादशाहत का अंदाज़
हरहाल में हिट जाते हैं
शुक्रिया मेरी जिंदगी में आने केलिए
कोई बेवफ़ा हो जाए
खुले आसमान में जीना चाहता हूँ
सच खड़ा अकेले में
फ़ितरत में होती है
इन्सान की औक़ात उसकी गैरत में होती है
दरख्तों की छांव में
हम फिर रोज़मर्रा में खो जाएंगे
दिलके काशाने में हमारे सनम हैं
BATWARA
मुझको आंखों में बसाने वाले
जमाने गुज़र जाते हैं तकरार में
जोशो-ख़रोश पाने में नहीं
दिल के काशाने में खुदा रखते हैं
गुम किताब चश्मे-पुरनम में
ख़्वाहिशों और हसरतों में रह गई कमियां
मुझे नहीं फ़िक्र कोई हाले-दिल बताने में
तैयार सुख-दुख में इक आवाज़ पर
खुशियों की दौलत आपस में मिलती हैं
है शिफ़ा मग़र मां की दुआ में
माँ से बड़ी नेमत नहीं
उनका क्या करें जो दिल में समाए हैं
उम्र हुई तमाम दर्दे -दिल को समझाने में
उसके नहले पे दहले हैं
जनाजे में नहीं आने वाला
आंखों में समंदर
रात की सियाही में
सहर की आस में
अपने घर में ही रहता है
जायका चखने में कोई हर्ज नहीं है
तुम्हेभी कोई ग़म नही हमें भी कोई ग़म नहीं
ख़बर में आते हैं
हम उनकी यादों में खोए थे
इक ज़माना अपने आप में हर शख़्स है
सबके क़िस्मत में होता नही हंसाने वाला
BATWARA
सब्ज शजर की छांव में
रिश्तों का रंग घुलने में वक़्त लगता है
आप पर हमें ऐतबार है
सारा शहर उसके जनाजे में निकला इक वो न निकला जनाज़ा जिसके तक़ाज़े में निकला @"बशर"सारा का सारा शहर उसके जनाजे में निकला
मन में होना ज़रूरी है
जून की उसके नसीब में नहीं है
सीनेसे निकलकर किधर जाएगा
इसी का नाम नसीब होता है
दुआ में हम क्या मांगें
दिल लगाने पर भी नहीं लगता बशर तिरे शहर में
दिल लगाने पर भी नहीं लगता बशर तिरे शहर में
बूंद बनकर सागर में समा जाना
बेकाबू कर 🙏
खुदगर्ज लोग सिखा जाते हैं
तुम में और मुझ में कौन है बेहतर?
चाहत ही मिट जाती है जग में रहने की
रिश्तों को निभाने में जियें कि मरें
सलाहियत कम होती है
कानों में घोला गया ज़हर ला-'इलाज है
हम सदा रवैय्या अपना नर्म रखते हैं
यादों की तस्वीर
क्यों न खुद को तुम में बुन लूं मैं
मिथ्या जगमें खो जाते हैं
इश्क़ 💔🥀
घर में हुआ आलोक
जोशो-जज़्बे का हुनर होता है @
भगवान भी प्रतीक्षा में घर के बाहर खड़े हैं
ख़बर नहीं के वो मौत की क़तार में है
तू भी मेरी कमज़ोरी है
आसमानों तक साथ चलने की दुवा करने में लगे हैं
कमियाँ निकाल रहे हैं हमारे किरदार में
सुकून-ए-क़ल्ब मयकदे में आकर मिला
मुहब्बत में फ़ना
फटे उस नोट की तह में/विमल शर्मा 'विमल'
कौन से हुनर थे मुझमें
हाथों की लकीरों में लिखा होता नहीं मुक़द्दर
आस्माँ में आशियाँ नहीं होता
उनको याद रखना वहम नहीं था
साया अखबारों में नाम हुआ करते थे
जिन्हें भुलाने की कोशिश में
अच्छा चाल-चलन दिल में समा जाता है
मुश्क़िल काम में दिलचस्पी कमाल होती है
घर के दीवारो- दर के दायरे में कैद है
शिक्षा का उजाला
नादानी में जिंदगी तन्हा होती है
जिस्मों से इश्क़ 🥀
रैनबसेरे के मेहमानों की बात क्या करें
खुद में गुम भी रहा करो
दूसरों की जान बचाने के लिए 🥹🥀
अनकही दर्द की दास्तान
क्या बहिश्त में भी भूखे रहना पड़ता है
मेरे दिल में पीर न होगी
कर्म के सज्दे में सर करने वाले
बच्चों की मासूमियत में हुस्न-ए-ख़ुदा-दाद नुमाया करो
दिल में नहीं ठहर पाएगा
दिल में नहीं ठहर पाएगा
दम निकला हैं 🥀🥹
उम्र तमाम हुई मयखानों में नादानी से
रहगुज़र ही में बशर गुज़र गया
जिंदगी के सफ़र में बशर वापस जाना है
नर्म लहजों में बात करें
