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मन में कैद दुःख - Rinku Bumra (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

मन में कैद दुःख

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प्रहलाद अपना जीवन एक मोमबत्ती की तरह जी रहा था अपनी संतान के जीवन के अंधेरे को दूर करने के लिए उम्र भर जलता रहा। प्रहलाद बहुत ही गरीब था मगर मेहनत करने में बहुत ही अमीर था प्रहलाद के एक पुत्र और एक पुत्री थी पुत्र का नाम मदन जो अपनी बहन से चार साल बड़ा था पुत्री का नाम दामिनी जो अपने पिता कि दैनिक मजदूरी और बड़े भाई के स्नेह से स्नातक तक कि पढ़ाई पूरी कर ली। दामिनी की पढ़ाई - लिखाई,रंग - ढंग , आदर - सम्मान को देखकर पड़ोस के किसी रिश्तेदार ने रिश्ता एक अच्छे खासे लोकप्रिय परिवार में तय करवा दिया। शादी के दौरान प्रहलाद को पैसे का कर्ज अधिक हो गया। मदन की मां मदन के आठ साल की उम्र में मृत्यु को प्राप्त हो गई। इसलिए प्रहलाद को जल्दी हो गई मदन की शादी करने की क्योंकि घर अधूरा सा रहने लगा। बहन की शादी के आठ - नौ महीने बाद मदन का रिश्ता तय हो गया। मदन आर्थिक तंगी के कारण बस नवी कक्षा तक ही पढ़ पाया। आठ - नौ महीने में दोनों ने मिलकर दामिनी की शादी का कर्ज थोड़ा कम किया। मदन कि होने वाली पत्नी का नाम तारा था जब तारा कि शादी के पंद्रह दिन बचे तो उसे अचानक अस्पताल में भर्ती होना पड़ा और तारा के पिता और चाचा को डॉक्टर ने बताया की तारा को कैंसर है तारा के पिता और चाचा ने ये बात किसी को भी नही बताई और तारा मदन के घर बहू बनकर आ गई। मदन कि शादी से प्रहलाद पर कर्जा और अधिक हो गया। मदन कि शादी के एक महीने बाद मदन के पिता कि दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई। मदन पर अब दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। उधर तारा को भी पता चल गया कि उसे कैंसर है। मदन एक मर्यादित पुरुष था जो अपनी बहन द्वारा दी गई कुछ पैसे कि सहायता लेने से मना कर दिया यह झूठ कहकर की,नही अब थोड़ा ही कर्जा रहा है बस उतर जायेगा। मदन ने अपनी पत्नी को भी नही बताया कि कितना कर्जा है क्योंकि मदन अपनी पत्नी को ज्यादा दुखी नही देखना चाहता था और ना ही तारा ने अपने पति को अपनी बीमारी के बारे में बताया। दोनों पानी तरह भविष्य के दुखों को पी रहे थे। मदन कर्ज के भारी दर्द से जी रहा था जो तारा को नही पता, और तारा कैंसर के जहर से, जो मदन को पता नही।।‌‌

स्वचरित
रिंकु बुमरा
नारनौल, हरियाणा

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दादी की परी
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