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फर्क - teena suman (Sahitya Arpan)

कहानीअन्य

फर्क

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फर्क

" देख गगन !मुझे मत समझा,अपना अच्छा बुरा सब जानता हूं "|
"नहीं पवन नहीं ,मैं तुम्हें इस तरह अकेला नहीं छोड़ सकता |"
"अकेला तो छोड़ दिया है मुझे सबने, पहले पापा फिर मम्मा और अब सारा परिवार !कोई नहीं चाहता मुझे ,चले जाओ यहां से |"पवन गुस्से में तिलमिलाते हुए बोला|
"तुम गलत समझ रहे हो मेरे भाई |"गगन ने समझाने की एक और कोशिश की|
"बिल्कुल इसी तरह है हम ,एक जैसे एक ही वक्त पर एक ही कोख से जन्म लिया !फिर क्यों हम दोनों में यह फर्क क्यों?"सामने रखे कांच के दो खाली गिलास की तरफ इशारा करते हुए पवन चीख उठा|
तभी वेटर दोनों खाली गिलास को भरने लगा|
"भाई मेरे दोष तुम्हारा नहीं , तुम्हें भरने वाले का है |मुझे भरने वाले ने मुझमें गंगा जल भरा और तुम्हारी खराब संगत ने तुझ में जहर भरा,बिल्कुल इन गिलासों की तरह ,एक में पानी है और एक में शराब|" गगन ने समझाने की एक आखरी कोशिश की|
पवन की आंखों की नमी गंगाजल और जहर के फर्क को महसूस कर रही थी...

मौलिक रचना
टीना सुमन

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दादी की परी
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