हर हालात में चलते जाना
तुझे पहचानू मैं 🥹
जीतीहुई बाजी कोभी हमें हार जाना आ गया
लानत है औलाद की आलमगीरी में
न जाने किस तरह के ख़यालों में खोते जा रहे हैं
उड़ी हुई है नींद हमारी वस्ल-ओ-मुलाक़ात में
आंखों में बड़े - बड़े सपने रखते हैं
घर में रह कर घर ढूंढता रहता है
जीना ही छोड़ दे 'बशर' ग़म-ए - रंज - ओ - मलाल में
जीनाही छोड़दे बशर ग़मे-रंजो-मलाल में
काबे में भी वही है काशी में भी वही है
लोगों के दिलों में जगह बनाकर
रक़ीबों की दोस्ती में दम नहीं होता
प्यारा जहां में हिंदुस्ताँ हमारा है
अपनी खुदीमें ही मैं अपना कारवाँ होता जा रहा हूँ आलमी यौम ए बुज़ुर्गियत मुबारक @ "बशर" بشر
साये में उसके कभी बैठा नहीं कोई बशर
मुझको मुझमें रहने ही नहीं दिया आख़िरी तक
आज में गुज़रा हुआ कल ढूंढते हो
दिलचस्पी बाक़ी कोई मुझ को रही नहीं हयात में
हरशय फ़ानी है इस क़ायनात में
सफ़रमें लगी ठोकर
तजुर्बात -ए-हयात
तन्हा और दोस्तों संग वक़्त बिताने में फ़र्क होता है
गांव आजभी है दिल में मेरे बसा हुआ
तुरबत में आराम फर्माना अच्छा
बे-खुदी में खुदसे ही हो गए बेगाने
फ़ानी दुनिया में रखा क्या है
सफ़र में किसीका कहाँ घर "बशर"
जाहिल ही रहे जज़्बातों के फ़लसफ़े पढ़ने में
गुस्से में इन्सान
लाजवाब लगता हूं 🔥🔥
अब जी चाहता हैं मेरा 🤐🤐
मज़हब ही में मज़हब हो गया है
तसल्ली रख
उजाला हो भी नहीं सकता दीपक में अगर आग नहीं
शाद मिज़ाज मा-बाप में निशानी विषाद की
बेवज़ह लोगों केलिए दुनियामें कोईजगह नहीं है
सुकूंन से बसर करना हमारे बस में है
पहले किसी ज़माने में इन्सान था
सारी दुनिया को भुला देते
मसर्रतें मेरी तलाश में भटकती रहीं
मु'आफी मांगने में मत शरमाओ
भीड़ में खोने की बजाय अकेले चलने का हुनर रखो
अपनी हदमें इंसान मग़र अहद होना चाहिए
फ़जूल की उम्मीदमें अपनाही तमाशा क्यूंकरें हम
अमीरों की न हमें सोहबत चाहिए
मुफ़लिस की सल्तनत में धनदौलत आसपास नहीं आती
बेज़ारी में कितना ही वक़्त गुजारा है
इस जहाँसे आगे जहाँ औरभी है
ना शोहरत पाने का गुमान
प्यार में हम हर हद से गुज़र जाएंगे
डूबने के डरसे कश्ति में सवार नहीं होता
दाख़िल घर में ठंडक लेकर दिसम्बर हुआ
किरायेदार उस के मकान में है
रंजोग़म का नदीम बनकर जीना हमें मंज़ूर नहीं
हमें इंतज़ार है इकत्तीस दिसम्बर आने की
औक़ात घरबार में
जिंदगी में जिंदगी से न हुई मुलाक़ात
सदाओं में है ख़ामोशी
सदाओं में है ख़ामोशी
जो हमारे ख़्यालों में है हमारी तक़दीर में नहीं
उसके चाहे बग़ैर कहींपर पत्ता नहीं हिल सकता
उम्र गुज़रगई मनको बहलाने में
फूल गुलाब का 🥀
ख़ामुशी मेरी उड़ाकर रखदेगी नींद तुम्हारी रातों में
इन्सान कहाँ है
आदमी के भेस में मिलते शैतान यहाँ हैं
तेरी अदाएं 💕
जिसके हाथमें जो था उसने दिया उछाल
इक कसक सी हयात में रह जाती है
बूंद में समन्दर
झूठी शानो -शौकत की भूलभुलैया में खोकर रह जाएंगे
बीती हुई बाते
परवरिश में ऐहतियात भी ज़रूरी है
वक़्त को बुरा बताएंगे
प्यार आया हैं 💓
खुद को हया आती है
चैन-ओ-अमन किस भाव में मिला
बादल कभी टिकसका है आस्मानों में
बनगया ग़मकी वो दवा मुझमें
मर गए पहचान बनाने में
इश्क़ में फरहाद को है सब क़बूल
कहानी
बिट्टो
कोरे पन्ने
स्वर्ग की सैर
रावण
रिश्तों की डोर
फर्क
निर्णायक मंडली
"निर्णायक मंडली"
अनेकता में एकता
हर बात में राजी
हिन्दी में बिंदी का महत्व
भीड़ में कुछ ऐसे भी
अलविदा 2020
मेले में मिलाप
नारी में समाई हां माँ
इस घर में मां की ममता बसी है...
Indian हर जगह rock करते हैं।
पापों का हर्जाना
डायरी में रखे मोरपंख
#"फर्ज"
कईएक पहलू जीवन के.....!!
स्टैटस- एक और लौकडाउन *
दोस्ती
अंतर्द्वंद
काकी
सोने में सुहागा
बूढ़ा आत्मसम्मान
मुझमें संस्कार है पर आप मैं नहीं???
लागे चुनरी में दाग
अभी नहीं तो कभी नहीं
अभी नहीं तो कभी नहीं
हर बात में राजी
आस्था श्रम में 💐💐
कड़ी धूप में घना साया 💐💐
कड़ी धूप में घना साया 💐💐
" हवा में खुशबू "
लगे सनिमा में काम करे
"खौली पास "डायरी के कुछ अंश
"टूटती -दीवारें " 💐💐
एक दीया
लागा चुनरी में दाग
माँ के चरणों में बहुत रोएँ…
एक दिन सफलता मेरे सपनें में आई
युवाओं में नशीली पदार्थो की लत
मन में कैद दुःख
अजनबी भाषा में भी अपनी सी मुस्कुराहट
अजनबी भाषा में भी अपनी सी मुस्कुराहट
लेख
वृद्धावस्था में बड़ों का रखिये विशेष ख़्याल
#कैसी रीत?
मंदिर....
लोग क्या कहेंगे
विदेशों में हिन्दी , हिन्दी का विदेश
विदेश में हिंदी हिंदी का विदेश
नशे में कलाकार
अंधेरे में तीर चलाते लोग
उम्मीद
वर्तमान समय में कन्या पूजन की सार्थकता
आस्था और विश्वास : मानव चेतना के बँधक
काँटो के बीहड़ में कुछ महकते गुलाब
आ अब लौट चलें
मंदिर में दर्शन...
युवाा शक्ति का रचनात्मक कार्यों में नियोजन
आज़ाद भारत में एक राजा की फर्जी मुठभेड़
मैं ग़लत हूं, कुछ की नज़रों में..
लोकतंत्र में व्यक्ति कहाँ है ?
भारत को ईश्वर नहीं ऐश्वर्य चाहिए
पाठक के दिलोदिमाग पर अमिट छाप छोड़ने में सफल है "डियर ज़िंदगी"
आदर्श गुरु मेरी नज़र में
मेरी जुबान में रची बसी हिंदी
बेस्ट इंग्लिश लर्निंग एप्लिकेशन के विषय में जानिये
सोच रही हूँ
जिंदगी थी जो पन्नों पे उतार दी
परफेक्ट के फ्रेम में फिट नहीं बैठती मैं
पीयूष गोयल ने दर्पण छवि में हाथ से लिखी १७ पुस्तकें.
हम भी चले परदेस
बुजुर्गों का सम्मान करना:
चैन से जीने दो हमें
मेरे जीवन में होली उत्सव
आशा की किरण के रूप में, प्रकाश की किरण
मौन के साथ मेरा अनुभव
पुस्तक विमर्श - साये में धूप
"फ़िल्म समीक्षा के बारे में कुछ विचार "
राष्ट्र की सेवा में
योग और योग दिवस पर मेरे विचार
सुनसान इलाके में एक रहस्यमय मुसाफिर
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महिला स्वतंत्रता सेनानियों की भूमिका
बैक्टीरिया को मेथेन पसंद है
इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश की प्रतीक्षा
मेरे जीवन में ड्राइंग की भूमिका
पितृ पक्ष पर हमारे विचार।
मेरी दृष्टि में महात्मा गांधी
मेरी दृष्टि में दशहरा त्यौहार
रिटायर्मेंट
वे ख़ूबसूरत दिन
गुलाबी सर्दी में हमारी भावनाएँ
परिवार में भावों का अध्ययन
हम भी महाकुंभ मेले में जा रहे हैं।
किन्नरों के बारे में मेरे विचार
नौकरानियों की सेवाओं के बारे में वास्तविकता
देवी दुर्गा माता के बारे में मेरे भाव
जीवन में क्रोध प्रबंधन पर मेरे विचार।
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